ऊसराहार (घनश्याम शर्मा)।भगवान राम के धनुष तोड़ते ही मिथिला में देवताओं ने पुष्पों की वर्षा कर दी, सीताराम की जय जयकार गूंज उठी वहीं धनुष के टूटने से उपजे क्रोध में परशुराम और लक्ष्मण के मध्य संवाद का सुबह तक लोगों ने आनंद उठाया।
ऊसराहार क्षेत्र के गांव कुदरैल में आयोजित रामलीला का शुभारंभ समाजसेवी शशांक मिश्रा ने किया उन्होंने कहा कि रामलीला भारत की सांस्कृतिक और लोक कला का जीवंत उदाहरण है कार्यक्रम में धनुष यज्ञ, परशुराम-लक्ष्मण संवाद और सीता स्वयंवर की लीला का मंचन किया गया। अयोजित रामलीला मंचन में मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन करते हैं। जिसमें उनकी शर्त हैं कि जो शिव धनुष को तोड़ेगा, उसी के साथ जानकी का विवाह संपन्न होगा। जनक के आमंत्रण पर स्वयंवर में अनेक देशों के राजाओं के साथ गुरू विश्वामित्र भी शामिल होने आते हैं, जिनके साथ राम और लक्ष्मण भी आते हैं। घोषणा होते ही एक एक करके सभी राजा धनुष को तोड़ने के लिए जोर लगाते हैं, मगर उसे उठाने की कौन कहे कोई हिला तक नहीं सका। जिस पर राजा जनक दुखी होकर कहते है कि क्या देश वीरों से खाली हो गई है।क्या कोई महारथी इस धनुष को उठा नहीं सकता। इस पर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और उनकी राजा जनक से तीखी नोकझोंक हो जाती है।
मुश्किल स्थिति देखते हुए विश्वामित्र ने राम को इशारे से धनुष तोड़ने की आज्ञा देते है।श्रीराम द्वारा धनुष उठाते ही वह टूट गया। धनुष टूटते ही पूरे पांडाल में जयश्री राम के गगनभेदी नारे लगने लगने लगते है। तभी भरी सभा वहां परशुराम पहुंच जाते हैं।और धनुष के टूटने पर क्रोधित हो उठते हैं। इसके बाद लक्ष्मण और परशुराम के बीच तीखा स्वाद होता है। इसके पश्चात धूमधाम से भगवान श्रीराम व सीता जी का विवाह सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ समाजसेवी शशांक मिश्रा ने रामायण का पूजन और भगवान राम-लक्ष्मण की आरती उतार कर किया।