स दूसरी बात ध्यान रखो कि इनका जन्म से कोई भी संबंधनहीं है। जन्म से तुम ब्राह्मण के घर में पैदा हो सकते हो, इससे
तुम्हारे ब्राह्मण होने का कोई संबंध नहीं है। जन्म से तुम क्षत्रिय के
घर में पैदा हो सकते हो, लेकिन इससे तुम्हारे क्षत्रिय होने का कोई |
संबंध नहीं है। तुम डरपोक क्षत्रियों को खोज ही लोगे। और ब्राह्मण |
के घर में पैदा होने से कोई ब्रह्मज्ञान को थोड़े ही उपलब्ध हो जाता
है। और शूद्र के घर में पैदा होने से ही कोई शूद्र थोड़े ही होता है।
। अब डाक्टर अंबेदकर थे, वे शूद्र के घर में पैदा हुए। लेकिन उन
जैसा कानून का पंडित तुम मुल्क में खोज ही न सकोगे। भारत को
अपना विधान बनाना पड़ा, तो कोई ब्राह्मण पंडित न खोज सके वे
अंबेदकर से श्रेष्ठ,
जो उस विधान को बनाता। अंबेदकर शास्त्र का
विधि का ज्ञाता। ब्राह्मण के घर में पैदा नहीं हुआ है।
जीवन का कोई संबंध जन्म से बहुत ज्यादा नहीं है। जन्म से तो
केवल संभावना मिलती है।
श्वेतकेतु घर लौटा शिक्षित होकर। गुरुकुल से वापस आया।
बाप नेपूछा कि तू सच में ही ब्राह्मण होकर लौटा है? क्योंकि तुझे
मैं एक बात कह दूं, हमारे कुल में नाम से ब्राह्मण कभी भी कोई
तो तू उस एक को जानकर लौटा है, जिसको जानने से
सब जान लिया जाता है? अगर न जानकर लौटा हो उस एक को,
तो अभी तू नाम-मात्र को ब्राह्मण है। और हमारे कुल में कभी कोई
नाम-मात्र का ब्राह्मण नहीं हुआ। हम सदा ही वस्तुतः ब्राह्मण होते
रहे हैं। यह हमारे कुल की धारा है, प्रतिष्ठा है। तो तू जा।
उसने उसको तो मैं जानकर नहीं लौटा। जो भी सिखाया
गया है, वह सब जानकर लौटा हूं। लेकिन मेरे गुरु ने उसकी तो
कोई बात ही नहीं की, उस एक की, जिसको जान लेने से सब जान
लिया जाए! उस एक की तो बात ही नहीं उठी। और मैं ऐसा नहीं
को उसका पता होता और वे छिपाते। उन्हें पता
ही न होगा, क्योंकि उन्होंने तो अपनी पूरी मुट्ठी खोल दी और जो
भी था, मुझे दिया है।
तो उद्दालक ने कहा, फिर ? फिर मैं ही तुझे उस एक की शिक्षा
दूंगा। लेकिन उस एक को जाने बिना कभी भूलकर अपने को
ब्राह्मण मत कहना।
तो ब्राह्मण के घर में तो कोई नाम का ब्राह्मण हो सकता है। जब
तक ब्रह्म को न जान लो, तब तक अपने को ब्राह्मण थोड़ा
सोच-समझकर कहना।
कोई शूद्र के घर में पैदा होने से शूद्र नहीं हो जाता। हमारी मुल्क
की परंपरा तो यह है कि सभी शूद्र की तरह पैदा होते हैं। क्योंकि
सभी आलस्य से पैदा होते हैं, गहन तमस से आते हैं।
मां के पेट में नौ महीने बच्चा सोया रहता है। अब इससे बड़ा
और आलस्य कुछ खोजोगे। नौ महीने पड़ा ही रहता है तमस,
अंधकार में। सभी अंधकार में से आते हैं, आलस्य और तमस से
पैदा होते हैं। सभी शूद्र हैं।
। सब शूद्र की तरह पैदा होते हैं और सब ब्राह्मण की तरह मरने
चाहिए। यह तो जीवन की कला होगी। लेकिन जिसने ब्राह्मण के
घर में पैदा होकर समझ लिया, मैं ब्राह्मण हो गया, वह चूक
जाएगा। वह नाम-मात्र का ब्राह्मण था। उसने लेबल को असलियत
समझ लिया। क्षत्रिय के घर में पैदा होने से कोई क्षत्रिय नहीं होता।
समझने की कोशिश करें उन तीनों के लक्षण।
शम अर्थात अंतःकरण का निग्रह…।
जिसके भीतर एक गहरी शांति की अवस्था आ गयी है, जिसके
भीतर कोई उत्तेजित लहरें नहीं हैं, अंतःकरण विक्षिप्त नहीं रहा, मौन
हो गया है। आंख बंद कर लो, तो भीतर सन्नाटा, और सन्नाटा, और
सन्नाटा खुलता जाता है। स्वर की व्यर्थ गूंज नहीं होती; शब्द
अकारण नहीं तिरते; विचार यों ही नहीं घूमते रहते। भीतर एक परम
शांति है। अंतःकरण निगृहीत हो गया। अब अंतःकरण पागल की
तरह नहीं दौड़ रहा है। जब जरूरत होती है, तब चलता है। जब
जरूरत नहीं होती, तब विश्राम करता है। तुम मालिक हो गए हो
अपने अंतःकरण के
दम…।
जिसकी इंद्रियां अब मालिक नहीं रहीं; जिसका होश मालिक हो
गया है।
ओशो गीता दर्शन
सौजन्य से दिव्य जीवन जागृति मिशन इटावा उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर8218141639