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इटावा हाथों में बिच्छू को लेकर खेली जाती है होली

इटावा यूं तो रंगों का त्योहार होली अपने आप में खास है लेकिन, कहीं-कहीं पर अनूठी परंपराएं इसे और खास बना देती हैं। ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है होली के दिन इटावा के सौथना गांव में। यहां भैसान टीले पर होली के दिन एक साथ कई बिच्छू निकलते हैं। गजब बात यह कि एक बिच्छू देख कोई भी डर जाए मगर, यहां जुटने वाले लोग इतने सारे बिच्छू देख खुश होते हैं।

बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक इन बिच्छुओं को अपने शरीर पर छोड़कर खेलते हैं। बड़ी बात यह कि ये डंक भी नहीं मारते। यहां आकर एक बात और सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या बिच्छू संगीत प्रेमी होते हैं? दरअसल, इस टीले पर फाग के साथ ढोलक की थाप गूंजते ही बिच्छू बाहर निकलने शुरू होते हैं।

ग्रामीण बिच्छुओं को साथ लेकर खेलते हैं होली

दरअसल, ताखा ब्लॉक के सौथना गांव में अंग्रेजों के जमाने का एक ऐतिहासिक भैसान मंदिर है। यहां आजादी के बाद से ग्रामीण होली की शाम ढलते ही खंडहर में तब्दील हो चुके मंदिर के पास ढोलक लेकर गाते-बजाते हैं। ढोलक की थाप सुनकर पत्थरों के अंदर से बिच्छू निकलते हैं। जिसके बाद ग्रामीण उन बिच्छुओं को हाथों में पकड़ कर होली का पर्व मनाते हैं। होली के दिन यह मान्यता है कि यह बिच्छू किसी को काटते नहीं हैं।

ढोलक की थाप पर नाचते ग्रामीण।

300 वर्ष पुराना है गांव के इस मंदिर का इतिहास

बताया जाता है कि, भैसान मंदिर 300 वर्ष पुराना है, जिसमें दुर्गा मां की अष्टधातु की मूर्ति स्थापित थी। मंदिर जब खंडहर में तब्दील होने लगा तो वहां के आसपास के लोग मंदिर में लगे पत्थर अपने घरों, खेतों में ले जाकर निजी उपयोग में लाने लगे, लेकिन जैसे ही पत्थर अपने घरों पर लाते, उनके घरों में बिच्छू बड़ी तादाद में निकलने लगते थे। जिस कारण पत्थर को वहीं वापस रखना पड़ता था।

पूर्व में मंदिर की देख-रेख करने वाले पुजारी के परिवार के सदस्य कृष्ण कांत भदौरिया बताते हैं, यहां दुर्गा मां की अष्टधातु की मूर्ति और भैरव की मूर्ति स्थापित थी। यहां भैंसों की बलि दी जाती थी। इस मान्यता की वजह से ग्रामीण प्रति वर्ष पूर्व की भांति होली की शाम को दिन में गांव में होली खेलते हैं और शाम को ढोलक बजाकर मंदिर में फाग गायन करते हैं।

नब्बे के दशक में मंदिर की मूर्ति चोरी हो गई थी

जैसे ही ढोलक की थाप पड़ती है तो पत्थरों के नीचे से बहुत तेजी से बिच्छू बाहर आ जाते हैं। ग्रामीण बिच्छूओं को हाथ में लेकर उनके साथ होली खेलते हैं। अपने हाथ शरीर पर बिच्छु चलाते हैं। मंदिर में स्थापित अष्टधातु की मूर्ति भी नब्बे के दशक में चोर चोरी कर ले गए थे, जिसके बाद से यह मंदिर पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया।

ग्रामीणों का कहना है कि ये बिच्छू होली के दिन ही बाहर आते है और गांव के लोग इन्हें अपने हाथों में लेकर नाचते गाते है ये किसी को भी नही काटते और जब इन्हें वापस छोड़ा जाता है तो एवाप्स पत्थरों के नीचे चले जाते है