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भरथना क्षेत्र के गांव पछांय ककरही में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का आज समापन

 

भरथना क्षेत्र के गांव पछांय ककरही में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का रविवार को समापन हो गया। कथा के अंतिम दिन कथावाचक विमलेश त्रिपाठी के द्वारा श्रोताओं को रुक्मणी विवाह एवं सुदामा चरित्र की कथा का सत्संग सुनाया। राधा श्री कृष्ण के विवाह में महिलाओं के द्वारा कन्यादान में साड़ी वस्त्र आभूषण नगद राशि सहित अनेक सामान दिए तथा कन्यादान के लिए महिलाओं की कतारें लगी रही महिलाओं ने एक-एक करके रुक्मणी का कन्यादान किया। कथावाचक ने श्रोताओं को श्री कृष्ण के अनेकों विवाह के बारे में बताया । इसी प्रकार श्रोताओं को सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग भी सुनाया गया। सुदामा चरित्र की मार्मिक कथा सुनकर श्रोता भाव विभोर हो उठे।

उन्होंने कहा कि भौतिक जगत में कर्म प्रधान है। जो प्राणी जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल भोगना पड़ेगा। कथावाचक ने कहा कि गीता हमें सत्कर्म करते हुए सांस्कृतिक सुखों के पीछे न भागकर केवल परमात्मा की भक्ति में संलग्न रहने व जीवन के यथार्थ को पाने का संदेश देती है। संसार में जो कुछ भी दिख रहा है घर-परिवार, रिश्ते-नाते, धन दौलत, सुख, समृद्धि कुछ भी काम आने वाला नहीं है। सब यहीं छोड़कर जाना है। इसलिए भौतिक सुखों में लिप्त रहना ठीक नहीं है। भगवान की भक्ति ही मुक्ति देने वाली है। परमात्मा की शरण में जाने से ही शांति मिलती है। कथावाचक ने कहा कि कभी भी मित्र से कपट नहीं करना चाहिए। उसे धोखा नहीं देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सुदामा जी दरिद्र होने के बावजूद भी वह अपने मित्र श्रीकृष्ण से कुछ मांगने नहीं जाते थे। एक दिन उनकी पत्नी ने सुदामा को मित्र श्रीकृष्ण से मिलने भेजा। जब सुदामा जी श्रीकृष्ण जी के महल में पहुंचते हैं तो वहां श्रीकृष्ण जी उनका स्वागत सत्कार करते हैं और जब सुदामा जी वहां से लौटने लगते हैं तो अपने साथ लेकर गए चावल की पोटली छिपाकर वापस लाने लगते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण पोटली छीनकर उसमें से एक मुठ्ठी चावल खा लेते हैं और इस तरह से सुदामा जी की इच्छा पूरी करते हैं। उन्हें बिना मांगे ही सब कुछ दे देते हैं। विमलेश त्रिपाठी ने कहा कि भगवान की भक्ति सच्चे मन से करनी चाहिए। उसी में सभी का उद्धार है।