स्वतंत्र भारत की राजनीति में जिन महिलाओं ने लौह-छवि के साथ खुद को पुरुष प्रतिद्वंद्वियों से बीस साबित किया, उनमें 14 बरस से भी ज्यादा तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयराम जयललिता का नाम शीर्ष पर है.
फिल्म तमिल-तेलुगु-हिंदी में बनी है. देसी बायोपिक फिल्में अक्सर व्यक्ति-पूजा की तरह सामने आती हैं और थलाइवी भी वैसी ही है. बायोपिक फिल्मों से आप शख्सियत का पूरा सच नहीं जान सकते.
दोनों साथ में कई फिल्में करते हैं. एमजीआर पर जया आसक्त होती है और एमजीआर को भी उसका खरा-निडर स्वभाव पसंद आता है. दोनों के बीच ऐसे रिश्ते की शुरुआत होती है, जिसे कोई एक नाम नहीं दिया जा सकता. जिसके कई आयाम होते हैं.
करीब एक दशक बीतता है. बढ़ती उम्र की वजह से जया को फिल्में मिलनी लगभग बंद हो गई हैं. तभी फिर एमजीआर से जया की मुलाकात होती है. वह उसे अपनी पार्टी में शामिल होने को कहते हैं.
मगर निर्देशक विजय की थलाइवी ऐसी सशक्त महिला की कहानी के रूप में सामने आती है, जो आत्मसम्मान की लड़ाई पूरी मजबूती से लड़ती है और मर्दों की राजनीतिक दुनिया में ‘अम्मा’ का दर्जा पाती है.