ए, के, सिंह संवाददाता जनपद औरैया
उत्तर प्रदेश-पत्रकारिता/मीडिया जगत का पहला ऐसे संगठन है जोकि लोक तन्त्र के चौथे स्तम्भ कहे जाने वाला वाला पत्रकार/मीडिया कर्मियों के अधिकारों की बुलंद आवाज उठाने वाला सामाजिक संगठन मीडिया अधिकार मंच भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सतेन्द्र सेंगर नें देश के समस्त मीडिया कर्मियों से अपील करते हुये कहा हैकि देश की आजादी से लेकर आज तक अधिकांश पत्रकारिता को निःशुल्क समाज सेवा के रूप में कराया जा रहा है, जबकि लोक तन्त्र का वह निशुल्क समाज सेवी जिन्हें हम अपना वोट देकर जनप्रतिनिधि बना देते है वहीं जनप्रतिनिधि संसद भवन बिधानसभा में पहुंचते ही अपने व अपने परिजनों के निजी स्वार्थ में संविधानिक तरीके से आधुनिक सुरक्षा सुविधायें, बेतन, पेंशन दर दर पेंशन लेते रहने का कानून बना लिया तो फिर लोक तन्त्र का चौथा स्तम्भ जोकि शिक्षित एवं जागरूक होनें के बाद भी देश को आजाद हुये 75 वर्ष बीतने के बाद भी मीडिया कर्मियों को सुरक्षा ब्यवस्था, आदि सुविधाओं से बंचित क्यों है, इसका मुख्य उद्देश्य यह हैकि यदि मीडिया को निशुल्क समाज सेवा कहकर कार्य कराये जाने की प्रथा बनाये रहेंगे तो मीडिया कर्मी शासन, प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों के आश्रित रहकर उनके इसरों पर कार्य करती रहेगी, आज निष्पक्ष एवं सत्यता की खबर प्रकाशन करने वाले अधिकांश पत्रकारों पर झूंठे मुकदमे लगाकर प्रशासनिक प्रताड़ना की जा रही या फिर उनकी हत्या कराई जा रही है, आज लोक तन्त्र की खुलेआम हत्या हो रही है, लोक तन्त्र में बैठे जिम्मेदारों की एक बड़ी सुनियोजित साजिश के तहत मीडिया को निःशुल्क समाज सेवी बनाकर कार्य कराते रहने का मतलब यह हैकि देश के उन लोगों की आवाज को ना उठाया जिन्हें वास्तविक आवश्यकतायें, देश व प्रदेश स्तर पर गरीबों के नाम पर चल रही अनन्य योजनायें जोकि अमीरों की हवेली बनाने का कार्य कर रही है वास्तविकता यह हैकि योजनाओं के पात्रों को आज भी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है, देश को आजादी दिलाने वाले महापुरुषों एवं संविधान के निर्माता ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि आने वाले दिनों में हम जिस लोकतांत्रिक देश की स्थापना कर रहे हैं कहीं वह गुलामी वाले समय से भी भयानक रूप धारण कर लेगा हमारी आने वाली पीढ़ी आजाद भारत की गुलाम नागरिक बन कर रह जाएगी। आज हमें तो ऐसा ही महसूस हो रहा है इसका मात्र एक उदाहरण देना चाहूंगा कि आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को आज तक संवैधानिक दर्जा नहीं प्राप्त हो सका यह बहुत बड़ा सवाल है आखिर क्यों? आज देश के अंदर अपने अस्तित्व के लिए जितना किसान तड़फड़ा रहा है रोजगार और शिक्षा के लिए जितना नौजवान और छात्र को बेचैनी है ठीक उसी तरह पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता आज अपने अस्तित्व के लिए अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए अपने संवैधानिक मान्यताओं के लिए संघर्ष पर संघर्ष किए जा रहा है लेकिन शासन सत्ता में बैठे हुए लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा है। इसका मात्र कारण है भ्रष्टाचार कायम रहे,, एक कहावत है अपना काम बनता तो भाड़ में जाए जनता। अगर स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना करनी है तो आजाद भारत में आजाद नागरिक बनकर के जीना है यह जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिक की है कि वह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को सशक्त बनाने में योगदान दें।