नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि नौकरशाहों को जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को विफल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने महाराष्ट्र के एक गांव में एक महिला को सरपंच के रूप में बहाल करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है।
जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि राज्य में कई मामलों में यह सामने आया है कि जहां अफसरों ने पंचायत में चुने गए प्रतिनिधियों के साथ दुर्व्यवहार किया है। उन्होंने कहा कि हमने दो-तीन ऐसे मामलों में फैसले सुनाए हैं, जहां बाबू ने निर्वाचित जनप्रतिनिधि के साथ अभद्र व्यवहार किया। ऐसी घटनाएं अक्सर महाराष्ट्र में होती हैं। ये बाबू निर्वाचित जनप्रतिनिधि के अधीन होना चाहिए। इन नौकरशाहों को जमीनी लोकतंत्र को विफल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अर्चना सचिन भोसले के वकील से कहा कि नौकरशाह पुराने मामलों को खोलने की कोशिश करते हैं जैसे कि आपके दादा ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया है और इसलिए आप अयोग्य हैं। पीठ ने सात मार्च के अपने आदेश में कहा कि हम उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण से सहमत हैं। हम कोकले को ग्राम पंचायत, ऐंघार तालुका-रोहा, जिला रायगढ़ के विधिवत निर्वाचित प्रधान मानते हैं।
यह था बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश
अर्चना का सरपंच के रूप में चुनाव 29 जनवरी को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने कलावती राजेंद्र कोकले को सरपंच के रूप में बहाल करते हुए रायगढ़ जिले के कलेक्टर के 7 जून 2024 के आदेश को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। कलावती राजेंद्र कोकले के खिलाफ सात जून 2024 को रायगढ़ कलेक्टर ने आदेश जारी किया था। इसमें महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 29 के तहत सरपंच के पद से उनके इस्तीफे की पुष्टि की गई थी, जबकि उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था।