*ब्रह्माणी देवी मंदिर पर भक्तों का आना शुरू, लगने लगी लंबी लाइने*
प्रथम दिवस पर हुई शैल पुत्री की पूजा, आज होगी ब्रह्मचारिणी की पूजा
जसवन्तनगर।बलरई थाना क्षेत्र अंतर्गत यमुना नदी की तलहटी में स्थित ब्रह्माणी देवी मंदिर पर नवरात्रि के दौरान मां के 9 रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन मां के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा।
*लगभग 600साल पुराने माता ब्रह्माणी देवी के मंदिर पर*
*लगने लगा भक्तों का ताँता*
नगला तौर ग्राम पंचायत में लगने वाला माता ब्रह्माणी का मेला हर बर्ष की भांति इस वर्ष भी नवरात्री के मौके पर लगने वाले माता ब्रह्माणी के मेले में नवरात्री के पहले दिन से ही भक्तों का ताँता लगना शुरू हो गया है।
मंदिर के पुजारी भुवनेश उर्फ भोले बाबा ने बताया कि माँ ब्राह्मणी के मंदिर पर साल में तीन बार मेले का आयोजन होता है जिसमे चैत्र नवरात्रि, आषाण की गुरु पूर्णिमा, तथा क्वार माह की नवरात्री में मेले का आयोजन होता है पुजारी ने बताया कि मंदिर पर हजारों की संख्या में लगभग झंडे चढ़ते है और यहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन मांगी मुराद पूरी करते है।
सन2012 में हुए गोली काण्ड के बाद से जागा प्रशासन
*मेले में जगह जगह तैनात पुलिस पी ए सी के जवान*
मेले के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो इसको देखते हुए मेला परिसर में सुरक्षा में कोई चूक न को इसके लिए पी ए सी के साथ साथ कई थानों से उपनिरीक्षक,कांस्टेबलो के साथ साथ महिला कांस्टेबल जवानों को भी तैनात किया गया है। तथा अराजक तत्वों पर पैनी नजर रखी इसके लिए सीसी टीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। दर्शनार्थियों का आना लगभग दस दिन पूर्व से हो गया था, प्रथम दिवस से ही लगने लगी लंबी लंबी कतार पुलिस करा रही है कतारों में दर्शन।
*नवरात्री के पहले दिन होती है माँ शैल पुत्री की पूजा*
शैलपुत्री,आज दुतीय ब्रह्मचारिणी की होगी पूजा
बताते हैं पुराणों के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन इस तरह करें मां शैलपुत्री की पूजा,
ज्योतिष अनुसार मां शैलपुत्री की उपासना से चंद्रमा के द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभावों से मुक्ति मिल जाती हैं।
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नम:
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है। सफेद वस्त्र धारण किए मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल शोभायमान है। मां के माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। यह नंदी बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं। शैलपुत्री मां को वृषोरूढ़ा और उमा के नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है की मां शैलपुत्री का जन्म पर्वत राज हिमालय के घर में हुआ था, जिसके कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। देवी के इस रूप को करुणा और स्नेह का प्रतीक माना गया है। घोर तपस्या करने वाली मां शैलपुत्री सभी जीव-जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं।
मां शैलपुत्री की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने निवास पर एक यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बुलाया। लेकिन अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने शिव जी नहीं बुलाया। माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ में जाने की इच्छा जताई। सती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने भी उन्हें जाने की अनुमति दे दी। लेकिन जब सती यज्ञ में पहुंची तो वहां पर पिता दक्ष ने सबके सामने भगवान शिव के लिए अपमानजनक शब्द कहे। अपने पिता की बाते सुनकर मां सती बेहद निराश हुईं और उन्होंने यज्ञ की वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जिसके बाद मां सती अलग जन्म में शैलराज हिमालय के घर में जन्मीं और वह शैलपुत्री कहलाईं।
मां शैलपुत्री के मंत्र:
-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
मां अम्बे की आरती:
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥