भारत का तीसरा चंद्रमा मिशन चंद्रयान-3 रवाना होने के 40 दिनों के बाद बुधवार को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए तैयार है, पूरे विश्न की निगाहें इस पर लगी हुई है अगर मून पर ये लैडिंग सफल होती है तो हमारा देश भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा।
अभी तक ये सफल कारनामा अमेरिका, USSR (अब रूस) और चीन ही कर चुके हैं। इस मिशन के सफल होने के लिए पूरे देश में पूजा पाठ का भी आयोजन शुरू हो गया है।
मालूम हो कि चंद्रमा वैज्ञानिकों के लिए एक ‘रोचक विषय’ है तो वहीं साहित्य और कवियों के लिए चांद ‘महबूब’ है तो वहीं वैदिक धर्म में चांद को ‘चंद्रदेव’ के रूप में पूजा जाता है, जिनके बिना ‘करवा चौथ’ की पूजा पूरी ही नहीं होती है।
इस्लाम के सारे त्योहार ‘मून कैलेंडर ‘से ही तय होते हैं
जबकि इस्लाम के सारे त्योहार ‘मून कैलेंडर ‘से ही तय होते हैं तो वहीं भारत के हर बच्चे के लिए चांद केवल ‘चंदा मामा’ ही है। देश का शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां मां ने अपने बच्चे को ‘चंदा मामा’ की ‘लोरी’ नहीं सुनाई होगी।
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि चंदा को आखिर ‘मामा’ ही क्यों कहते हैं? उसे भाई, दादा या चाचा क्यों नहीं कहते हैं? इस बारे में पौराणिक कथाओं में जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था तो समुद्र में से बहुत सारे तत्व निकले थे, जिसमें मां लक्ष्मी और चंद्रमा भी थे।
मां लक्ष्मी के बाद चंद्रमा निकले इसलिए वो लक्ष्मी मां के छोटे भाई बन गए और चूंकि वो लक्ष्मी जी को हम माता कहते हैं तो मां के भाई तो ‘मामा’ ही कहलाए ना इसलिए चांद को हम ‘चंदा मामा’ कहते हैं।
इसके पीछे दूसरा तर्क ये भी है चंद्रमा हमारी पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है और दिन-रात उसके साथ एक भाई की तरह रहता है अब चूंकि धरती को हम ‘मां’ कहते हैं इसलिए उनका भाई तो ‘मामा’ ही हुआ ना इसलिए चंदा केवल मामा हैं, चाचा, भईया या कोई और रिश्ते में हम उन्हें नहीं सोच पाते हैं