भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को दिल्ली में अमेरिका, सऊदी अरब और यूरोपीय देशों के नेताओं के साथ मिलकर ‘इंडिया – मिडिल ईस्ट – यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर’ लॉन्च किया है.
भारत से लेकर अमेरिका और यूरोप से लेकर मध्य पूर्व के नेता इसे एक ऐतिहासिक समझौता बता रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने इसे मध्य पूर्व में समृद्धि लाने वाला समझौता करार दिया है.
उन्होंने कहा है कि ये अपने आप में एक बड़ी डील है जो दो महाद्वीपों के बंदरगाहों को जोड़ते हुए मध्य पूर्व में ज़्यादा समृद्धि, स्थिरता और एकीकरण लेकर आएगी.
वहीं, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा है कि ‘ये अब तक का सबसे सीधा रास्ता होगा जो व्यापार में तेज़ी लेकर आएगा.’
लेकिन इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरोडिर आख़िर है क्या?
पीएम मोदी ने क्या लॉन्च किया है?
पीएम मोदी ने अमेरिका, खाड़ी और यूरोपीय देशों के नेताओं के साथ मिलकर एक विशाल एवं महत्वाकांक्षी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना लॉन्च की है.
इस परियोजना का मक़सद भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को रेल एवं पोर्ट नेटवर्क के ज़रिए जोड़ा जाना है.
इस परियोजना के तहत मध्य पूर्व में स्थित देशों को एक रेल नेटवर्क से जोड़ा जाएगा जिसके बाद उन्हें भारत से एक शिपिंग रूट के माध्यम से जोड़ा जाएगा. इसके बाद इस नेटवर्क को यूरोप से जोड़ा जाएगा.
अमेरिकी डिप्टी एनएसए जॉन फाइनर ने मीडिया से बात करते हुए इस परियोजना की अहमियत को समझाने की कोशिश की है.
उन्होंने कहा, “ये सिर्फ़ एक रेल परियोजना नहीं है. ये शिपिंग और रेल परियोजना है. लोगों के लिए ये समझना बेहद ज़रूरी है कि ये कितनी ख़र्चीली, महत्वाकांक्षी और अभूतपूर्व परियोजना होगी.”
उन्होंने ये भी कहा कि “ये समझौता कम और मध्यम आयवर्ग वाले देशों को फायदा पहुंचाएगा. यह मध्य पूर्व को वैश्विक व्यापार में एक अहम भूमिका निभाने में मदद करेगा.”
ये डील क्या बदल देगी?
भारत, मध्य पूर्व और यूरोपीय देशों के बीच हुआ ये समझौता मूल रूप से एक इन्फ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है.
इसके तहत बंदरगाहों से लेकर रेल नेटवर्क का निर्माण किया जाना है. भारत से लेकर यूरोप में रेल नेटवर्क काफ़ी सघन है.
लेकिन अगर मध्य पूर्व में नज़र डालें तो वहां रेल नेटवर्क तुलनात्मक रूप से सघन नहीं है जिसकी वजह से माल ढुलाई मूल रूप से सड़क या समुद्री मार्ग से होती है.
रेल नेटवर्क बिछने की स्थिति में मध्य पूर्व के एक कोने से दूसरे कोने तक माल का आवागमन सहज होने की संभावना है.
इसके साथ ही यह परियोजना वैश्विक व्यापार के लिए एक नया शिपिंग रूट उपलब्ध करा सकता है क्योंकि फिलहाल भारत या इसके आसपास मौजूद देशों से निकलने वाला माल स्वेज़ नहर से होते हुए भूमध्य सागर पहुंचता है. इसके बाद वह यूरोपीय देशों तक पहुंचता है.
इसके साथ ही अमेरिकी महाद्वीप में स्थित देशों तक जाने वाला माल भूमध्य सागर से होते हुए अटलांटिक महासागर में प्रवेश करता है जिसके बाद वह अमेरिका, कनाडा या लैटिन अमेरिकी देशों तक पहुंचता है.
यूरोशिया ग्रुप के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ प्रमीत पाल चौधरी कहते हैं, “फिलहाल, मुंबई से जो कंटेनर यूरोप के लिए निकलते हैं, वे स्वेज़ नहर से होते हुए यूरोप पहुंचते हैं. भविष्य में ये कंटेनर दुबई से इसराइल में स्थित हाइफ़ा बंदरगाह तक ट्रेन से जा सकते हैं. इसके बाद काफ़ी समय और पैसा बचाते हुए यूरोप पहुंच सकते हैं.”
फिलहाल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का दस फीसद हिस्सा स्वेज़ नहर पर टिका हुआ है. यहां छोटी सी दिक्कत आना भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर देता है.