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तालों से ज्यादा मशहूर हुआ अलीगढ़ के गायक का संगीत, अब पत्नी और बेटे ने उठाया सुरों का बीड़ा

उत्तर प्रदेश का शहर अलीगढ़ वैसे तो तालों के लिए ही दुनिया भर में मशहूर रहा है, लेकिन इस शहर को इसके तालों से ज्यादा मशहूर किया यहां आजादी से तीन साल पहले जन्मे एक कलाकार ने, जिसको ईश्वर ने संगीत का अद्भुत ज्ञान दिया। हिंदी सिनेमा में फिल्म ‘चितचोर’, ‘गीत गाता चल’, ‘अंखियों के झरोकखे से’, ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’ और ‘नदिया के पार’ जैसी फिल्मों में मिट्टी की खूशबू से महकता संगीत देने वाले इस कलाकार का नाम है रवींद्र जैन। रवींद्र जैन ने जीवन भर नए कलाकारों को तलाशा, उन्हें तराशा और सुधी श्रोताओं के सामने संगीत का हीरा बनाकर पेश किया, ‘दादू’ के नाम से मशहूर रवींद्र जैन की इसी विरासत को अब उनकी पत्नी और बेटा आगे बढ़ा रहे हैं।

रवीन्द्र जैन की पत्नी दिव्या और उनके बेटे आयुष्मान इन दिनों संगीत के क्षेत्र में नए कलाकारों की तलाश में हैं। इसके लिए उन्होंन एक गजल प्रोजेक्ट शुरू किया है ताकि इस तरह की गायकी को आज के मॉडर्न युग मे बखूबी पेश किया जाए। ये विचार आयुष्मान को कोविड संक्रमण काल के दौरान आया था और इन दिनों वह इसे तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

ये बात तो सबको पता है कि रवींद्र जैन ने अपनी गायकी की शुरुआत मंदिरों में भजन गाने से की थी। आयुष्मान और उनकी मां दिव्या ने इसके लिए एक रवीन्द्र जैन यू ट्यूब चैनल तो शुरू किया है इसके साथ ही वह एक चैनल आरजे स्टूडियो भी शुरू कर चुके हैं। आयुष्मान के मुताबिक, ‘आरजे स्टूडियो एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां सभी तरह के गीत-संगीत के कलाकारों को मौका मिलेगा। हम लोगों ने गजल से इसकी शुरुआत की है।’

आयुष्मान कहते हैं, ‘मेरी नानी निर्मला जैन ने वर्षो पहले गजल लिखी थी। वह चाहती थीं कि उनकी लिखी गजल रिकॉर्ड हो और रिलीज की जाए। इसलिए हमने इसी गजल से इस आरजे स्टूडियो की शुरुआत की।’ इस प्रोजेक्ट में गायक अनूप जलोटा को जोड़ने की मंशा के संदर्भ में आयुष्मान जैन ने बताया कि इसमें हम अनूप जलोटा को भी शामिल करना चाहते थे क्योंकि उन्होंने भी ग़ज़ल के क्षेत्र में बड़ा काम किया है। इस प्रोजेक्ट में उन्हें जोड़ना जरूरी था जिनके पास बहुत अनुभव है।

28 फरवरी 1944 को जन्मे रवींद्र जैन के पिता इंद्रमणि संस्कृत के बहुत विख्यात ज्ञाता थे और उन्होंने अपने जन्म से दृष्टिहीन इस हेटे को जी एल जैन, जनार्दन शर्मा और नाथू राम जैसे संगीतज्ञों के पास संगीत शिक्षा के लिए भेजा। अपने गीतों में येसुदास और हेमलता से रवींद्र जैन ने खूब प्रयोग कराए। ‘राम तेरी गंगा मैली’ और ‘हीना’ के लिए दिया रवींद्र जैन का संगीत हिंदी फिल्म इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है। रामानंद सागर के धारावाहिक ‘रामायण’ के संगीत ने उन्हें हमेशा के लिए अमर कर दिया।