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इटावा, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जसवंत नगर की मैदानी रामलीला से जुड़े कलाकार अब अयोध्या में अपनी विशेष शैली की रामलीला करते हुए देंगे दिखाई

जसवंतनगर। कोरोना काल में बंद रहने के बाद अयोध्या की नित्य रामलीला का प्रारंभ पुनः हो चुका है अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जसवंत नगर की मैदानी रामलीला से जुड़े कलाकार अब अयोध्या में अपनी विशेष शैली की रामलीला करते हुए शीघ्र दिखाई देंगे। एक सप्ताह बाद ही अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर लव कुश द्विवेदी ने पुनः यहां का दौरा किया और यह जानकारी भी दी। प्रदेश के संस्कृति मंत्री द्वारा रुचि दिखाने के बाद अब यहां तेजी से काम शुरू होने के आसार बन गए हैं।

विवरण के अनुसार रविवार को निदेशक डॉक्टर लव कुश द्विवेदी अपने साथ इस परियोजना पर काम करने वाले आर्टिस्ट्स तथा अन्य इंजीनियरों को साथ लेकर आए थे तथा उन्होंने रामलीला मैदान में बनाई जाने वाली तमाम साइट पर संबंधित लोगों को उनके कार्यों का विवरण बताया । उन्होंने निर्देश दिया कि सरकार इस कार्य को बहुत जल्द पूरा होता देखना चाहती है इसके लिए युद्ध स्तर पर सभी को जुट जाना होगा इस परियोजना में काफी विलंब हो चुका है तथा पूर्व से प्रस्तावित कार्य ही यहां पर किया जाएगा प्रस्तावित कार्यों को अनावश्यक ढंग से बदला नहीं जाएगा। रामलीला कमेटी के लोगों की सलाह को वरीयता दी जाएगी। यह कार्य विभागीय मंत्री जयवीर सिंह की शीर्ष प्राथमिकता में है तथा बे कभी भी इस का निरीक्षण करने आ सकते हैं।

डॉक्टर द्विवेदी के साथ आए दल में कोलकाता से आर्टिस्ट विश्वजीत मजूमदार आये थे उन्हें पंचवटी का निर्माण कार्य पूरा कराना है उन्होंने अपनी साइड की पूरी जानकारी की तथा उसकी नाप जोख भी कर ली है तथा उन्होंने बताया कि जुलाई के प्रथम सप्ताह में वे अपनी टीम के साथ अपना टेराकोटा लगाने का कार्य प्रारंभ कर देंगे। इसके अलावा लखनऊ विश्वविद्यालय की कला संकाय से श्रीमती विभावरी सिंह तथा वेणु गोपाल जैसे कलाकार, यू पी पी सी एल के सहायक परियोजना प्रबंधक डीके पाठक तथा ललित कला अकादमी लखनऊ से राजेंद्र मिश्रा सहित पूरा दल यहां पहुंचा था सभी को अलग-अलग डॉक्टर द्विवेदी ने उनका काम समझाया और शीघ्र इस अधूरी पड़ी परियोजना को पूरा कराने का निर्देश दिया साथ ही रामलीला कमेटी के सुझाव पर 20 मीटर की एक दीवार भी बनाने का कार्य शामिल किए जाने की बात स्वीकार की।

बाद में डॉक्टर द्विवेदी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि जसवंत नगर की मैदानी रामलीला को पसंद करने वालों में सिर्फ भारत के लोग ही नहीं है वरन विदेशों में भी जसवंत नगर शैली की रामलीला को चाहने वाले बहुत से लोग हैं । इसी बीच दक्षिण अमेरिकी देश त्रिनिडाड से इंद्राणी रामप्रसाद का फोन आने पर उन्होंने जब डॉ द्विवेदी से जसवंत नगर की रामलीला का जिक्र करते हुए पूछा कि वहां के लोगों से पूछो कि रावण वध के बाद रावण को जलाते क्यों नहीं है ? इस पर रामलीला कमेटी की ओर से वहां पर प्रतिनिधित्व कर रहे अजेंद्र सिंह गौर ने बताया कि रावण की विद्वता के कारण उसके पुतले का दहन नहीं किये जाने की परम्परा है लेकिन राक्षसी-तामसी प्रवृत्ति के कारण उसका वध जरूर दर्शाया जाता है।हम लोग अपनी परम्पराओं को संजोए हुए हैं।