भारत का तिरंगा चांद पर लहराने को तैयार है. बुधवार की शाम 6 बजे चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद की सतह को छुएगा और उसके बाद प्रज्ञान रोवर अपना काम शुरू करेगा. चांद पर इसरो ने अपनी छाप छोड़ने के लिए हर तैयारी कर ली है और अगर लैंडिंग सफल होती है तो भारत दुनिया का ऐसा देश बनेगा, जो चांद के इस हिस्से में पहली बार लैंड किया हो.
लेकिन चांद के इस दक्षिणी ध्रुव में जाने से क्या होगा, क्या सिर्फ इसरो का मकसद पानी की तलाश करना है या कुछ और भी है? जानिए…
इंसान लगातार चांद पर बस्तियां बसाने की बात करता है. कई बार खबरें आती हैं कि चांद पर जमीन कितनी महंगी बेची गई है या चांद पर इंसानी कॉलोनियां बनने वाली हैं. ये सब भविष्य की लड़ाई है और इसके लिए ही दुनियाभर की कई स्पेस एजेंसियां अपना सबकुछ झोंके हुए हैं. चांद पर भेजे गए चंद्रयान-3 का मूल मकसद दक्षिणी ध्रुव में पानी की खोज करना है. लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसे पहलू हैं, जिनके लिए इसरो पूरी तैयारी किए हुए है.
चांद पर इंसानी बस्तियां बसाने और पानी की खोज के अलावा यहां मिलने वाले अन्य तत्वों पर भी जोर दिया जा रहा है. इनमें हीलियम-3 जैसे तत्व भी शामिल हैं, इनके अलावा कुछ ऐसी चीज़ें यहां मौजूद हो सकती हैं जो भविष्य में दुनिया के काम आ सकें. इसरो के पूर्व ग्रुप डायरेक्टर सुरेश नाइक ने एक अखबार को बताया कि ऐसी उम्मीद है कि चांद के इस हिस्से में बड़ी संख्या में पानी होगा. लेकिन इससे अलग जो अहम फैक्टर है, वो पावर जेनरेटर का है क्योंकि इस हिस्से की टोपोग्राफी बिल्कुल अलग है.
उन्होंने कहा कि यहां ऐसा हिस्सा भी है जो पूरी तरह से ढका हुआ है, जबकि ऊंचा हिस्सा भी है. इसके कुछ हिस्से में सूरज की रोशनी आती है, जहां मानवीय कॉलोनी बसाने की संभावना है और चीन इस ओर कदम भी बढ़ा रहा है. इसके अलावा चांद पर कई तत्व हैं, इनमें सबसे अहम हीलियम-3 है जो कि इंसान के लिए पॉल्यूशन रहित इलेक्ट्रिसिटी बनाने में मदद कर सकता है. अगले 2-3 साल में चांद पर पहुंचने वाले देशों की रेस तेज हो जाएगी, सिर्फ अगले 2 साल में ही दुनियाभर से 9-10 मिशन लॉन्च होने वाले हैं.