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जसवन्तनगर, बिलैया-मठ :भोले भंडारी ने बचाई थी,क्रांतिकारियों की जान*

*बिलैया-मठ :भोले भंडारी ने बचाई थी,क्रांतिकारियों की जान*
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– *अंग्रेज कलक्टर साड़ी पहन भागा था*
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जसवंतनगर। भगवान भोलेनाथ शिवशंकर को यूं ही भोला भंडारी और सबका रक्षक नहीं कहा जाता है। वह अपने भक्तों और आश्रितों पर न केवल छप्पड़ फाड़कर कृपा बरसाते,बल्कि स्वयं भी उनके लिए संकट में फंस जाते हैं। भस्मासुर को वरदान देकर खुद भी संकट में फंस गए थे।
जसवंतनगर में एक ऐसा ही शिवालय’बिलैया-मठ’ है, जिसने अंग्रेज सरकार से दो दो हाथ लिए थे। जिस पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसाईं थीं। मठ के प्राचीर पर आज भी गोलियों के निशान हैं। मगर इस शिवालय की शरण में आए क्रांतिकारियों का बाल बांका भी मठ में विराजित शिवलिंग ने होने नही दिया था।भोलाभंडारी की कृपा से शरण में आए सब सुरक्षित निकलने में कामयाब हुए थे। उल्टे अंग्रेज कलक्टर को साड़ी पहन छिपकर भागना पड़ा था।


जसवन्तनगर में पश्चिमी कोने पर ऐतिहासिक और करीब 300 वर्ष पुराना शिव मठ ‘बिलैया-मठ’ है। जिसमे अलौकिक शिवलिंग विराजित है। इसका स्वर्गीय दादा शिवकुमार के पूर्वजों ने17 वीं शताब्दी में निर्माण कराया था। विराजित शिवलिंग नर्मदा नदी के तट की रेती में उन्हे स्वप्न में दर्शनों के बाद प्राप्त हुआ था। इस मठ के बगल से शेरशाह सूरी मार्ग गुजरता था।
सन 1857में गदर के वक्त कारतूसों में गाय की चर्बी लगाने को लेकर पुलिस में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध बगावत फैली थी। जिसकी आग मेरठ तक जब फैली,तो कुछ हिंदू पुलिस सिपाहियों ने तत्कालीन गोरी सरकार से विद्रोह कर दिया और ये क्रांतिकारी सिपाहियों की टोली मेरठ से भाग निकली।


ये क्रांतिकारी सिपाही भागते भागते ओर पीछा कर रहे अंग्रेजों से बचते-बचाते जसवन्तनगर के इस बिलैया मठ में रात को आकर छिप गए। सभी ने विराजित मंदिर के शिव लिंग की रात मेंआराधना की और अपनी सुरक्षा मांगी। रात भर टिक ही पाए थे कि अंग्रेज अफसरों को इनके छिपे होने की सूचना मिल गई।
बताते हैं कि तत्कालीन अंग्रेज कलक्टर ए.ओ ह्यूम भारी फोर्स के साथ आ धमका और मठ को चारों तरफ से घेर लिया। क्रांतिकारी सिपाहियों और मठ को निशाना बनाते ,गोलियां चलाते अंग्रेज फोर्स ने उन्हे आत्मसमर्पण के लिए ललकारा। इधर जसवंतनगर के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी भारी संख्या में आ जुटे और अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोलते पथराव शुरू कर दिया। अंग्रेज अफसरों के पांव उखड़ गए और कलक्टर ह्यूम को अपनी जान बचाने के लाले पड़ गए। एक अंग्रेज सिपाही की भीड़ ने जान ले ली। यह देख ह्यूम ने किसी गद्दार जसवंतनगर वाले के घर से साड़ी मंगाई और पहनी,फिर भीड़ से छुपता-छिपाता ,जान-बचाता भाग खड़ा हुआ।
बाद में मंदिर में छिपे क्रांतिकारी सकुशल इस मठ से आगे निकलने में कामयाब हुए। इस ऐतिहासिक घटना की यादें आज भी लोगों के जेहन में है और इस मठ में विराजित शिव लिंग को लोग प्राणरक्षक के रूप में पूजते है। वर्ष भर यहां लोगों का दर्शनों के लिए आना जाना रहता है। अभी 15 वर्ष पूर्व स्व शिवकुमार दादा के पुत्र स्व सच्चिदानंद गुप्ता और रिटायर्ड प्राचार्य कमलेश तिवारी ने इस बिलैया मठ का जीर्णोद्धार और इसमें और अनेक मूर्तियां स्थापित कर इसे भव्य रूप दिया है। मगर इस क्रांतिकारी स्थल के लिए सरकार ने कुछ भी नही सोचा। मठ में एक 70 वर्षीय पुजारी निवास करते हैं , जो ज्ञान के अकूत भंडार हैं।

*वेदव्रत गुप्ता