पैरालिसिस के मरीज की हालत क्या होती है इसका अंदाजा केवल उस मरीज को होता है. कभी वह सोच नहीं सकता है तो कभी सोचकर भी कुछ कर नहीं सकता है. लेकिन नित नए प्रयोग ने कुछ ऐसा करने का दावा किया है कि लकवाग्रस्त मरीज अब जो कुछ भी सोचेगा वह उसके कम्प्यूटर पर सामने लिखा होगा.
लकवा रोगियों के लिए ब्रेन ट्रांसप्लांट के पहले ह्यूमन ट्रायल के लिए भर्ती शुरू करने के लिए एक बोर्ड से मंजूरी मिल गई है. आर्टिमिस अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरोफीजिशियन डॉक्टर सुमित सिंह ने टीवी9 भारत से बातचीत में बताया कि साल 2016 से इस तकनीक पर काम हो रहा है जिसमें अब ह्यूमन ट्रायल की अनुमती मिली है.
क्या है इसके पीछे की तकनीक
डॉक्टर सुमित सिंह ने कहा कि अभी भी बहुत सारे ऐसे डिवाइस हैं जो ब्रेन में सूक्ष्म विद्युतीय तरंगे प्रवाहित करते हैं जैसे की ब्रेन स्टिमुलेशन्स है या फिर स्पाइनल कॉर्ड स्टिमुलेशन्स है. इसमें बात उल्टी होगी जैसा मुझे समझ में आता है कि इसमें ब्रेन की इलेक्ट्रिकल एनर्जी है उसको चिप पिकअप करेगा और उसकी एक इलेक्ट्रिकल एनर्जी में कन्वर्ट करेगा. इन सबके बीच संभव है रेडियो फ्रीक्वेंसी के द्वारा एक कंप्यूटर के मदरबोर्ड से संपर्क स्थापित करेगा। यह उल्टा होगा नॉर्मली हम क्या करते हैं कि रेडियो फ्रीक्वेंसी से दिमाग के अंतर जो इलेक्ट्रोंस डालते हैं उसे इलेक्ट्रोड में जाने वाले करंट की मात्रा को हम घटाते अथवा बढ़ाते हैं. इसमें उल्टा होगा इसमें मरीज के थॉट्स एक इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करेंगे जिसको रेडियो फ्रीक्वेंसी में कन्वर्ट किया जाएगा जो कि जो की माइक्रोप्रोसेसर से कांटेक्ट स्थापित करके कंप्यूटर को पढ़ लेगा.
कैसे काम करेगा यह डिवाइस
डॉक्टर सुमित सिंह ने कहा कि यह जो डिवाइस है जिसको न्यूरो लिंक का नाम दिया गया है इसके ऊपर रिसर्च काफी समय से चल रही है लेकिन अभी-अभी उसे कंपनी को उसे कंपनी को ह्यूमन ट्रायल्स की परमिशन दी गई है. उन्होंने कहा कि रिसर्च में पहले एनिमल्स ट्रायल्स होते हैं एनिमल ट्रायल्स के बाद पेशेंट की सेफ्टी है या नहीं यह चेक किया जाता है. इसे बोलचाल की भाषा में फेस 1 ट्रायल बोलते हैं. इसको उसके बाद वह इफेक्टिव है या नहीं है यह ट्राई किया जाता ह. उसकी फेस टू ट्रायल बोलते हैं और फिर फेस 3 ट्रायल्स आता है. उसके बाद वह प्रोडक्ट अगर इफेक्टिव हो तो उसे रेगुलेटरी अथॉरिटीज के पास जाता है और फिर मार्केट में आता है.