मथुरा से अजय ठाकु
गोवर्धन। राधाकुंड में राधा जी के जन्म के राधाष्टमी पर्व पर आज भी सैकड़ों गौड़ीय साधु निर्जला उपवास करते हैं। राधा को कृष्ण की शक्ति के रूप में मानते हैं। उनका कहना है कि राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं। दोनों की लीलाएं अलग-अलग हैं लेकिन स्वरूप एक है। रघुनाथ गोस्वामी गद्दी के गद्दीनशीन महंत केशव दास महाराज ने बताया कि राधा जी के जन्म के अवसर पर गौड़ीय साधु निर्जला उपवास करते हैं। संत इस दिन भोजन व पानी ग्रहण नहीं करते हैं। उनकी आस्था सिर्फ राधारानी है। व्यास पं. परीक्षित दास ने बताया कि जितना फल सौ एकादशी का व्रत करने पर मिलता है, उससे अधिक राधाष्टमी पर एक ही निर्जला व्रत करने से मिलता है। काजल कृष्ण दास ने बताया कि राधारानी ब्रज में राजा के रूप में विराजमान हैं जबकि कृष्ण उनके कोतवाल बने हैं। संत मंगल दास ने बताया कि राधाकुंड में भगवान श्रीकृष्ण व राधा ने मध्यान्ह लीला की है। नंदगांव से श्रीकृष्ण गो-चारण लीला करने आये हैं तो बरसाने से राधारानी सखियों के साथ राधाकुंड आई हैं। उनकी लीलाओं के साक्षी राधाकुंड, उमराया, रनवारी, छाता आदि स्थान हैं।
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