अनेक कारणों से लंबे समय में समाज में यह मान्यता स्थापित हो गई है कि भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका कमजोर थी। वे अशिक्षित थीं और घर-परिवार हो या शासन-प्रशासन, उनका स्थान महत्त्वपूर्ण नहीं था और उन्हें कोई अधिकार हासिल नहीं था। लेकिन भारत के इतिहास में ऐसी अनेक महिलाएं हुई हैं जो इस प्रचलित अवधारणा का खंडन करती हैं। जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर समाज में न केवल सम्मान हासिल किया, बल्कि देश और समाज के उत्थान में इतनी महान भूमिका अदा की, जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता डॉ. कृष्ण गोपाल ने ये बातें अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जन्मशती पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहीं।
डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं के लंबे असर के कारण लोगों के अंदर स्व का भाव कमजोर हो गया। आक्रांताओं के कारण समाज की कोई महिला सुरक्षित नहीं रही। इससे लोगों का स्वाभिमान कमजोर हो गया। माता अहिल्याबाई होल्कर ने इस बात को समझा और यह भी समझा कि राष्ट्र को मजबूत करने के लिए लोगों में स्वाभिमान की भावना भरना आवश्यक है। यही कारण है कि उन्होंने अपने निजी कोश से उस कालखंड में 200 मंदिरों का निर्माण करवाया। इंदौर राजघराने की माता अहिल्याबाई होल्कर के इस योगदान का यह परिणाम हुआ कि लोगों में आत्मसम्मान की भावना पैदा हुई।
इसी तरह विदेशी आक्रांताओं से पीड़ित समाज के बीच शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। बड़ी चतुराई से उन्होंने एक छोटा साम्राज्य स्थापित किया। 1674 में हिंदू पादशाही की स्थापना हुई। 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई। लेकिन इस छोटे से काल खंड में ही उन्होंने जनमानस में गजब की प्रेरणा भर दी। उनकी मृत्यु के 26 साल बाद तक औरंगजेब उस छोटे से साम्राज्य लड़ता रहा और अंत में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ही उसकी मृत्यु हो गई। शिवाजी की इस पूरी शक्ति के पीछे उनकी माता जीजाबाई की प्रेरणा ही काम कर रही थी। माता जीजाबाई के इस अद्भुत योगदान को इतिहास कभी भूल नहीं सकता।