जसवंतनगर(इटावा)*।11 दिवसीय गणपति महोत्सव की तैयारियां जोर पकड़ गई हैं। 31 अगस्त को प्रथम पूज्य गणेश भगवान स्वर्ग लोक से आकर पृथ्वी लोक में अपना डेरा डालेंगे।भाद्रपद माह की चौथ(गणेश चतुर्थी) से लेकर अनंत चतुर्दशी तक मंदिरों,घरों, पंडालों और सार्वजनिक स्थानों पर वह विराजेंगे और श्रद्धालु उनकी पूजा अर्चना करेंगे।
मूल रूप से एक सैकड़ा वर्ष पूर्व महाराष्ट्र से शुरू हुआ गणेश उत्सव अब पूरे देश का महोत्सव बन गया है।
जसवन्तनगर कस्बे में गणेश महोत्सव की शुरूआत यहां पड़ाव मंडी में एक बंबइया परिवार के सदस्य ओमी न्यारिया ने सन 1995 में शुरू की थी।यह परिवार हर वर्ष गजानन महाराज को अपने यहां विराजित कराता था। धीरे-धीरे पड़ोसियों की भी श्रद्धा जागृत हुई और साल दर साल पड़ाव मंडी के गजानन राजा की महत्ता बढ़ती गई। नगर के सर्राफा व्यवसायियों की भी श्रद्धा मिली और।पड़ाव मंडी में बाकायदा हर वर्ष पंडाल लगाया जाने लगा। विसर्जन में भी खूब भीड़ जुटने लगी। इधर सोशल मीडिया,टीवी आदि ने इस त्योहार का इतना प्रभावी प्रचार किया कि गणपति स्थापना लोग भी कराने लगे। गांवों में भी इसकी महत्ता पहुंची और सैकड़ों जगह गणपति विराजित होने लगे।
जसवंतनगर में 20 वर्ष पूर्व मात्र एक जगह गणेश जी विराजित किए जाते थे। पिछले 7 -8 वर्षों में चलन इतना बढ़ा कि 2019 के गणपति महोत्सव के दौरान 250 से ज्यादा मूर्तियां यहां भोगनीपुर नहर के सिरहौल घाट पर विसर्जित हुई थीं। इनमे ग्रामीण क्षेत्रों से आईं आधी से ज्यादा मूर्तियां थी।
2020 और 2021 में कोरोना के चलते आयोजन पर ब्रेक लगा, मगर इस बार खूब जोर-शोर है।गणपति विराजित करने के लिए लोगों ने उनकी प्रतिमाओं की खरीद शुरू कर दी है। नगर में केवल दो मूर्तिकार ही मूर्तियां बनाते हैं। उनकी मूर्तियों में ज्यादा आकर्षण नही होता, इस वजह लोग इटावा,आगरा फिरोजाबाद,भिंड से मूर्तियां लाते हैं।हालांकि कस्बे में कुछ फड़ों पर मूर्तियां लगाकर बेची जा रहीं हैं ,जो ज्यादातर फिरोजा बाद से लाई गई हैं, क्योंकि आसपास इलाके में आकर्षक मूर्तियां फिरोजाबाद मूर्तिकार बनाते हैं।
फिरोजाबाद के मूर्तिकार ओमकार सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उन्होंने मूर्तियां बनाने का काम मुंबई में सीखा था। सन 2016 में उन्होंने अपने घर फिरोजाबाद आकर गणपति मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया था। एक फु ट से लेकर 10 और 12 फुट ऊंची तक वह मूर्ति बनाते हैं। हर वर्ष मूर्तियां बनाना वह जून महीने से ही शुरू कर देते हैं। उनकी बनाई मूर्तियां राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के हर जिले में बेचने के थोक भाव में जाती है। इस वर्ष अभी तक वह करीब 7 हजार से ज्यादा मूर्तियां बेच चुके हैं।
अब इन दिनों आसपास के लोग अपने घरों के लिए मूर्तियां खरीदने आ रहे हैं। मंहगाई ने मूर्तियों की लागत पिछले वर्षों की अपेक्षा दो गुनी कर दी है। 8 फूट की जो मूर्ति 5 -6 हजार में हम बेचते थे,उसकी कीमत अब हमे मेहनत-मजदूरी, मिट्टी, प्लास्टर आफ पेरिस, पीओपी आदि की कीमतें और रंग व पेंट्स के दाम बढ़े हुए होने से अब घर में ही 6 -7 हजार की पड़ रही है।
फलस्वरूप इस बार भगवान गणेश की मूर्तियों पर मंहगाई का भारी असर है, मगर लोगों की श्रद्धा कम नही हुई। जो लोग पहले बड़ी मूर्तियां ले जाते थे,वह छोटी ले जा रहे हैं। सबसे ज्यादा डिमांड एक फुट से लेकर ढाई तीन-फुट ऊंची मूर्तियों की है, जो 400 रुपए से लेकर डेढ़ हजार रुपए कीमत में हम बेच रहे है। श्रद्धालु कीमत नही,बल्कि दक्षिणा कह कर मूर्ति का पेमेंट करते और पूरी शिद्दत से ले जाते हैं।