विश्व विख्यात रामलीला में रावण की जाती है आरती होती है पूज
जसवंतनगर में भगवान श्रीराम की ही नहीं रावण की पूजा की जाती है इतना ही नही रावण के पुतले का दहन नही किया जाता है।
माना यह जाता है कि जहां जहां रामलीलाए होती है इस तरह की मैदानी रामलीला कही नही सिर्फ जसवंतनगर में होती है।
जसवंतनगर की रामलीला मैदान में रावण का लगभग 15 फुट ऊंचा रावण का पुतला नवरात्र के सप्तमी को लग जाता है। दशहरे वाले दिन रावण की नगर के कई स्थानों पर कैंडा क्लब आदि लोगो द्वारा आरती उतार कर पूजा की जाती है।
जसवंतनगर की रामलीला में लंकापति रावण के वध के बाद पुतले का दहन नहीं होता है, बल्कि उस पर पत्थर बरसा कर और लाठियों से धराशायी कर देते हैं। इसके बाद रावण के पुतले की लकड़ियां बीन-बीन कर घरों में ले जाकर रखते हैं। धन में बरक्कत होती है। ओर जुआरी पुतले की लकड़ियों को भी बीन बीन कर ले जाते हैं जुआ खेलने वाले लोगों का कहना है कि जब तक पुतले से निकला कोई हिस्सा जेब में रखा रहेगा तब तक जुए में हार नहीं होती है ऐसा मानना है जुआरियों का,दूसरी खास बात यह है कि यहां रावण की तेरहवीं भी मनाई जाती है, जिसमें कस्बे के लोगों को आमंत्रित किया जाता है।
रामलीला समिति के प्रबंधक राजीव बबलू गुप्ता व सयोंजक ठा. अजेंद्र सिंह गौर का कहना है कि यहा की रामलीला पहले सिर्फ दिन हुआ करती है लेकिन जैसे प्रकाश का इंतजाम बेहतर होता गया तो इसको रात को भी कराया जाने लगा है।