21वें वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ अकाउंटेंट्स में अभिव्यक्ति के लिये आमंत्रित किए जाने पर मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। इस आयोजन के 118 वर्ष के इतिहास में पहली बार भारत को चुना जाना, वास्तव में भारत की आर्थिक महाशक्ति बनने का सफर शुरू करने की पहचान बनकर उभरा है। यह 1.4 अरब भारतीयों के असीम विश्वास और विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की यात्रा को दर्शाता है। भारत के गहन विचार के पैमाने का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता है कि इस शानदार जियो कन्वेंशन सेंटर द्वारा उक्त आयोजन का प्रदर्शन किया गया है।
हमारा मानना है कि हम सभी अनिश्चितता के समय एकत्रित हुए हैं। कोविड महामारी ने, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध, बदलती जलवायु से उत्पन्न चुनौती, ऊर्जा की बढ़ती कीमतों और मुद्रास्फीति में अभूतपूर्व तेजी ने वैश्विक नेतृत्व का संकट पैदा कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की रूपरेखा में मौलिक रूप से बदलाव देखने में आए हैं और वैश्वीकरण में उस तरह के बदलाव सामने नहीं आए हैं, जैसे कि भविष्यवाणी की गई थी।
तथ्य यह है कि हमारी कई धारणाओं को चुनौतियों का हवाला दिया गया है, कि यूरोपीय संघ एक साथ रहेगा, कि रूस को एक कम अंतर्राष्ट्रीय भूमिका स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाएगा, कि चीन को पश्चिमी लोकतांत्रिक सिद्धांतों को अपनाना चाहिए, कि धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत प्रकृति में सार्वभौमिक हैं, और कि एक महामारी के बढ़ने का मतलब होगा कि विकसित देश विकासशील देशों की मदद के लिए कदम बढ़ा रहे हैं, लेकिन इनमें से हर एक विश्वास डगमगाती राह पर है। इस बहुस्तरीय संकट ने महाशक्तियों की एकध्रुवीय या द्विध्रुवीय विश्व के मिथक को तोड़ दिया है, जो वैश्विक वातावरण में कदम रखने के साथ ही इन्हें स्थिर भी कर सकती है।
इसे बतौर उदाहरण समझते हैं। कल, मिस्र में, सीओपी 27 पर पर्दा गिरा। सन् 1992 में, जब जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए विश्व एक पटल पर था, तब “स्थायी तरीके से आगे बढ़ने के लिए सक्षम आर्थिक विकास” का सिद्धांत दिया गया था। हालाँकि, विकसित देशों द्वारा अपेक्षित योगदान देखने में विफलता देखी गई है। ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के साथ समान विकास को संतुलित करने का संघर्ष उम्मीदों से बहुत कम हो गया है। यह विश्व में कदम रखने का सिर्फ एक उदाहरण है, जहाँ हर देश अपने निर्णय स्वयं लेता है। ऐसे में आर्थिक शक्ति और कमांड-एंड-कंट्रोल संरचनाओं का प्रबंधन करना उत्तरोत्तर कठिन होता जाएगा।
इसलिए, मेरे विचार में इस उभरती हुई बहुध्रुवीय विश्व महाशक्तियों (मल्टीपोलर वर्ल्ड सुपरपॉवर्स) को ऐसे लोगों की आवश्यकता होगी, जो संकट में जरुरी कदम उठाने और दूसरों की मदद करने का जिम्मा लेते हैं और अन्य राष्ट्रों को अधीनता के लिए धमकाते नहीं हैं, जो मानवता को अपने सबसे प्रमुख संचालन सिद्धांत के रूप में रखते हैं। एक सुपरपॉवर को चाहिए कि वह एक संपन्न लोकतंत्र भी हो और साथ ही यह भी मानना चाहिए कि लोकतंत्र की कोई एक समान शैली नहीं है, अपितु यह शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कौशल विकास में सार्वभौमिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए सामाजिक विकास को सक्षम करने के लिए अपनी तकनीक को साझा करने के लिए राष्ट्र की इच्छाओं के अनुकूल हो। पूँजीवाद की वह शैली, जो विकास के लिए विकास को आगे बढ़ाती है और समाज के सामाजिक ताने-बाने की उपेक्षा करती है, सही मायने में अब तक के सबसे बड़े अवरोध का सामना कर रही है।
यह ऐसी मल्टीपोलर दुनिया में है कि भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति की नींव, इसकी संस्कृति और मान्यताओं के साथ प्रासंगिक हो जाती है, इसका कारण यह है कि यह एक आर्थिक महाशक्ति बनने की यात्रा करती है, जो एक लोकतांत्रिक समाज की सीमाओं के भीतर विशाल सामाजिक विकास के साथ मौद्रिक विकास को जोड़ती है।
इसी संदर्भ में मैं अपने विचार व्यक्त करता हूँ। यह प्रलेखित है कि सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय यह राय थी कि भारतीय लोकतंत्र जीवित नहीं रहेगा। न केवल हम बच गए, बल्कि भारत को अब एक सरकार से दूसरी सरकार को सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के लिए एक रोल मॉडल माना जाता है। साथ ही, दो दशकों से भी अधिक समय की अपेक्षाकृत कम अवधि की सरकारों और गठबंधनों के बाद हमें अपने बहुमत वाली सरकार मिली है। उम्मीद के मुताबिक, इसने हमारे देश को राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणाली में कई संरचनात्मक सुधारों की शुरुआत करने और शीघ्रता से निष्पादन के साथ दीर्घकालिक दृष्टिकोण को संतुलित करने वाली सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने की क्षमता प्रदान की है।
आइए, कुछ अन्य समर्थकारी कारकों पर एक नज़र डालते हैं। हमारे लोकतंत्र को 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं। यह हर एक भारतीय के औसत जीवनकाल के बारे में है। इस अवधि के दौरान भारत ने उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। जीडीपी के अपने पहले ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने में हमें 58 वर्ष का समय लगा, साथ ही अगले ट्रिलियन तक पहुँचने में 12 वर्ष और तीसरे ट्रिलियन के लिए सिर्फ पाँच वर्षों का समय लगा। जिस गति से सरकार एक साथ सामाजिक और आर्थिक सुधारों की एक विशाल मात्रा को क्रियान्वित कर रही है, मुझे उम्मीद है कि अगले दशक के भीतर, भारत हर 12 से 18 महीनों में अपने सकल घरेलू उत्पाद में एक ट्रिलियन डॉलर जोड़ना शुरू कर देगा, जिससे हम ट्रैक पर पहुँच सकेंगे। यह हमें शेयर बाजार पूँजीकरण के साथ, वर्ष 2050 तक 30 ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर ले जाएगा, जो संभवतः 45 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा। इन संख्याओं की प्रासंगिकता को स्पष्ट करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका आज 45 से 50 ट्रिलियन डॉलर के शेयर बाजार पूँजीकरण के साथ 23 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है।
जबकि भारत के लिए यह पूर्ण विकास संख्या आज और वर्ष 2050 के बीच किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक होगी, नाममात्र डॉलर आधारित जीडीपी कथा अभी-भी भारत की वास्तविक क्षमता को चित्रित नहीं करती है। देश की क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में किसी भी जीडीपी विस्तार के पैमाने के महत्व को सामान्यीकृत किया जाना चाहिए। पीपीपी के इस संदर्भ में, वैश्विक जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2050 तक 20% के उत्तर में होगी। मैं आपसे इस अविश्वसनीय संभावना पर विचार करने का आग्रह करूँगा, जैसा कि आप भारत के बारे में सोचते हैं।
एक देश, जिसे औपनिवेशिक शासकों द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, आज असाधारण विकास के मुहाने पर खड़ा है और अपने लोकतंत्र और विविधता से समझौता किए बिना उच्च आय वाले राष्ट्र के रूप में उभरने के रास्ते पर चलने वाला एकमात्र प्रमुख देश है। वर्ष 2030 से पहले, हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे और उसके बाद वर्ष 2050 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे। भारत की आर्थिक विकास और लोकतंत्र के संयोजन की सफलता की कहानी का कोई समानांतर नहीं है।
अब, मैं उस भारत के बारे में बात करना चाहता हूँ, जिसे मैं वर्ष 2050 में देखता हूँ और साथ ही परस्पर जुड़े कारकों के एक समूह की रूपरेखा तैयार करता हूँ, जो भारत के भविष्य के मार्ग को स्थापित करता है। ये सभी बिंदु, संयुक्त रूप से, आगामी तीन दशकों को विश्व पर भारत के प्रभाव के लिए सबसे परिभाषित अवधि बना देंगे।
पहला आयाम हमारे देश का जनसांख्यिकी का लाभांश है, जो न सिर्फ उपभोग को बढ़ावा देगा, बल्कि कर भुगतान करने वाले समाज के विकास को भी गति प्रदान करेगा। वर्ष 2050 में भी भारत की औसत आयु सिर्फ 38 वर्ष होगी। इस अवधि में, भारत की जनसंख्या 15% बढ़कर 1.6 बिलियन हो जाएगी, लेकिन प्रति व्यक्ति आय 700% से अधिक बढ़कर लगभग 16,000 डॉलर हो जाएगी। इस उपभोग करने वाले मध्यम वर्ग की वृद्धि से माँग में अभूतपूर्व वृद्धि होगी, जो बदले में, निजी और सरकारी व्यय में वृद्धि के साथ ही साथ विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के उच्चतम स्तर को आकर्षित करेगी। इस चालू वर्ष में, उम्मीद है कि भारत में 15% की वृद्धि दर्ज होगी और 100 बिलियन डॉलर से अधिक के एफडीआई के अब तक के उच्चतम स्तर की प्राप्ति होगी। इस तरह के निवेश महत्वपूर्ण नौकरी के विस्तार की नींव रखने में विशेष योगदान देते हैं। वास्तव में, वर्ष 2000 के बाद से भारत के एफडीआई प्रवाह में 20 गुना से अधिक वृद्धि दर्ज की गई है और मुझे उम्मीद है कि यह वर्ष 2050 तक एक ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा। एफडीआई को आकर्षित करने के लिए एक बड़ी अर्थव्यवस्था के भीतर आंतरिक माँग से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है और भारत में बढ़ते वैश्विक विश्वास का इससे बेहतर संकेत कोई और नहीं हो सकता है।
दूसरा आयाम उद्यमिता की गति है, जो भारत देख रहा है। डिजिटलाइज़ेशन ने इस वेग को रफ्तार प्रदान की है और यह डिजिटल रूप से सक्षम भारत के संचालन, जीवन और उपभोग के हर पहलू में आवश्यक बदलाव ला रहा है। वर्तमान दुनिया के संदर्भ में, आंत्रप्रेन्योरशिप और डिजिटलाइज़ेशन एक गतिशील अभिनव वातावरण स्थापित करने के उद्देश्य से दृढ़ता से जुड़े हुए हैं और गठबंधन करते हैं। डिजिटल भारत स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और कौशल विकास को परिवर्तित कर देगा और एक अधिक न्यायसंगत समाज का निर्माण करेगा। भारत की गति और डिजिटल टेक्नोलॉजीस को अपनाने से बड़े पैमाने पर नए और अभिनव बाजार को स्थान मिल सकेगा। मेरा मूल रूप से मानना है कि अगले तीन दशक भारत को आंत्रप्रेन्योरशिप के मामले में सबसे आगे ले जाएँगे। यह यात्रा पहले से ही अपनी राह पर है।
मुझे यह समझाने की आज्ञा दें। वर्ष 2021 में भारत में यूनिकॉर्न बनाने की रफ्तार दुनिया में सबसे अधिक रही है। यह रफ्तार जारी रहेगी और उत्पन्न होने वाले प्रत्येक यूनिकॉर्न के लिए, हम दर्जनों माइक्रो-यूनिकॉर्न्स की उत्पत्ति देखेंगे। वर्ष 2021 में, भारत ने हर 9 दिनों में एक यूनिकॉर्न जोड़ा। इसने विश्व स्तर पर सबसे बड़ी संख्या में वास्तविक वित्तीय लेन-देन निष्पादित किए, जिसका आँकड़ा चौंका देने वाला यानि 48 बिलियन है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस और जर्मनी के संयुक्त से 6 गुना अधिक था। इसने चौथी औद्योगिक क्राँति के लिए एक आधार तैयार किया है, जहाँ मानव और मशीन सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसके बाद एआई और वेब 3.0 क्राँति का अनुसरण किया जाएगा, जहाँ भौतिक और डिजिटल दुनिया का आपस में जुड़ाव दिखाई देता है। मैं उम्मीद करता हूँ कि जिस तरह भारत की आंतरिक माँग के कारण एफडीआई में तेजी देखने में आई है, उसी तरह स्टार्ट-अप्स की संख्या में बढ़ोतरी होने से वेंचर कैपिटल इनवेस्टमेंट में भी उछाल आएगा। वर्ष 2015 में भारत में वीसी फंडिंग ने पहली बार एक बिलियन डॉलर का आँकड़ा पार किया था। इस वर्ष वीसी फंडिंग 50 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगी। यह केवल 8 वर्षों में 50 गुना बढ़ी है। भारत इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि कैसे एक स्मार्टफोन और आकांक्षाओं से संचालित सस्ता डेटा रोजगार सृजित कर सकता है और एक राष्ट्र को बदल सकता है।
तीसरा आयाम, जो भारत के लिए एक शक्तिशाली ट्रांसफॉर्मेशन लीवर साबित होगा, वह है एनर्जी ट्रांज़िशन का स्थान। ऊर्जा का अभाव आज विकासशील विश्व की सबसे बड़ी चुनौती है, और इस अंतर को भरने के लिए अधिक मात्रा में रिन्यूएबल एनर्जी की आवश्यकता होगी। जबकि भारत वर्तमान में अक्षय ऊर्जा आकर्षक सूचकांक में तीसरे स्थान पर है और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोग करने वाला देश है, ऐसे में भारत का ऊर्जा संक्रमण अद्वितीय होगा, क्योंकि यह अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की राह पर आगे बढ़ रहा है। वर्ष 2050 तक, भारत को वर्तमान में खपत की तुलना में 400% अधिक ऊर्जा की इकाइयों की आवश्यकता होगी।
हालाँकि, यह चुनौतीपूर्ण लग सकता है, लेकिन जो हम टेक्नोलॉजी की उन्नति देख रहे हैं, उससे यह संभव होने की उम्मीद है। रिन्यूएबल एनर्जी, विशेष रूप से सोलर पॉवर की लागत में नाटकीय और निरंतर गिरावट को देखते हुए, खासकर ग्रीन पॉवर की सीमांत लागत ‘शून्य’ की ओर अग्रसर है। इस ‘शून्य’ लागत वाले इलेक्ट्रॉन के जल के अणु को आर्थिक रूप से विभाजित करने और भविष्य में 100% ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की क्षमता अब निश्चित है। ग्रीन हाइड्रोजन के साथ मिलकर सोलर और विंड एनर्जी का संयोजन, भारत के लिए अभूतपूर्व संभावनाओं के द्वार खोलता है। मैं यहाँ तक कहना चाहूँगा कि वैकल्पिक ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में क्राँति ने इस संभावना को खोल दिया है कि वर्ष 2050 तक, भारत नेट ग्रीन-एनर्जी एक्सपोर्टर बन सकता है।
यह किसी भी प्रक्रिया के माइक्रो साइजिंग में तेजी लाने के लिए आवश्यक विकेंद्रीकृत बिजली उत्पादन को भी सक्षम करेगा। यह माइक्रो-मैन्युफैक्चरिंग, माइक्रो-एग्रीकल्चर, माइक्रो-वॉटर, माइक्रो-बैंकिंग, माइक्रो-हेल्थकेयर, माइक्रो-एजुकेशन, और तो और वह सब कुछ सक्षम करेगा, जो भारत की ग्रामीण आबादी को अपने विकास के लिए चाहिए। पृथ्वी को शीतलता प्रदान करना अगले कई दशकों में सबसे अधिक लाभदायक व्यवसायों में से एक होगा और रोजगार सृजन के मामले में सबसे बड़ा विकल्प होगा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ग्लोबल एनर्जी ट्रांज़िशन का नेतृत्व करेगा। यही कारण है कि अदाणी ग्रुप न केवल भारत का, बल्कि ग्लोबल एनर्जी ट्रांजिशन ड्राइविंग में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। अगले दशक में, हम इस क्षेत्र में 70 अरब डॉलर से अधिक का निवेश करेंगे और दुनिया की सबसे एकीकृत रिन्यूएबल एनर्जी वैल्यू चेन का निर्माण करेंगे। भारत की विकास गाथा में मेरे भरोसे का इससे बड़ा कोई संकेत नहीं हो सकता।
अपने आशावादी नजरिए के साथ, मैं मानता हूँ कि अर्थव्यवस्था के विकास के साथ अभी-भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। हम जो नहीं कर सकते, वह क्लासिक टू-स्पीड नेशन ट्रैप में गिरना है, जहाँ समाज का शीर्ष आधा भाग समृद्ध होता है और निचला आधा गरीब रहता है। इसलिए, हमारे धन सृजन को प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद से संबंधित परिमाणात्मक कारकों और शिक्षा, कौशल व स्वास्थ्य देखभाल सहित गुणात्मक कारकों, दोनों पर ध्यान देना चाहिए।
चूँकि, घरेलू कम्पनियाँ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत के मार्केट साइज का लाभ उठाती हैं, इसलिए हमें मजबूत जनादेश की आवश्यकता होगी, जिसमें कॉर्पोरेट्स को एक सामाजिक संरचना को सक्षम करने की चुनौती के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जो हमारी संस्कृति के मूल को पहचानते हैं और हमारी राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप हैं। भारत को अपनी भौगोलिक सीमाओं से “मुनाफा बनाने और लेने” वाले देश के रूप में नहीं देखा जा सकता है। यही कारण है कि मैंने शुरुआत में कहा कि बहुध्रुवीय दुनिया में महाशक्तियों को यह स्वीकार करना चाहिए कि लोकतंत्र का कोई एक आकार नहीं है, जो सभी के लिए उपयुक्त हो और वैश्वीकरण के बाद की स्थिति उतनी सपाट नहीं है, जितना कि भविष्यवाणी की गई थी।
हम वर्ल्ड एकाउंटिंग कांग्रेस में हैं और इसलिए अब मैं इस पेशे के भविष्य के बारे में अपने विचारों को संक्षेप में बताना चाहता हूँ। मैं पूरी तरह से इस दृष्टिकोण से सहमत हूँ कि भारत ऑफशोर अकाउंटिंग सर्विसेस के लिए सबसे बड़ा केंद्र बनने की अपनी यात्रा जारी रखेगा और वैश्विक ज्ञान प्रक्रिया आउटसोर्सिंग बाजार में अपनी हिस्सेदारी को और बढ़ाएगा। क्लाउड आधारित, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिस्ट्रीब्यूटेड कम्प्यूटिंग और साइबर टेक्नोलॉजी में हुई प्रगति, इसे बहुत आसान बनाती है। मुझे लगता है कि कुछ घरेलू कम्पनियाँ हमारे लागत-दक्षता समीकरण की अंतर्निहित ताकत को देखते हुए इस विशाल संभावना का पूरा लाभ उठा रही हैं। हालाँकि, मेरे विचार में, फाइनेंशियल इंटेलिजेंस, बजट और मात्रात्मक व तकनीकी कौशल लेखाकारों की मेज पर लाने की समझ को देखते हुए, मेरा मानना है कि कुछ सबसे बेहतर सीईओ या सेवा प्रमुखों को भी अकाउंटिंग प्रोफेशन से आना चाहिए। यही वह है, जो मैं अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स से कहूँगा कि वे आपके अनुसरण करने वाले अकाउंट्स की युवा पीढ़ियों की आकांक्षा होते हुए उन्हें प्रेरित करें।
मेरे प्यारे दोस्तों, मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करता हूँ कि यदि कभी भारतीय होने का सबसे सही समय, भारत में होना, और भारत के साथ संबद्ध होने का सबसे सही समय कभी है तो अभी है। एक नए लचीले भारत के निर्माण की नींव पहले ही रखी जा चुकी है। हम एक ऐसा भारत होंगे जो आत्मनिर्भर बनने में मदद करने के लिए हमारे अपने बाजारों में टैप करेगा। गरिमा और समानता पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला भारत। ऐसा भारत जिसमें आकांक्षा करने का साहस हो। एक ऐसा भारत जो एक जिम्मेदार शक्ति है और अपने बॉर्डर्स पर मजबूती से खड़ा है।
जो नीतियाँ लागू की गई हैं, उन्होंने हमारे देश को पिछले एक दशक में जबरदस्त प्रगति करने की अनुमति प्रदान की है और हमें एक आत्मनिर्भर भारत बनने की राह पर मजबूती से खड़ा किया है, एक ऐसा आत्मनिर्भर समाज जो 100% साक्षर है, 100% स्वस्थ है और 100% व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित है, और सबसे महत्वपूर्ण एक आत्मनिर्भर भारत, जिसने गरीबी को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है, ऐसा भारत जो उक्त सभी बिंदु वर्ष 2050 से पहले हासिल करने के लिए तत्पर है।
महाशक्ति होने के नाते यही होना चाहिए।
मुझे आशा है कि आप भारत के बारे में मेरे उत्साह को साझा करेंगे।
धन्यवाद्
जय हिन्द