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आलू छोड़ दिया, मगर ईर्ष्यालु और झगड़ालू बन गए:मुनि अमित सागर

फोटो:- प्रवचन करते मुनि 108 अमित सागर जी महाराज और श्रोता गण

जसवंतनगर(इटावा)। हमें भगवान की पूजा, अर्चना, स्वाध्याय एवं साधुओं की सेवा दिल खोलकर और पूरे भक्ति भाव से करनी चाहिए। धर्म मार्ग में आगे बढ़ने के लिए छोटे-छोटे नियमों की शुरुआत करना चाहिए। चारों अनुयोगों का क्रम से अध्ययन कर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए

यह गूढ़ ज्ञान नगर के जैन बाजार स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में 108 अमित सागर जी महाराज ने अपनी मंगलमय वाणी से प्रवचन करते रविवार सुबह धर्मालु श्रोताओं को दिया है।

उन्होंने कहा कि हम सब आत्मा की चर्चा तो करते हैं,लेकिन हम कभी आत्मा की बात नही सुनते।चारो योगों के संबंध में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमने जैन धर्म का पालन करते आलू को तो छोड़ दिया,लेकिन ईर्षालु और झगड़ालू हो गए।

धर्म के मुख्य दो कार्य है-दान और पुण्य! अपने अपने पुण्य को बढ़ाएं। इसके साथ ही उन्होंने उदाहरण देकर पुण्य और पाप के बारे में कई बातें बताई।

तत्वार्थ सूत्र ग्रंथ पर प्रकाश डालते उन्होंने कहा कि आत्मानुभव करने वाली जीव को सांसारिक वस्तुएं अच्छी नहीं लगती। हमें यह मनुष्य भाव मिला है,तो इसे धर्म मार्ग में लगाते हुए अन्याय,अनीति छोड़कर अपनी चेतना को जागृत कर शुभ एवं धर्म कार्य में जुट जाना चाहिए,जिससे हमारा मनुष्य जीवन सार्थक हो सके।

साथ ही उन्होंने बताया कि पंच परमेष्ठी जीवंत पुण्य के परमाणु हैं। हमें हमेशा उनकी आराधना मरते दम तक करनी चाहिए।

इससे पूर्व प्रातःअजितनाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक के अवसर पर जिनेंद्र भगवान का अभिषेक शांतिधारा एवं महाअर्घ्य समर्पितकिए गए, जिसमें इंद्र चेतन जैन,आशीष जैन,सचिन जैन,विनीत जैन,मनोज जैन,महेंद्र जैन आदि ने श्री जी काअभिषेक किया। राकेश जैन के नेतृत्व में दर्जनों बच्चों ने सामूहिक पूजन एवं पाठशाला में प्रतिभाग करते हुए जैन धर्म का मर्म समझा।

कार्यक्रम में श्रोताओं मैं अंकुर जैन, अंकित जैन, राजकुमार जैन, महेश जैन, मोहित जैन, सुनील जैन, शैलेंद्र जैन, इंद्रजीत जैन, नरेंद्र जैन, विनोद जैन, साधना जैन, आयुषी जैन, बीना जैन, शालिनी जैन, कनक लता जैन, रूबी जैन, अनीता जैन, आरती जैन आदि मौजूद रहे।

*वेदव्रत गुप्ता