*औरैया,प्रकृति का दर्पण के साथ पूजा का आवाहन*
*० नवरात्रि में मातृशक्ति की उपासना शक्ति अर्थात ऊर्जा के रूप में भी की जाती है। ग्रंथों में प्रकृति की समस्त ऋतुओं के चक्र को संवत्सर कहा गया है। देवी की उपासना का मंत्र स्वयं को परिमार्जित करके पूजा का आवाहन करना है। वास्तविक नवरात्र आगामी (2 अप्रैल से प्रारंभ) हो रही है। बताया जाता है कि चंद्रमा को ऋतुओं का कारक कहा गया है, इसलिए चंद्र संबंधी संवत्सर प्रकृति की छवि को प्रस्तुत है।*
*औरैया।* व्रत पर्व अथवा त्यौहार को लेकर आदि पुरुष कहीं जाने वाले मनु ने धर्म की परिभाषा देते हुए कहा है कि जो धारण करने योग्य हो वह धर्म होता है। हम इस परिभाषा को नवरात्रि जैसे विशुद्ध धार्मिक विधान पर भी लागू कर सकते हैं। इन 9 दिनों में मां दुर्गा की आराधना की जाती है। व्रत रखा जाता है यथासंभव पवित्र जीवन जीने का प्रयास किया जाता है। तो इसमें धारण करने योग्य क्या है? व्रत पर्व उत्सव अथवा त्योहार किसी नियत काल समय पर की जाती हैं इसीलिए विश्व की चपेट संस्कृति मैं स्थानीय परंपरा के अनुरूप काल गणना की पद्धति मिलती है इनमें संवत्सर का कैलेंडर सर्वाधिक सूक्ष्म और सटीक होने के साथ पूर्ण सामंजस्य रहता है। इसमें जब जिस ऋतु का उल्लेख होता है, उस समय वैसा ही मौसम दिखाई देता है।
धार्मिक दृष्टि से देखने पर तो यह सब कर्मकांड के हिस्से ही लगते हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल हमारे पूर्वजों ने जीवन से जुड़ी अपनी सभी वैज्ञानिक बातों को हमें प्रतीकों और मिथकों के माध्यम से बताया और इन सब को धर्म का नाम दिया जिससे आम लोग इसका विधिवत तरीके से श्रद्धा पूर्वक पालन करें। इसके लिए नवरात्रि का विज्ञान क्या है इसे देखने की आवश्यकता है।भारतीय संवत्सर पांच प्रकार के हैं- सावन , चांद (चंद्र संबंधी) , सौर (सूर्य संबंधी) , नक्षत्र (नक्षत्र संबंधी) , और बृहस्पतत्य (बृहस्पति संबंधी) लेकिन इनमें से भारत में अधिकांशतः चंद्र संवत्सर का प्रयोग होता है। इस संवत्सर (वर्ष) में संभवत 12 मास होते हैं। प्रत्येक मास का पूर्वार्ध कृष्ण पक्ष कहलाता है। जिसमें चंद्रविंव प्रतिदिन घटता है। और इस पक्ष का समापन अमावस्या को होता है। मास की उत्तरार्ध को शुक्ल पक्ष कहते हैं, जिसमें चंद्रमा की आकृति में नित्य वृद्धि होती है, और यह पक्ष पूर्णिमा को पूर्ण होता है। चंद्रमा की 16 कलाओं के अनुरूप 16 तिथियां होती हैं। राया हर तीसरी वर्ष संवत्सर में अधिक मलमास होने पर वह 13 मासों वाला हो जाता है अधिक मास को सनातन धर्म में पुरुषोत्तम मास का नाम देकर इसे अतिशय आध्यात्मिक महत्व को मास माना गया है। बंगाल केरल आदि प्रांतों में सौर संवत्सर (सूर्य संबंधी संवत्सर) का प्रचलन है। ग्रंथों में चंद्रमा को जल का स्वामी कहा गया है , और पृथ्वी पर प्राणियों और कृषि के लिए जल की अनिवार्यता सर्वविदित है। चांद संबंधी संवत्सर की महत्ता सर्वविदित है। सनातन धर्म ग्रंथों में व्रत पर्व का निर्णय इसी संवत्सर के अनुसार ही वर्णित है। ऋषि-मुनियों ने इसकी प्रशंसा करते हुए इसे व्यवहार में लाने की संस्तुति की है। भारतीय संस्कृति में धर्म-कर्म के सही समय पर संपादन में चंद्र संबंधी संवत्सर की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। यह संवत्सर प्रकृति सापेक्ष होने की कारण सही मायने में प्रकृति का दर्पण ही है।
नवरात्रि के नौ दिनों को तीन-तीन दिनों को तीन भागों में बांटा गया है। प्रथम 3 दिनों में दुर्गा की आराधना होती है। मां दुर्गा ने महिषासुर का विनाश किया था। इसी प्रकार से ये तीन हमें हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्तियां को समाप्त करने का संदेश देते हैं। आसुरी प्रवृत्तियां क्या है? घोर स्वार्थ , हिंसा वृत्ति , क्रोध , बुराइयां , आपवित्रताएं तथा दुर्भावनाओं को आसुरी प्रवृत्तियां माना जाता है। भक्तगण इन सभी से दूर रहने का प्रयास करते हैं। बीच के 3 दिन लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना के होते हैं। लक्ष्मी जी को धन की देवी कहा गया है। इस धन में आध्यात्मिक धन भी शामिल है। लक्ष्मी जी की आराधना द्वारा हम स्वयं को भौतिक और आध्यात्मिक संपत्ति के योग्य बनाने की साधना करते हैं। अंतिम 3 दिन ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित हैं। ये मूलतः विवेक की देवी हैं। विवेक का अर्थ होता है सही अथवा गलत का निर्णय लेने की ज्ञानपूर्ण दृष्टि का होना। विवेक के अभाव में धन एवं शक्ति अहंकारी हो जाती है। मां सरस्वती की आराधना हमें विवेक का ज्ञान प्रदान करके अपनी संपत्ति का समुचित उपयोग करके एक समुचित जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। इस प्रकार नवरात्रि में देवियों की ऊर्जा हमारी भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को संपूर्णता प्रदान करती है। ऊर्जा के इस आवाहन के केंद्र में सूर्य है , और सूर्य ऊर्जा का भंडार है। इसलिए नवरात्रि का पर्व हमारे लिए स्वयं को धो-पौछकर नवीन ऊर्जा को धारण करने योग्य बनाने एक धार्मिक , किंतु अत्यंत एक वैज्ञानिक उपक्रम है। इस अवसर पर रखे जाने वाले वृत्त उपवास का यही उद्देश्य है।
रिपोर्टर :-: आकाश उर्फ अक्की भईया फफूंद