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उन्नाव जन्मदिन विशेष *हिंदी हिंदू हिन्दुस्तान , ये तीनो है मेरी जान

 

प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु मण्डल के प्रमुख लेखक, कवि और पत्रकार थे। वह भारतेंदु निर्मित एवं प्रेरित हिंदी लेखकों की सेना के महारथी, उनके आदर्शो के अनुगामी और आधुनिक हिंदी भाषा तथा साहित्य के निर्माणक्रम में उनके सहयोगी थे।

आज के ही दिन 24 सितंबर, 1856 मिश्र जी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के अंतर्गत बैजे गाँव बेथर के निवासी संकठा प्रसाद मिश्र के पुत्र थे।मिश्र जी छात्रावस्था से ही “कविवचनसुधा” के गद्य-पद्य-मय लेखों का नियमित पाठ करते थे, जिससे हिंदी के प्रति उनका अनुराग उत्पन्न हुआ। 1882 के आसपास “प्रेमपुष्पावली” प्रकाशित हुई और भारतेन्दु जी ने उसकी प्रशंसा की तो उनका उत्साह बहुत बढ़ गया। 15 मार्च 1883 को, होली के दिन, अपने कई मित्रों के सहयोग से मिश्रजी ने “ब्राह्मण” नामक मासिक पत्र निकाला।

1889 में मिश्र जी 25 रू. मासिक पर “हिंदोस्थान” के सहायक संपादक होकर कालाकाँकर आए। उन दिनों पं॰ मदनमोहन मालवीय उसके संपादक थे 1891 में उन्होंने कानपुर में “रसिक समाज” की स्थापना की। कांग्रेस के कार्यक्रमों के अतिरिक्त भारतधर्ममंडल, धर्मसभा, गोरक्षिणी सभा और अन्य सभा-समितियों के सक्रिय कार्यकर्ता और सहायक बने रहे। कानपुर की कई नाट्य सभाओं और गोरक्षिणी समितियों की स्थापना उन्हीं के प्रयत्नों से हुई थी।

धनि-धनि भारत आरत के तुम एक मात्र हितकारी। धन्य सुरेन्द्र सकल गौरव के अद्वितीय अधिकारी॥ कियो महाश्रम मातृभूमि हित निज तन मन धन वारी।सहि न सके स्वधर्म निन्दा बस घोर विपति सिर धारीउन्नति उन्नति बकत रहत निज मुख से बहुत लबारी।करि दिखरावन हार आजु एक तुमही परत निहारी दुख दै कै अपमान तुम्हारो कियो चहत अविचारी यह नहिं जानत शूर अंग कटि शोभ बढ़ावत भारी धनि तुम धनि तुम कहँ जिन जायो सो पितु सो महता परम धन्य तव पद प्रताप से भई भरत भुवि सारी॥री।॥।॥

अर्जून तिवारी उन्नाव न्यूज संवाददाता