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औरैया, रमजान : तीसरे अशरे में इबादत से मिलेगी जहन्नुम से निजात*

*औरैया, रमजान : तीसरे अशरे में इबादत से मिलेगी जहन्नुम से निजात*

*रुरुगंज,औरैया।* मुकद्दस रमजान का वैसे तो हर लम्हा इबादत का है लेकिन शुक्रवार शाम से शुरू होने वाले जहन्नुम से निजात के तीसरे अशरे की खास अहमियत बताई गई है। आज मगरिब की नमाज के बाद रमजानुल मुबारक का तीसरा अशरा शुरू हो जाएगा, जो जहन्नुम से आजादी का है। इस अशरे में ही शबे कद्र है। शबे कद्र की एक रात का सवाब एक हजार रातों की इबादत से भी ज्यादा है। रमजान का अंतिम अशरा दोजख से निजात की खुसूसियात के लिए जाना जाता है। इस अशरे में अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने इबादतगार बंदे के गुनाहों को माफ कर देता है। शुक्रवार शाम को मुकद्दस रमजान का 20वां रोजा मुकम्मल हो जाएगा। रोजा इफ्तार के बाद रमजान का आखिरी अशरा शुरू हो जाएगा। इमाम मोहम्मद सालिम बताते हैं कि रसूले खुदा फरमाते हैं कि आखिरी अशरा दोजख से आजादी का है। यह अशरा 21वें रोजे से 30वें रोजे की शब तक चलता है। बताया कि वैसे तो रमजान का पूरा महीना ही रहमतों और बरकतों का महीना है लेकिन तीसरा अशरा सबसे अफजल कहा गया है। इसी अशरे की ताक रातों में यानी 21, 23, 25, 27, 29 रमजान की रात कुरआन पाक नाजिल हुआ। इन रातों में से जिस रात को कुरआन नाजिल हुआ, उसे शबे कद्र की रात कहते हैं। इसलिए, रमजान में इन रातों की अहमियत काफी बढ़ जाती है। शबे कद्र की रात को हजार महीने की रातों के बराबर बताया गया है। लेकिन वह कौन सी रात है, किस रात को कुरान शरीफ नाजिल हुआ, यह किसी को मालूम नहीं है। इसलिए रोजेदार इन पांचों रात को जागकर अल्लाह रब्बुल इज्जत की इबादत करते हैं। रमजान के तीसरे अशरे में ही फितरा और जकात भी अदा की जाती है। जिससे ईद की नमाज गरीब लोग भी खुशी से अदा कर सकें। इन रातों में है शबे कद्र मुकद्दस रमजान का आखिरी अशरा यूं तो तमाम खुसूसियात से भरा हुआ है लेकिन इस अशरे की ये पांच रातें 21, 23, 25, 27 व 29वीं रात बेहद खास मानी जाती है। इनमें किसी एक रात में कुरआन पाक नाजिल हुआ। जिस रात को कुरआन पाक नाजिल हुआ उसे शबे कद्र कहते है। शबे कद्र की रात इबादत की हजार रातों से बेहतर है। एताकाफ के लिए मस्जिदों में आज से शुरू होगा कयाम शुक्रवार को 20 वें रोजे के साथ रमजान का दूसरा अशरा मुकम्मल हो जाएगा। मगरिब की नमाज के बाद से तीसरा अशरा शुरू होगा। तीसरे अशरे में शबे कद्र पाने के लिए एताकाफ की नीयत से रोजेदार दस दिन तक मस्जिदों में कयाम करते है। एताकाफ रमजान के मुकद्दस महीने की खास इबादत में से एक है। मस्जिद में अल्लाह की इबादत यानी जिक्र-ए-इलाही की नीयत से ठहरने को एताकाफ कहते हैं। एताकाफ के लिए 20वें रमजान को असर की नमाज के बाद सूरज डूबने से पहले मस्जिद में दाखिल होना होता है। ईद का चांद दिखने के बाद मस्जिद से बाहर निकला जाता है। इमाम मोहम्मद सालिम कहते हैं कि हर मस्जिद में एताकाफ के लिए एक रोजेदार का बैठना जरूरी है।

रिपोर्ट :-: आकाश उर्फ अक्की भईया संवाददाता