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जय ओशो..🌞🌞

🌺 अकेलापन’ का सीधा सा अर्थ होता है- परिपूर्णता…

मनुष्य ने अभी तक अकेलेपन के सौंदर्यबोध को पहचानना नहीं सीखा है।

वह हमेशा किसी से संबंध बनाने के लिए तड़प रहा है, किसी के साथ होने के लिए; मित्र के साथ, पिता के साथ, पत्नी के साथ, पति के साथ, बच्चे के साथ… किसी न किसी के साथ।

उसने समाज बनाये हैं, क्लब बनाये हैं; लायंस क्लब, रोटरी क्लब। उसने पार्टियाँ बनायी हैं; राजनैतिक, आदर्शवादी। धर्म बनाये हैं; चर्च, मंदिर। लेकिन इन सबके पीछे मूल जरुरत यह है कि तुम किसी तरह यह भूलना चाहते हो कि तुम अकेले हो। इतनी सारी भीडों के साथ जुड़कर तुम कोई बात भुलाने का प्रयास कर रहे हो जो अंधेरे में तुम्हें एकाएक याद आ जाती है कि तुम अकेले पैदा हुए थे, तुम अकेले मरोगे, चाहे तुम कुछ भी करो, तुम अकेले जीते हो।

अकेलापन तुम्हारे अस्तित्त्व का इतना आवश्यक अंग है, कि उसे टालने का कोई उपाय नहीं है।

अकेलेपन; अलोननेस को टालने के लिये, किया गया हर प्रयत्न असफल हुआ है, और वह असफल होगा क्योंकि वह जीवन के मूलभूत नियमों के विपरीत है। जरुरत उस बात की नहीं है जिसमें तुम अपने अकेलेपन को भूल सको, जरुरत यह है कि तुम अपने अकेलेपन के प्रति- जो कि एक वास्तविकता है सजग हो सको।

और इसे महसूस करना, इसे अनुभव करना इतना सुन्दर है, क्योंकि यह भीड़ से, दूसरों से तुम्हारी मुक्ति है। यह एकाकी होने के भय से हमारा मुक्त होना है। ‘एकाकी’ शब्द मात्र तुम्हें तत्क्षण याद दिलाता है कि यह एक घाव की तरह हैः उसे भरने के लिये किसी चीज की जरुरत है। यह एक खाली जगह है, और यह चोट पहुंचाता है। इसमें कुछ भरा जाना जरुरी है।

”अकेलेपन”- इस शब्द में किसी खालीपन का, किसी घाव का बोध नहीं है जिसे भरा जाना है। अकेलापन’ का सीधा सा अर्थ होता है- परिपूर्णता। तुम सपूर्ण हो; तुम्हें पूर्ण करने के लिये किसी अन्य की जरुरत नहीं है।

तो अपने उस अंतरतम केंद्र को पाने की कोशिश करो, जहां तुम सदा अकेले हो, सदा से अकेले रहे हो। जीवन में, मृत्यु में, जहां-कहीं भी तुम हो तुम अकेले रहोगे। लेकिन यह इतना भरा-पूरा है, यह खाली नहीं है- यह इतना भरा-पूरा, इतना परिपूर्ण, इतना लबालब, जीवन के सभी रसों से, अस्तित्त्व के समस्त सौंदर्य से, स्व वरदानों से कि एक बार तुमने अपने अकेलेपन का स्वाद लिया कि हृदय के सारे दर्द विदा को जायेंगे। उसके बजाय असीम माधुर्य की, शांति की, उल्लास की, स्व-आनंद की एक नई लय होगी वहां।

इसका अर्थ यह नहीं है कि जो व्यक्ति अपने अकेलेपन में केन्द्रित है, अपने-आप में पूर्ण है, वह मित्र नहीं बना सकता। सच तो यह है, केवल वही मित्र बना सकता है। क्योंकि अब यह उसकी जरुरत नहीं है, अब यह एक बांटना है। उसके पास इतना अधिक है कि वह बांट सकता है।

– ओशो

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संकलन कर्ता
राम नरेश यादव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
दिव्य जीवन जागृति मिशन इटावा
उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर8218141639,8439492416