औरैया।* आदि शिल्पाचार्य महर्षि विश्वकर्मा को वैदिक सौर देवता भी माना जाता है। उन्हें धातु और विधातु, पृथ्वी और प्राणी जगत का जनक और समस्त देवों का नामकरण करने वाला कहा गया है। शास्त्रों और वेदातों में विश्वकर्मा को सृष्टि करता प्रजापति, संवत्सर और परमात्मा के रूप में माना गया है। विश्वकर्मा को वैदिक सौर देवता भी माना गया है। उन्हें धातु और विधातु पृथ्वी और प्राणी जगत का जनक और समस्त देवों का नामकरण करने वाला कहा गया है। कहते हैं कि अंगिरा वंश के भुवन पुत्र विश्वकर्मा ऐसे आदि शिल्पाचार्य हैं जिन्होंने आदि ब्रह्मा की रचनात्मक दक्षता के रहस्य को समझ कर इस सृष्टि पर उनके अनुरूप उनके विज्ञान को सबसे पहले प्रस्तुत किया। अपनी अद्भुत और अलौकिक शक्ति से शिल्प विज्ञान का साक्षात्कार कर मानव के कल्याण और अथर्ववेद के उपवेद की रचना की। ऐसे भगवान विश्वकर्मा की पूजा के साथ आगामी 17 सितम्बर 2022 दिन शनिवार को शहर में भव्य शोभा यात्रा का आयोजन धूम धाम पूजा किया जाएगा। उपरोक्त जानकारी अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के जिलाध्यक्ष एवं जिला महामंत्री द्वारा दी गई है।
अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के जिलाध्यक्ष रमेश चंद्र शर्मा एवं महामंत्री अवधेश शर्मा ने उपरोक्त जानकारी देते हुए बताया कि ब्रंदावन धाम तहसील के पीछे औरैया में सभी लोग एकत्र होंगे। इसके बाद होगा शोभायात्रा ब्रंदावन धाम गेस्ट हाउस में प्रातः 11 बजे से प्रारंभ होगी और नगर भ्रमण के बाद प्रसाद वितरण होगा। इस कार्यक्रम में समाज के लोगों को सपरिवार सादर आमंत्रित किया गया है। उपरोक्त पदाधिकारियों ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अपील की है। कार्यक्रम को भव्य एवं सफल बनाने के लिए मैथिल शर्मा विश्वकर्मा समाज के जिलाध्यक्ष नाथूराम शर्मा, ओम प्रकाश ओझा, संतोष शर्मा दरोगाजी, सुरेश शर्मा फौजी, हरी शंकर शर्मा,लालू शर्मा व सोनी शर्मा के अलावा समाज के जिम्मेदार लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। आगे उन्होंने कहा कि भारत में विश्वकर्मा जी की जयंती तीन अलग-अलग तिथियों में मनाई जाती है। आमतौर पर प्रतिवर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। पर भविष्य पुराण, स्कंद पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों के अनुसार माघ शुक्ल त्रयोदशी को विश्वकर्मा जी की जयंती मानी गई है। वैदिकोत्तर साहित्य में महर्षि विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र या शिल्प प्रजापति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने देवताओं के लिए विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र, आभूषण विमान आदि बनाये कहते हैं कि द्वारका, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर वृंदावन, लंका और इंद्रलोक की रचना का श्रेय महर्षि विश्वकर्मा को ही है। कई वाद्ययंत्रों की रचना भी विश्वकर्मा ने ही की है, ऐसा प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है। यही वजह है कि विश्वकर्मा मनुष्य जगत में आज भी पूजनीय हैं।