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पिछड़े ही बढ़ाएंगे आगे, ओबीसी वोट के लिए भाजपा और कांग्रेस में जोर-आजमाइश

बिहार में जाति गणना के बाद से अन्य पिछड़ा वर्ग को लेकर सियासत तेजी से गरमा गई है। जाति गणना के जरिये इस वर्ग को सियासत के केंद्र में लाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हो गए, पर विपक्ष खासकर कांग्रेस इसे लेकर लगातार हमलावर है। हो भी क्यों नहीं। करीब 50 फीसदी की अनुमानित आबादी के कारण यह वोट बैंक जनादेश की दशा और दिशा तय करता आया है। यही वजह है कि दलों-गठबंधनों के लिए यह वोट बैंक सबसे अहम है। भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए और कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी गठबंधन में सबसे ज्यादा खींचतान इसी वोट बैंक को लेकर है। विपक्ष इन्हें साधने के लिए परंपरागत सामाजिक न्याय से जुड़े आरक्षण, जाति जनगणना को हथियार बना रहा है, वहीं भाजपा योजनाओं, चेहरों के माध्यम से इस वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है।

यह चुनाव भाजपा का ओबीसी को जाति के खांचे से निकालने का प्रयोग है। जातिगत आबादी में अनुरूप सरकारी नौकरी और अवसरों में हिस्सेदारी की विपक्ष की मांग के बीच पार्टी ने राजनीति में परंपरागत जाति आधारित सियासत की जगह गरीब, युवा, किसान और महिला के रूप में नए सामाजिक समीकरण तैयार करने की कोशिश की है। हालांकि इस नए प्रयोग के बीच भाजपा ओबीसी के परंपरागत स्वभाव के प्रति न सिर्फ सतर्क है, बल्कि कोई खतरा भी नहीं उठाना चाहती। दूसरी ओर विपक्ष, और खासतौर से कांग्रेस इसी वर्ग को अपने उद्धारकर्ता के रूप में देख रही है। पहली बार कांग्रेस ओबीसी और इससे जुड़े परंपरागत आरक्षण, जाति जनगणना जैसे सवालों को मुद्दों के केंद्र में लाना चाहती है। दरअसल, हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के मुद्दे पर अगड़े वर्ग के छिटकने, दलित मतदाताओं के बंटने के बाद कांग्रेस अब सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अपनी सियासत को आगे बढ़ाना चाहती है।

भाजपा की रणनीति
मोदी-शाह के युग में भाजपा ने ब्राह्मण-बनिया की पार्टी की अवधारणा को तोड़ दिया है। इसमें पीएम मोदी का आेबीसी वर्ग से होना मददगार साबित हुआ है। बीते दो चुनाव में इस वर्ग के बड़े हिस्से में पहुंच बना चुकी भाजपा पिछड़ा वर्ग से जुड़े चेहरों को आगे बढ़ा रही है। हाल में नायब सैनी को हरियाणा का सीएम बनाया तो मध्यप्रदेश में सरकार की कमान मोहन यादव को दी गई। पार्टी ने कामगारों के लिए 13 हजार करोड़ रुपये की विश्वकर्मा योजना शुरू की, जिसका लाभ पिछड़ी जातियों को मिल रहा है। जाति की राजनीति का गढ़ माने जाने वाले बिहार में पार्टी ने नीतीश कुमार, उपेंद्र कुशवाहा को साधा है। वहीं, यूपी में अपना दल, निषाद पार्टी, सुभासपा एनडीए के साथ है।