इटावा के तीन प्रमुख देवी मंदिरों में ब्रह्माणी देवी की माहिमा अपरम्पार
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*जिला मुख्यालय से 35 और जसवंतनगर से 15 किलोमीटर दूर
* यमुना बीहड़ में विराजित है,देवी
* पर्यटन स्थल घोषित हो
जसवंतनगर(इटावा)। इटावा जिले की आराध्य देवी स्थलों में कालका देवी लखना ,काली वाहन इटावा, और ब्रह्माणी देवी जसवंत नगर में ब्रह्माणी मैया की महिमा और चमत्कार की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई है। इसी कारण हजारों भक्त यमुना के बीहड़ों में विराजित इन देवी के दर्शन करने के लिए झंडे घंटे और प्रसादी लेकर पहुंचते हैं।
अष्टमी और नवमी के दिन नवरात्रियों पर भारी भीड़ भक्तजनों को जमा होती है। हजारों घंटे और झंडे चढ़ने से यमुना के जंगल में मंगल जैसा माहौल उत्पन्न हो जाता है ।ब्रह्माणी मैया का विहंगम मंदिर उत्तर रेलवे के बलरई स्टेशन से दक्षिण में 6 किलोमीटर दूर यमुना की तलहटी और ऊंचे ऊंचे खारों में स्थित है
जसवंत नगर कस्बे से करीब 14-15 किलोमीटर दूर स्थित देवी मैया के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 15-20 वर्ष पूर्व मुलायम सिंह यादव ने अपने शासन काल मे पक्की सड़क का निर्माण कराया था ,अन्यथा लोग पैदल और साइकिलों से लंगुरिया गाते ,जमीन पर दंडवत करते वहां मनौती मांगने पहुंचते थे ।
देवी ब्रह्माणी के मंदिर का कोई अधिकृत इतिहास नहीं है ,मगर मूर्ति देखने से यह सैकड़ों वर्ष पुरानी लगती है। मंदिर की स्थापना के बारे में किंबदंती है कि मध्य प्रांत के कोई राजा गंगा स्नान व दर्शन करने फर्रुखाबाद गए हुए थे।वहां उन्हें स्वप्न दिखाई दिया कि वह जहां पर स्नान कर रहे, वहां गंगा की खुदाई करेंऔर वहां तलाशने पर ब्रह्माणी मैया की मूर्ति मिलने को कहा गया था। देखे गए स्वप्नानुसार ब्रह्माणी मैया की मूर्ति राजा को प्राप्त हुई ।स्वप्न में उन राजा से यह भी कहा गया था कि वह हाथी पर इस मूर्ति को लेकर अपने राज्य की सीमा की ओर चले और जहां भी हाथी बैठ जाए, वही इन देवी का मंदिर बनवा कर उन्हें विराजित करवा दे।
तदनुसार राजा जब यमुना के किनारे स्थित जाखन शहर के पास पहुंचा तो वहां उसका हाथी बैठ गया। राजा ने तभी वहां इन प्राप्त देवी ब्रह्माणी देवी का मंदिर बनवा दिया।
आज ब्रह्माणी का मंदिर यमुना के बीहड़ में मौजूद है। मगर जाखन शहर के अवशेष ही आसपास में अब शेष हैं। जाखन अब बीहड़ी क्षेत्र का बड़ा गांव है। कालांतर में मंदिर खंडहर की स्थिति में पहुंच गया था। मगर सन 18सौ के आसपास भिंड ,मध्य प्रदेश के एक मुद्गल पंडित कमलापति ,जो जमीदार थे और प्रायः देवी दर्शन को आते थे,उन्होंने देवी मंदिर का जीर्णोद्धार आरंभ कराया । फिर वहां स्वयं पुजारी हो गए। उनकी नौ पीढ़ियों से उनके परिवारी ही मंदिर के पुजारी के रूप में हैं। इन पुजारी के वंशज मध्यप्रदेश के भिंड से आकर नगला तौर में बस गए थे।उन्होंने मंदिर की आमदनी और जीर्णोद्धार के लिए राजा भदावर से सहयोग लेकर काम कराया। बाउंड्री और कमरे आदि बनवाये।
बताते हैं की मंदिर से लगी लगभग 6 एकड़ जमीन भी है।बारी बारी से एक एक साल सर्वकारी इसी पुजारी परिवार के सदस्यगण संभालते हैं। इन पुजारियों में मंदिर की सर्वकारी को लेकर कोर्ट में मुकदमा भी चलता रहा है, मगर दोनों गुट आपस में 1-1 वर्ष मेला व्यवस्था को लेकर समझौता किए हैं। दूसरी हो नगला तौर के कुछ स्वयंभू देवी ब्रह्माणी मंदिर से लगी जमीन को अपनी बताते अपनी लंबरदारी हांकते नहीं अघाते हैं।
ब्रह्माणी मंदिर घने बीहड़ में होने के कारण वर्ष भर रोज आसपास के भक्त व इक्का-दुक्का लोग ही पहुंचते थे। चैत्र नवरात्रि, आषाढ़ पूर्णिमा तथा क्वार की नौ देवियों में भारी मेला लगता है।
चैत्र नवरात्रि में अष्टमी-नवमी पर लाखों की भीड़ पहुंचती है ।आषाढ़ पूर्णिमा पर ध्वजा वंदिनीय पूर्णिमा होने के कारण भीड़ कुछ ज्यादा ही एकत्रित होती है। आषाढ़ पूर्णिमा का मेला भी 2 दिन चलता है। ब्रह्माणी देवी मंदिर पुराने राजे रजवाड़ों के लिए आराध्य स्थल रहा है।राजा मानसिंह राजा नरसिंह राव, राजा मलाजनी, राजा प्रताप नेर जूदेव के वंशज यहां मनौती मनाने और अपने अस्त्र शस्त्र पूजने के लिए प्रायः आते थे।
बताते हैं कि भदावर स्टेट के राजा मानसिंह के लंबे समय तक जब कोई संतान नहीं जन्मी, तो उन्होंने देवी ब्रह्माणी की आराधना की। तन उन्हें राजा रिपुदमन सिंह पुत्र के रूप में देवी के वरदान से प्राप्त हुए। इसके बाद उनकी राजमाता शिरोमणि देवी ने संवत 2012 में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
ब्राह्मणी मैया का नाम दस्युओं और बागियों के कारण काफी चर्चित रहा है । नवरात्रों में मंदिर पर झंडा चढ़ाने और देवी आराधना के लिए पूर्व बागी डाकू मानसिंह ,माधो सिंह, तहसीलदार सिंह, मोहर सिंह, मलखान सिंह ,फूलन देवी, छविराम अवश्य ही आते थे। पुलिस नाकेबंदी के बावजूद वह वेष बदलकर मैया के द्वार पर माथा अवश्य टेक जाते थे। ब्रह्माणी का बीहड़ सदैव से वैसे ही बागियों के लिए सबसे सुरक्षित शरण स्थली थी ।
नवरात्रियों पर अष्टमी-नवमी पर लगने वाले मेले में इटावा ,भिंड ,ग्वालियर, मुरैना ,वाह, फिरोजाबाद, मैनपुरी, फरुखाबाद, आदि जिलों के देवी भक्त तो पधारते ही हैं।एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, बंगाल से भी भक्त मनौती मांगने आते है।इस वजह से मंदिर के सकरे भवन में विराजमान देवी ब्रह्माणी की मूर्ति के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं मंदिर परिसर में जलने वाली धूप और दीपको के कारण दर्शन और भी दुर्लभ होजाते हैं। मगर दसियों किलोमीटर दूर से आए भक्तगण दर्शन पाकर ही हटते हैं झंडे चढ़ाने वालों की लाइन भी देखते ही बनती हैं ।लांगुरिया गाती महिलाएं नंगी पीठ पर चाबुक बरसाते लांगुर वीर और अपने शरीर को तीरों,भालों, चाकुओं से गोदते भक्त अलग ही छटा पैदा करते रोमांच पैदा करते हैं ।झंडों की संख्या हजारों में होने के कारण, उन्हें ए कुंड में डालकर लहराया जाता है ।देवी गीतों और लगुरिया का स्वाद यहां इतना रस भरा सुनने को मिलता है कि उड़ती धूल, तेज धूप के बीच भी भक्त धक्के खाते हटाये नहीं हटते -‘”मैंया नौ बच्चन का बाप खिलौना मांगे लांगुरिया”, देवी गीत सुनकर आखिर कौन व्यक्ति हंसता-हंसाता मन्त्र मुग्ध नहीं होगा? देवी ब्राह्मणी तक अब सड़क बन गई है ,मगर पेयजल तथा बिजली की व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं है ,जितनी इस क्षेत्र में होनी चाहिए। मंदिर के आसपास के क्षेत्रों में लक्खी भीड़ के कारण व्यवस्थाएं प्रायः चरमरा जाती हैं। पुलिस व्यवस्था ढीली पड़ जाती है। इसी वजह कुछ वर्षों पूर्व झंडा चढ़ाते समय पीएसी ने गोलियां चला दी थी और कईं लोग मारे गए थे।जिला प्रशासन के अधिकारी 200 सालों से मेले में आते रहे हैं ।अंग्रेज कलेक्टर ह्यूम भी ब्राह्मणी आकर मंत्र मुग्ध हुआ था। आजाद भारत के कई कलेक्टर और पुलिस कप्तानों को भी देवी मेले में होने वाली भीड़ ने दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर किया।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके अनुज शिवपाल सिंह यादव अपना चुनाव अभियान प्रायः देवी ब्रह्माणी के दर्शन करके ही शुरु करते रहे थे।खुद स्व मुलायम सिंह का कहना था कि वह बचपन में देवी ब्राह्मणी के दर्शनों को अपने गांव सैफई से साइकिल से आते थे। मुलायम सिंह और शिवपाल सिंह यादव के प्रयासों से देवी ब्रह्माणी मंदिर के चारों ओर काफी कुछ व्यवस्थाकी गईं। मगर अभी भी इस क्षेत्र का विकास बहुत ही जरूरी है।