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गुलाब-गेंदा के पुष्प उगाकर किसान मनीष पाल रहा अपना परिवार 

फोटो: मनीष कुमार अपने गुलाब के खेत में

जसवंतनगर (इटावा)। आमतौर से किसानो के लिए खेती किसानी अब लाभकारी नहीं रही है। उन्हें मेहनत ज्यादा करनी पड़ती, लाभ कम ही होता।

इसी के चलते बहुत से किसान अब आम फसलें उगाना छोड़, खेती किसानी की अन्य विधाएं चुन रहे है। इनसे वह न केवल जीवकोपार्जन कर रहे हैं, बल्कि दूसरों को प्रेरित भी कर रहे हैं कि वह खेती की आधुनिक और लाभकारी विधाएं चुनकर उनसे लाभ उठाएं।

कस्बा जसवंत नगर के मोहल्ला लुधपुरा निवासी 32 वर्षीय युवा किसान मनीष कुमार माली ने खेती किसानी में ऐसी ही एक विधा का चुन फूलों की खेती करने पर अपना सर्वस्व लगाया है और आज नगर में वह न केवल अपना भरा पूरा परिवार चला रहे है, बल्कि लोगों को फूलों और गुलदस्ता की खरीद फरोख्त के लिए बड़े शहरों की दौड़ लगाने से रोकने में भी कामयाब हुए है।

मनीष इस समय जसवंतनगर का सुप्रसिद्ध फूल विक्रेता है ।वह शादी व्याहों में फूलों की स्टेज सजाते है और विभिन्न अवसरों के लिए लोगों को फूल मालाएं, गुलदस्ते ,बूके।आदि उपलब्ध कराते हैं,जो बड़े शहरों के मुकाबले काफी सस्ते भी लोगों को उपलब्ध होते हैं।

मनीष के पिता रामबाबू और बाबा राम भरोसे अपनी जाति के अनुसार पीढ़ियों से मालीगीरी का काम करते थे। उनके पास कुल मिलाकर दस बीघा खेती थी, जिसमे वह आम फसलें उगाकर परिवार चलाते थे।

पिछले एक दशक से मनीष ने अपनी इस पारिवारिक खेती की जमीन में फूलों की खेती करना आरंभ किया।पहले दो तीन वर्षों तक उन्हें कोई संतोषजनक परिणाम नहीं मिला। शुरू में उन्हें आगरा, मथुरा और कानपुर से लाकर गुलाब की कटिंग अपने खेतों में लगानी पड़ी थी, जो पहले दूसरे वर्षो में उन्हें कोई ज्यादा फायदा नहीं दी।

फूलों की खेती से उनके पूरे परिवार का कोई वास्ता नहीं रहा था, इसलिए मनीष ने बाहर के कुछ फल फूल पैदा करने वालों से जानकारियां भी हासिल की। गुलाब की खेती में नई तकनीकों को जाना और अपनाया। इसके अलावा उन्होंने गेंदा, ग्लाइडिस, केलेंडुला की भी खेती करना शुरू किया।

शुरू में गेंदा के बीजों को उन्होंने खेतों में बोया और पहले दूसरे वर्ष अनुभव प्राप्त किया। बाद में तरह तरह के गेंदा की किस्मों और उसकी कटिंग की वैरायटी बोई।इस तरह गुलाब और गैंदा के फूलों की भरपूर पैदावार हासिल करने लगे।

मनीषकुमार ने बताया कि वह हर वर्ष गेंदा और गुलाब से इतनी कमाई कर लेते हैं कि अपने 10-15 सदस्यीय परिवार की रोजी रोटी आराम से चलाते हैं।

उन्होंने बताया कि आसपास कहीं फूलों की मंडी नहीं है, इस वजह से उन्हें अपनी पैदावार यही खपानी पड़ती है। साथ ही अंग्रेजी फूलों के लिए आगरा ,कानपुर, मथुरा आदि की मंडियों को दौड़ना पड़ता है। ताकि गुलदस्ते और बुके लोगों की मांग के अनुसार बनाकर बेच सके। उन्होंने मांग की कि सरकार फूलों की खेती करने वालों को परिश्रय दे। उनकी बिक्री का प्रबंध करें। यदि सरकार गांवों और कस्बों में पुष्पों की खरीद की व्यवस्था कर दे, तो ज्यादा से ज्यादा किसान फूलों की खेती शुरू कर लाभकारी मूल्य हासिल कर सकते हैंसाथ ही अपने जीवन स्तर में परिवर्तन ला सकते हैं।

*वेदव्रत गुप्ता