जिन हाथों में कलम और डस्टर होना चाहिए, उनमें ट्रैक्टर की स्टेयरिंग और ब्रेक है. मास्टर्स इन साइंस और बीएड की पढ़ाई करके खेतों में हल चला रही अंजू ने सरकारी नौकरी का सपना देखा था.
सालोंसाल तैयारी के बावजूद नौकरी नहीं मिली तो पिता की दस एकड़ की खेती संभालने का बीड़ा उठा लिया. अंजू की कहानी बताती है कि लाख मजबूरियां हों, लेकिन अगर लड़कियां काम करना चाहें तो वो कोई भी जिम्मेदारी उठा सकती हैं.
अंजू यादव मैनपुरी के हवेली की रहने वाली हैं. उनकी उम्र अब 26 साल की है. अंजू यादव बताती हैं कि उन्होंने साल 2018 में केमेस्ट्री विषय से एमएससी की. वो तब अपने मन में सरकारी टीचर बनने का सपने संजोए थी जिसे पूरा करने के लिए उन्होने साल 2020 में बीएड भी पूरी कर ली. अंजू ने सरकारी नौकरी की आस में यूपी पुलिस, यूपीटीईटी और लेखपाल के लिए भी पेपर दिए. मगर किस्मत ने अंजू का साथ नहीं दिया. अंजू इसके पीछे रोजगार की कमी को भी वजह भी बताती हैं.
पकड़ी किसानी की राह
अंजू एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं. अंजू के पिता 65 साल के हैं. जब अंजू ने देखा कि इतने साल की पढ़ाई के बावजूद सरकारी नौकरी नहीं मिली तो पिता की मदद का ख्याल आया. उनके पिता अब बुढ़ापे की वजह से खेती नहीं कर पाते थे. वहीं घर में उनका भाई भी बीटेक के बाद एमटेक करके निजी कंपनी में जॉब कर रहा है. ऐसे में अंजू ने खुद ही 10 एकड़ की खेती संभालने की जिम्मेदारी ली. चूंकि वो पढ़ाई के दौरान भी कभी-कभी खेती बाड़ी का काम देख लेती थीं, इसलिए उनके लिए ये एकदम नया भी नहीं था. इसी दौरान उन्होंने ट्रैक्टर चलाना सीखा, स्प्रे मशीन से खेतों में कीटनाशक का छिड़काव, खेतों की बुआई और निराई सबकुछ सीखकर वो इस काम में रम गईं. अब अंजू सारी खेती-किसानी खुद संभालकर घर चला रही हैं.
अंजू को इस बात का गम जरूर है कि खेती में कड़ी मेहनत करने के बावजूद उनकी सालाना कमाई बहुत कम है. अगर सरकारी नौकरी मिल जाती तो इससे कम मेहनत में ही वो अपनी जिंदगी को आसान बना सकती थी. अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से बीएड डिग्री धारकों के प्राइमरी शिक्षक न बन पाने का फैसला भी आ गया. इस पर अंजू कहती हैं कि पहले ही नौकरी की संभावनाएं कम थीं, अब ये एक सपने के टूट जाने जैसा है. इतनी मेहनत के बाद भी जब नौकरी ना मिले तो बुरा लगता है. मगर क्या किया जा सकता है, मेरा तो भविष्य ही चौपट हो गया.
महिला किसान होने की वजह से झेली परेशानियां
अंजू कहती हैं कि गांव-समाज ने इतना पढ़ लिखकर खेती करने पर खूब ताने दिए. मगर मैंने इस पर ज्यादा गौर नहीं किया, क्योंकि ये तो स्वाभाविक है. नौकरी नहीं मिली तो खेती से गुजारा करना ही आखिरी रास्ता बचा था. मुझे काम तो करना ही था. अंजू कहती हैं, मेरी उम्र 26 साल हो गई है. गांव-देहात में लड़की की उम्र 20-22 होते ही शादी की सलाह मिलनी शुरू हो जाती है. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. मगर लोगों का तो काम ही है कहना. अगर मैं समाज की बातों पर ध्यान देती तो मैं अपना काम नहीं कर पाती. कई बार रात में भी खेतों में पानी देने जाना पड़ता है. कई बार लाइट नहीं रहती है. मगर काम तो करना ही है. कई बार गांव के लोग सवाल भी उठाते हैं कि लड़की होकर रात में अकेली जा रही है. मगर मैं इन सब बातों पर ध्यान नहीं देती. मेरे घर वाले मेरा साथ देते हैं और शादी करने का भी कोई प्रेशर नहीं है.
कुछ यूं बीतता है अंजू का दिन
सारे कृषि कार्य की जिम्मेदारी अंजू के सर पर ही है. अंजू बताती हैं कि वो रबी, खरीफ और जायद तीनों फसलें उगाती हैं. फसल उगाने से लेकर कटवाने तक सारे काम वो ही करती हैं. सुबह चार बजे अंजू का दिन शुरू हो जाता है. उसके बाद वो अपने जानवरों के लिए चारे का बंदोबस्त करती हैं. उसके बाद फसल संभालने के लिए 9-10 बजे अपने खेतों में चली जाती हैं. इसके बाद घर के काम में जुट जाती हैं.