14 फरवरी 1981 की शाम करीब चार बजे। जंटर सिंह बस खेत से लौट कर दरवाजे बैठे ही थे कि गांव के यमुना से सटे छोर पर कुछ शोर सुनाई दिया। जब तक कुछ समझते पुलिस की वर्दी में डकैतों ने पूरे गांव को घेर लिया। जो भी पुरुष मिला, उसे गांव के बीच लाकर लाइन में खड़ा कर दिया। डकैतों ने गालीगलौज शुरू की और अचानक उनकी रायफलें आग उगलने लगीं। बंधक बने लोग धड़ाधड़ गिरने लगे। दो-चार मिनट में ही लाशों का ढेर लग गया। इन्हीं लाशों के बीच घायल जंटर सिंह पड़े थे। चार गोलियां लगी थीं। कराह निकलते ही डकैत फिर गोलियां बरसा देते। लिहाजा उन्होंने भी खुद को ‘लाश’ ही प्रदर्शित किया और इस तरह उनकी जान बची थी।
जंटर के परिजन बताते हैं कि डकैतों के जाने के घंटों बाद पुलिस पहुंची, तब पता चला कि लाशों के ढेर में सात लोग जिंदा हैं। इनमें जंटर भी थे। सभी घायलों को पहले सिकंदरा के अस्पताल भेजा गया। उनके पांव, पेट और कंधे में गोली लगी थी। गंभीर हालत में उन्हें हैलट रेफर किया गया। करीब तीन महीने इलाज के बाद वह ठीक हुए लेकिन गोलियों से छलनी शरीर में कोई न कोई दिक्कत हमेशा बनी ही रही। वह जिंदा बचे सात घायलों में अंतिम व्यक्ति थे।
पुलिस की लचर पैरवी व कानूनी दांव पेंच में उलझे इस मामले में पीड़ितों को 39 साल से न्याय का इंतजार है। देश के इस बहुचर्चित मुकदमे में अधिकांश डैकतों के साथ ही 28 गवाहों की मौत हो चुकी है। इस मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद केस डायरी की मूल प्रति गायब होने का पेंच फंसाने से पिछले साल जनवरी में फैसला नहीं सुनाया जा सका। हत्यारोपितों को सजा कराने के लिए जंटर सिंह वादी राजाराम सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जीवन भर संघर्ष करते रहे। उनके निधन की सूचना मिलते ही उनको अंतिम विदाई देने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा।
फैसले में देर से हताश थे जंटर सिंह
राजपुर। बेहमई कांड में फैसले में आ रहे अवरोध से वह खासे निराश थे। परिजनों के अनुसार पिछली तारीख में वह माती कोर्ट गए थे, वहां से वापस आने के बाद बहुत परेशान दिख रहे थे। उनके पुत्र अनिल सिंह ने बताया कि इसके बाद वह गंभीर रूप से बीमार हो गए। उनका इलाज लखनऊ पीजीआई में हो रहा था। वहां बार बार वह यही कह रहे थे, लगता है कि वह बेहमई को न्याय मिलता नहीं देख पाएंगे। लखनऊ से भोर पहर उनका शव आते ही परिजनों के बिलखने से कोहराम मच गया। पति की मौत से उनकी पत्नी मायादेवी बेहाल हो गईं। जबकि पुत्र अनिल सिंह, विनयसिंह, संकेत सिंह, सोनू सिंह, मोनू सिंह पिता की मौत पर आंसू बहाते रहे। इसके बाद परिजनों ने यमुना तट पर गांव के पास ही उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया।