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इटावा किसानों ने तिलहन क्रांति की और उठाये कदम,आलू का क्षेत्रफल घटा*

  1. *किसानों ने तिलहन क्रांति की और उठाये कदम,आलू का क्षेत्रफल घटा*

जसवन्त नगर । आलू की फसल को उगाकर पिछले कई वर्षों से लगातार घाटा झेल रहे क्षेत्र के किसान अब तिलहन क्रांति के लिए कदम उठाते दिखाई पड़ रहे हैं। क्षेत्र में इन दिनों आलू का रकबा पिछले वर्षों से काफी कम दिखाई दे रहा है मतलब साफ है क्षेत्र का किसान आलू की खेती को अब सीमित रूप से ही करना पसंद कर रहा है।

बताते हैं कि आलू भंडारण का समय 30 नवंबर तक होता है तब तक किसानों ने शीत ग्रहों में रखे अपने आलू के अच्छे भाव मिलने का खूब इंतजार किया लेकिन आलू के दाम नहीं बढ़े बल्कि भंडारण अवधि के समाप्त होने से पहले ही कई स्थानों से कच्ची खोद का आलू लदकर सब्जी मंडी में आ गया। नए आलू की आवक बढ़ने से पुराने भंडारित आलू का भाव दबाव में आ गया जिससे उसके दाम नहीं बढ़ सके और किसानों को मजबूरन या तो शीतगृहों से आलू निकाल कर सस्ते में बेचना पड़ा या फिर शीत गृह स्वामियों के मत्थे मढ़ते हुए शीत ग्रह में ही छोड़ दिया। दोनों ही स्थितियों में आलू उत्पादक किसान घाटा सहना पड़ा। ऐसा लगातार कई वर्षों से होता रहा है हालांकि किसानों द्वारा शीत ग्रह में ही अपना आलू छोड़ दिए जाने से इसी तरह मालिकों को भी अपने किराए के साथ-साथ आलू फिकवाने का खर्चा भी भुगतना पड़ा जिससे उन्हें भी बड़ा नुकसान हुआ है।

पिछले लगभग चार दशकों से क्षेत्र में तिलहन का उत्पादन काफी कम हो गया था और उसका स्थान आलू की फसल ने ले लिया था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तिलहन के उत्पादों में तेल उत्पादक किसानों को काफी लाभ हुआ है तथा पिछली बार सरसों का भाव स्थानीय मंडी में ही साडे आठ हजार रु प्रति क्विंटल से ऊपर तक गया था। इस कारण किसानों का रुख इस बार तिलहन उत्पादन की ओर बढ़ गया है जिससे सरसों की फसल की बुबाई क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हुई है उधर सरकारी तंत्र की तरफ से भी किसान गोष्ठियों आदि कार्यक्रमों में तिलहन उत्पादन पर विशेष जोर दिया गया था जिससे किसान लाभकारी खेती को देखते हुए तिलहन उत्पादन की ओर आकर्षित हुआ।

क्षेत्र में चारों ओर खेतों में लहलहा रही पीले फूलों वाली सरसों की खेती की आजकल बहार सी आ गई है लोगों को इस फसल को देखकर सरसों के खेत में फिल्माए गए गानों की याद आ रही है तथा फिल्मों के शौकीन ग्रामीण याद करके गानों को सुनाते भी है। किसान राजाराम, नाथू सिंह , हरचरण , रमेश चंद, गोपाल बाबू , नरेश सिंह आदि ने बताया कि क्षेत्र में किसान आलू में घाटा सहते सहते परेशान हो गए हैं। इस कारण किसानों ने इस बार आलू कम और सरसों की बुवाई ज्यादा की है। किसान भी बताते हैं कि पिछले चालीस-पैंतालीस वर्षों से इस क्षेत्र में इतने बड़े रकवे में सरसों की खेती नहीं देखी है।

इस क्षेत्र में सरसों की फसल को प्रायः माऊं कीट से खतरा रहता है अब लगभग एक माह तक सरसों की फसल को माउं की नजर न लगी तो क्षेत्र में सरसों की बंपर पैदावार हो सकती है हालांकि यहां पर तिलहन के बड़े उत्पादन से तिलहन उत्पादक किसानों को दो अच्छा फायदा होने की उम्मीद की जा रही है लेकिन जानकर लोगों का कहना है कि खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट तभी आ सकेगी जब मध्यप्रदेश व राजस्थान में इस बार तिलहन का उत्पादन अच्छा हो जाए।

फ़ोटो- जसवंत नगर क्षेत्र में पीले फूलों के साथ लहलहाती सरसों की फसल।