फोटो :- नेत्रों की जांच करता एक नेत्र विशेषज्ञ
सैफई(इटावा,)। विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के अवसर पर उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय की ओपीडी में गुरुवार को नेत्र जागरूकता कैंप का आयोजन किया गया।
विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. डॉ रमाकांत यादव ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। उन्होंने आमजनों से कहा कि ग्लूकोमा (काला मोतियाबिद) आंखों का एक गंभीर रोग है। इसके प्रति सभी को सचेत रहना चाहिए। आंखें हैं तो सबकुछ अच्छा लगता है। आंखें अनमोल है, पूरी दुनिया को आंखों से ही देखते हैं। इसलिए आंखों से संबंधित कोई भी तकलीफ हो तो बिना देर किए नेत्र चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए।
आगे कहा कि 40 साल की उम्र पार होने के बाद नेत्र चिकित्सक से मिलकर आंखों की जांच करवानी चाहिए। मोतियाबिद के बाद सबसे ज्यादा अंधापन की शिकायत इसी बीमारी से है। इसमें मुख्य रूप से आंखों की नसें धीरे-धीरे खराब होने लगती हैं। समय पर इलाज नहीं होने से अंधापन हो सकता है।
विश्वविद्यालय के नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ रवि रंजन ने बताया कि ग्लूकोमा को आम भाषा में काला मोतिया भी कहते हैं। यह रोग ऑप्टिक तंत्रिका (दृष्टि के लिए उत्तरदायी तंत्रिका) में गंभीर एवं निरंतर क्षति करते हुए धीरे-धीरे दृष्टि को समाप्त कर देता है। कई बार आंखों से रोशनी के चारों तरफ रात में घेरा दिखाई पड़ने लगता है। आंखों की सुरक्षा के लिए जागरूक रहने की जरूरत है।
अन्य महत्वपूर्ण कारकों में से एक कारक आंखों के दबाव का बढ़ना है, लेकिन किसी व्यक्ति में आंख का सामान्य दबाव रहने पर भी काला मोतियाबिंद विकसित हो सकता है। काला मोतिया की पहचान यदि प्रारंभिक चरणों में कर ली जाए तो दृष्टि को कमजोर पड़ने से रोका जा सकता है। ऐसे में नियमित जांच कराएं और आंखों में होने वाले किसी भी नए बदलाव या लक्षण पर ध्यान दें। यदि इस रोग का उपचार न किया जाए तो व्यक्ति अंधा भी हो सकता है।
*वेदव्रत गुप्ता/वी पी सिंह यादव