सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर अनिवार्य पहुंच मानकों को लागू करने का निर्देश दिया, जिसका उद्देश्य दिव्यांगों के लिए सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच में सुधार करना है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह आदेश 15 दिसंबर, 2017 को एक फैसले में अदालत की तरफ से जारी किए गए पहुंच निर्देशों पर धीमी प्रगति के जवाब में दिया है।
इस पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, जिसने दिव्यांगों के लिए सार्वजनिक स्थानों तक ‘सार्थक पहुंच’ की जरुरत को रेखांकित किया और दो-आयामी दृष्टिकोण को अनिवार्य किया: मौजूदा बुनियादी ढांचे को पहुंच मानकों के अनुकूल बनाना और यह सुनिश्चित करना कि सभी नए बुनियादी ढांचे को शुरू से ही समावेशी बनाया जाए। पीठ ने पाया कि दिव्यांगों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम के नियमों में से एक लागू करने योग्य, अनिवार्य मानकों को स्थापित नहीं करता है, बल्कि यह दिशानिर्देशों के माध्यम से स्व-नियमन पर निर्भर करता है।
यह स्वीकार करते हुए कि सुलभता अधिकार क्रमिक प्राप्ति के अधीन हैं, इस पर पीठ ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों को वास्तव में समावेशी बनाने के लिए गैर-परक्राम्य मानकों की आधार रेखा आवश्यक है। इसके साथ ही पीठ ने सिफारिश की कि ये अनिवार्य नियम व्यापक दिशा-निर्देशों से अलग हों, जिनमें विशिष्ट मानक हों जिन्हें कानूनी रूप से लागू किया जा सके। हैदराबाद में NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में विकलांगता अध्ययन केंद्र को इन नए मानकों को विकसित करने में सरकार की सहायता करने का काम सौंपा गया है। दिशा-निर्देशों को पूर्णता प्रमाणपत्रों को रोकने और गैर-अनुपालन के लिए जुर्माना लगाने जैसे तंत्रों के माध्यम से अनुपालन सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता होगी।
आयुष्मान भारत में आयुर्वेद, योग को शामिल करने की याचिका पर केंद्र को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय आयुष्मान भारत योजना में आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा को शामिल करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया।
पीएम-जेएवाई में आयुर्वेद पद्धतियों को शामिल करने की मांग करने वाली याचिका, जिसे आयुष्मान भारत के नाम से भी जाना जाता है, में कहा गया है कि इसे शामिल करने से देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को किफायती स्वास्थ्य सेवा लाभ और विभिन्न गंभीर बीमारियों में स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा, साथ ही आयुर्वेद के क्षेत्र में काम करने वाले कई लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
2018 में शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना के दो मुख्य घटक हैं – पीएम-जेएवाई और स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र। पहले में हर साल बीपीएल परिवार को 5 लाख रुपये का कैशलेस स्वास्थ्य बीमा कवर दिया जाता है। याचिकाकर्ता ने इस योजना को सभी राज्यों और भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में लागू करने की मांग की। इसमें कहा गया है, पीएम-जेएवाई, यानी आयुष्मान भारत मुख्य रूप से एलोपैथिक अस्पतालों और औषधालयों तक ही सीमित है, जबकि भारत में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, सिद्ध, यूनानी, होम्योपैथी समेत कई स्वदेशी चिकित्सा प्रणालियां हैं, जो भारत की समृद्ध परंपराओं में निहित हैं और वर्तमान समय की स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं को पूरा करने में अत्यधिक प्रभावी हैं।