माइक्रोप्लास्टिक की समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वातावरण में मौजूद प्लास्टिक के ये महीन कण बादलों के निर्माण से लेकर बारिश और यहां तक की जलवायु व मौसम के पैटर्न को भी प्रभावित कर रहे हैं। यह जानकारी पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों के अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी : एयर में प्रकाशित हुए हैं।
अध्यन में चौकाने वाला खुलासा
अध्ययन के अनुसार, प्लास्टिक के महीन कण बर्फ के नाभिकीय कणों के रूप में व्यवहार करते हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने चार प्रकार के महत्वपूर्ण माइक्रोप्लास्टिक्स की जांच की, ताकि यह समझा जा सके कि वे बर्फ के जमने को किस तरह से प्रभावित करते हैं। इनमें कम घनत्व वाली पॉलीइथिलीन (एलडीपीई), पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी), पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) और पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) शामिल हैं। पहले प्लास्टिक को पानी की बूंदों में लटकाया और बर्फ बनने का अध्ययन करने के लिए उन्हें धीरे-धीरे ठंडा किया।
बूंदों का तापमान पांच से दस डिग्री ज्यादा
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस औसत तापमान पर बूंदें जमीं, वह माइक्रोप्लास्टिक रहित बूंदों की तुलना में पांच से 10 डिग्री ज्यादा गर्म था। इस तरह पानी की बूंद में किसी भी प्रकार का दोष चाहे वह धूल, बैक्टीरिया या माइक्रोप्लास्टिक हो, वह उसके आसपास बर्फ बनने में मदद कर सकते हैं। ये छोटी संरचना बूंदों को उच्च तापमान पर भी जमने के लिए प्रेरित करती हैं, लेकिन गतिशील चुंबकीय क्षेत्र बर्फ के नाभिकीकरण को बाधित करते हैं।
समझिए कैसे करता है प्रभावित
बर्फ के नाभिकीकरण में व्यवधान होने पर बर्फ का निर्माण रुक जाता है। प्लास्टिक के महीन कणों के कारण बर्फ के नाभिकीकरण में गर्मी हस्तांतरण की दर में बदलाव हो जाता है या दबाव बढ़ जाता है। इसलिए बादलों में बर्फ निर्माण की माइक्रोप्लास्टिक की क्षमता के कारण मौसम और जलवायु पर व्यापक असर पड़ रहा है। जब बादलों में ज्यादा बर्फ होती है तो वो बारिश के पैटर्न को प्रभावित करती है।