Thursday , October 24 2024

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पहली बार भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात हुईं सभी महिला सैनिक, स्वतंत्रता दिवस की दी शुभकामनाएं

कोलकाता:सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की सभी महिला इकाई ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आयोजित पारंपरिक स्वतंत्रता दिवस समारोह के तहत अग्रिम मोर्चे पर तैनात बांग्लादेश की महिला बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश (बीजीबी) कर्मियों को मिठाई खिलाई और शुभकामनाएं दीं। ऐसा पहली बार हुआ है कि दोनों देशों की तरफ से सीमा चौकी पर महिला सीमा रक्षकों के बीच शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हुआ है। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से भारत-बांग्लादेश सीमा पर हाई अलर्ट जारी है।

बीएसएफ की 32वीं बटालियन के जवानों ने दी शुभकामनाएं
बीएसएफ की 32वीं बटालियन की छह सदस्यीय टीम ने नादिया जिले में अंतरराष्ट्रीय सीमा की निगरानी की। अधिकारियों ने बताया कि ये कर्मी कांस्टेबल रैंक की हैं। वहीं सुबह आयोजित पारंपरिक समारोह में भाग लेने वाली बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) की महिला टीम बांग्लादेश की दर्शना सीमा चौकी के अंतर्गत तैनात बांग्लादेशी बल की 6वीं बटालियन से संबद्ध है। 32वीं बटालियन बीएसएफ के कमांडेंट सुजीत कुमार ने कहा, ‘बधाईयों का आदान-प्रदान और मिठाइयां बांटना दोनों सीमा बलों के बीच आपसी सम्मान और सौहार्द का प्रतीक है। यह एक ऐसी परंपरा है जिसे महिला कर्मियों ने पहली बार निभाया है।’

दीवाली और ईद पर भी होता है मिठाईयों का आदान-प्रदान
समारोह के दौरान दोनों पक्षों ने हाथ मिलाया और अपने-अपने देशों की निरंतर समृद्धि की कामना की तथा उनके बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों की प्रतिबद्धता जताई। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दोनों बलों के बीच मिठाइयों और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान पारंपरिक रूप से दोनों देशों के राष्ट्रीय त्योहारों जैसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अलावा दीपावली और ईद जैसे बड़े त्योहारों के दौरान होता है।

असम में हड़कंप, उल्फा-आई ने किया 24 स्थानों पर बम लगाने का दावा; पुलिस दे रही जगह-जगह दबिश

गुवाहाटी:  असम में उस समय हड़कंप मच गया जब कई जगह पर बम लगाने की बात सामने आई। दरअसल, प्रतिबंधित उल्फा-आई ने गुरुवार को राज्य में 24 स्थानों पर बम लगाने का दावा किया। इसके बाद सुरक्षा बलों ने विस्फोटकों की तलाश के लिए टीमें भेजीं।

बम या विस्फोटक मिलने की कोई खबर नहीं
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि उल्फा-आई द्वारा बताए गए सभी स्थानों पर बम निरोधक दस्ते भेजे गए हैं, लेकिन कहीं से बम या विस्फोटक मिलने की कोई खबर नहीं है। वहीं, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा-इंडिपेंडेंट) की ओर से मीडिया घरानों को एक ईमेल भेजा गया। इसमें आतंकी संगठन ने कहा कि बम तकनीकी विफलता के कारण नहीं फटे।

इसने 19 विस्फोटों की सही जगह की पहचान करने वाली एक सूची दी। साथ ही कहा कि पांच और विस्फोटकों के स्थानों का पता नहीं लगाया जा सका है। अधिकारी ने बमों को निष्क्रिय करने में जनता का सहयोग मांगा।

खोजी कुत्तों को हर स्थान पर भेजा गया
असम पुलिस मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जिलों के सभी पुलिस अधीक्षकों, खासकर उल्फा के शांति-वार्ता विरोधी धड़े द्वारा सूची में शामिल पुलिस अधीक्षकों को सतर्क कर दिया गया है और उनसे इलाकों की गहन तलाशी लेने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि बम निरोधक दस्ते, मेटल डिटेक्टर और खोजी कुत्तों को हर स्थान पर भेजा गया है। अभी तक हमें बम बरामद होने के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है।

24 स्थानों में से आठ स्थान गुवाहाटी में
हालांकि नगांव, लखीमपुर और शिवसागर के कुछ स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने घटनास्थल से कुछ बम जैसी सामग्री बरामद की है। 24 स्थानों में से आठ स्थान गुवाहाटी में हैं। इनमें दिसपुर में स्थित असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और अन्य मंत्रियों के आधिकारिक आवासों के पास एक खुला मैदान भी शामिल है। एक अन्य स्थान गुवाहाटी के नरेंगी में सेना छावनी की ओर जाने वाली सतगांव सड़क है। इनके अलावा, राजधानी के आश्रम रोड, पानबाजार, जोरबाट, भेटापाड़ा, मालीगांव और राजगढ़ में भी बम धमाकों के स्थान बताए गए हैं।

कौन हैं रिमझिम सिन्हा? जिनकी पहल पर सड़कों पर उतरीं हजारों महिलाएं; न्याय की लगाई गुहार

कोलकाता:पश्चिम बंगाल में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर की हत्या के विरोध में हजारों महिलाएं बुधवार की रात को सड़क पर उतर आईं। रिक्लेम द नाइट अभियान सोशल मीडिया के जरिए कोलकाता के कई इलाकों में फैल गया। हालांकि, इस विरोध प्रदर्शन के बीच ही आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हिंसा हो गई। कुछ अज्ञात प्रदर्शनकारियों ने इमरजेंसी वॉर्ड में घुसकर तोड़फोड़ किया।

हावड़ा के मंदिरतला जिले में भी हिंसा की घटनाएं सामने आईं। प्रदर्शनकारी स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ताओं से भिड़ गए। ‘रिक्लेम द नाइट’ अभियान की पहल करने वाली रिमझिम सिन्हा ने इस अभियान को महिलाओं के लिए एक नया स्वतंत्रता संग्राम बताया।

कौन हैं रिमझिम सिन्हा?
रिमझिम सिन्हा एक सामाजिक विज्ञान शोधकर्ता है। उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज से 2020 में समाजशास्त्र में ग्रेजुएशन किया। वह महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या की खबर से स्तब्ध थी। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुम में रिमझिम ने प्रदर्शन को लेकर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि वह कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष के बयान से उत्तेजित थी। प्रिंसिपल ने सवाल किया कि जूनियर अकेले में सेमिनार हॉल में क्यों गए? उनके इस तरह के बयान ने पीड़िता पर ही आरोप लगा दिए।

रिमझिम ने कहा, “इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मैंने फैसला किया कि मैं 14 अगस्त को बाहर प्रदर्शन करूंगी और कोई भी हमें यह निर्देश नहीं दे सकता कि कौन बाहर हो सकता है और क्यों।” रिमझिम ने बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका यह अभियान वायरल हो जाएगा और हजारों की संख्या में लोग इसमें शामिल होंगे।

क्या है मामला?
आरजी कर मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ दरिंदगी की घटना गुरुवार-शुक्रवार की दरमियानी रात की है। मृतक मेडिकल कॉलेज में चेस्ट मेडिसिन विभाग की स्नातकोत्तर द्वितीय वर्ष की छात्रा और प्रशिक्षु डॉक्टर थीं। गुरुवार को अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद रात के 12 बजे उसने अपने दोस्तों के साथ डिनर किया। इसके बाद से महिला डॉक्टर का कोई पता नहीं चला। शुक्रवार सुबह उस वक्त मेडिकल कॉलेज में हड़कंप मच गया जब चौथी मंजिल के सेमिनार हॉल से अर्ध नग्न अवस्था में डॉक्टर का शव बरामद हुआ।

पीएम की इस मंशा से शुरू हो सकते हैं छात्र संघ चुनाव; सियासत की पाठशाला में गिनी जाती है यह नर्सरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर गैर-राजनीतिक परिवार के युवाओं को सियासत में लाने की मंशा जताई। शुरुआती दौर में एक लाख युवाओं को आगे लाने की बात कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सियासी तौर पर उस मुद्दे को आगे बढ़ाया, जो अभी तक ‘मिशन मोड’ में नहीं था। हालांकि अभी भी देश की कई राजनीतिक पार्टियों और सियासी दलों ने ऐसे युवाओं को मौका दिया है, जिनके परिवार में पहले कभी कोई सियासत में नहीं था।

लेकिन जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से लाल किला से ऐसे युवाओं को सियासत में लाने यह मंशा जताई है, वह सियासी नजरिए से एक बड़े प्रयोग के तौर पर देखी जा रही है। वहीं उत्तर प्रदेश समेत उन राज्यों के युवाओं ने छात्र संघ चुनाव की मांग भी कर डाली है, जहां चुनाव नहीं हो रहे हैं। छात्र राजनीति से जुड़े रहे नेताओं का मानना है कि सियासत की नर्सरी में गैर-राजनीतिक परिवार के युवा यहां से आगे बढ़ते हैं। इसलिए जिन राज्यों में चुनाव नहीं होता है, वहां पर इसको शुरू कराया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर आने वाले दिनों में गैर राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने वाले युवाओं को सियासत में आगे आने की अपील भी की और अपनी मंशा भी जताई। प्रधानमंत्री की समस्या का सबसे ज्यादा असर उन राज्यों पर पड़ रक्षा है, जहां पर सियासी रूप से छात्र संघ के चुनाव नहीं हो रहे हैं। दरअसल सियासत की नर्सरी के तौर पर छात्र संघ के चुनावों को देखा जाता रहा है।

कानपुर विश्वविद्यालय के युवराज दत्त महाविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष हिमांशु तिवारी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गैर राजनीतिक परिवार के युवाओं को आगे लाने की बात कहकर सियासत में एक मिशन मोड की राजनीति की बात की है। हिमांशु कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब एक लाख युवाओं को सियासत में लाने की मंशा जाहिर की है, तो अब उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में छात्र संघ चुनाव को भी शुरू कराए जाने की प्रक्रिया होनी चाहिए। उनका कहना है कि सियासत की पहली पाठशाला ही छात्र संघ चुनाव होते हैं, जो अब यहां नहीं हो रहे हैं।

हिमांशु कहते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसकी पहल की है, तो उम्मीद की जा रही है कि सियासत में आने के बाद सभी रास्ते युवाओं के लिए खोले जाएंगे, जिससे उनको आगे बड़ा मौका मिल सके। हिमांशु ने बताया कि जल्द ही उत्तर प्रदेश समेत देश के उन राज्यों के छात्र नेताओं से मिलकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा जाएगा, जहां पर छात्र संघ के चुनाव नहीं होते हैं। ताकि गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले युवाओं को सियासत की नर्सरी में आगे बढ़ने का बेहतर मौका मिल सके।

कोलकाता पुलिस ने जारी की हिंसा के आरोपियों की तस्वीर, लोगों से जानकारी देने की अपील की

कोलकाता:कोलकाता पुलिस ने डॉक्टर के दुष्कर्म और हत्या के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शन के दौरान कल रात आरजी कर मेडिकल कॉलेज में उत्पात मचाने वाली भीड़ की तस्वीरें जारी की हैं। पुलिस ने फेसबुक पर दंगाइयों की तस्वीरें साझा करते हुए लोगों से इनके बारे में जानकारी मांगी है, जिससे इनकी पहचान करने में मदद मिल सके।

बुधवार की रात अस्पताल में की गई तोड़फोड़
उल्लेखनीय है कि बीती रात, जब पश्चिम बंगाल और देश के कई अन्य शहरों में महिलाएं डॉक्टर से दुष्कर्म और हत्या की घटना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहीं थी, तो कुछ लोगों की भीड़ ने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। इस दौरान वाहनों में तोड़फोड़ की गई और उपद्रवियों की भीड़ अस्पताल की इमारत में घुस गई। दंगाइयों द्वारा अस्पताल के अंदर संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की तस्वीरें वायरल हो गई हैं। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े। झड़प में कई पुलिसकर्मी भी घायल हो गए।

अपराध स्थल से छेड़छाड़ की बात से पुलिस का इनकार
ऐसी चर्चाएं चल रही हैं कि जिस सेमिनार हॉल में जहां डॉक्टर से दुष्कर्म और हत्या की गई, वहां भी दंगाइयों ने तोड़फोड़ की। हालांकि कोलकाता पुलिस ने साफ किया है कि अपराध स्थल से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। पुलिस ने लोगों से सोशल मीडिया पर अफवाह न फैलाने की अपील की। वहीं दंगाइयों द्वारा अस्पताल में तोड़फोड़ पर राजनीति विवाद तेज हो गया। विपक्ष के नेता, भाजपा के सुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि दंगाइयों को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विरोध रैली को बाधित करने के लिए भेजा था।

अधिकारी ने कहा कि ‘ममता बनर्जी ने अपने टीएमसी के गुंडों को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पास गैर-राजनीतिक विरोध रैली में भेजा। उन्हें लगता है कि वे पूरी दुनिया में सबसे चतुर व्यक्ति हैं और लोग उनकी चालाक योजना को नहीं समझ पाएंगे कि प्रदर्शनकारियों के रूप में दिखने वाले उनके गुंडे भीड़ में शामिल होकर आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के अंदर तोड़फोड़ करेंगे।’ भाजपा नेता ने कहा, ‘पुलिस ने उन्हें सुरक्षित रास्ता दिया, ताकि ये गुंडे अस्पताल परिसर में घुस जाएं और महत्वपूर्ण सबूतों वाले क्षेत्रों को नष्ट कर दें ताकि वे सीबीआई को न मिल पाएं।’

अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाली पहली क्रांतिकारी महिला के साहस की कहानी

भारत भले ही आज एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है लेकिन वैश्विक स्तर पर भारत ने जो पहचान बनाई है, उसकी नींव उन क्रांतिकारी और आंदोलनकर्ता भारतीयों ने रखी, जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी करना और देश को ब्रिटिश हुकूमत के नीचे रखना कबूल नहीं किया।

अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन हुए लेकिन स्वतंत्रता संग्राम की आग 1857 में भड़की थी। उस दौर में ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीयों का उत्पीड़न करती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अलग अलग जगहों पर कई क्रांतियां एक साथ हुईं। एक तरह मंगल पांडे थे, जो एक सिपाही थे लेकिन ब्रिटिशों से लड़ गए तो दूसरी ओर बेगम हजरत महल और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई थीं।

ये ईस्ट इंडिया कंपनी के अंत और ब्रिटिश क्राउन के पास सत्ता आने की शुरुआत थी। आइए जानते हैं 1857 में हुई पहले विद्रोह की महिला नायक के बारे में, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।

पहली भारतीय महिला जो अंग्रेजों से भिड़ी

जब भी कभी किसी भारतीय साहसी महिला का नाम लिया जाता है, तो सबसे पहले झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का जिक्र होता है। भारत की आजादी के लिए लड़ने वाली महान और पहली महिलाओं में से एक रानी लक्ष्मी बाई थीं, जिनका जन्म वाराणसी में 1828 को हुआ था। उनका नाम मणिकर्णिका तांबे और उपनाम मनु था।

उनका विवाह राजा गंगाधर राव से हुआ, जो कि झांसी के राजा थे। दोनों एक दामोदर नाम के एक बालक को गोद लिया लेकिन जब गंगाधर राव का निधन हुआ तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दत्तक पुत्र को राजा बनाने की अनुमति नहीं दी और झांसी को अपने अधीन कर लिया।

अंग्रेजों की हुकूमत स्वीकार न करते हुए किया विद्रोह

रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों के अधीन आना स्वीकार नहीं था। उन्होंने अपनी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया। बेटे को छाती पर बांध घोड़े पर सवार लक्ष्मीबाई अंग्रेज सैनिकों से लड़ती रहीं और अंत में वीरगति को प्राप्त हुईं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा जगह-जगह फैली और एक आग की तरह हर तरफ क्रांति की वजह बनी।

इन 5 जगहों पर स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाते हैं बहुत शान से, देखकर महसूस होगा गर्व

हर साल 15 अगस्त को आजादी का जश्न मनाते हैं। 1947 में इसी दिन देश अंग्रेजों की हुकुमत से आजाद हुआ था और उसे एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पहचान मिली थी। देश की आजादी के इस पर्व को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह देश के नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय पर्व है, जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक आजादी का यह पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसमें तिरंगा फहराकर शहीदों को नमक करते हैं और भारत माता के नारे लगाते हैं।

इस मौके पर देश की कुछ जगहों की रौनक सबसे अधिक होती है। यहां का स्वतंत्रता दिवस का जश्न देखते ही बनता है। पूरी दुनिया इन जगहों पर मनाए जाने वाले आजादी के पर्व की तस्वीरों को देख उत्साहित हो जाती है। आइए जानते हैं भारत की उन जगहों के बारे में जहां स्वतंत्रता दिवस का जश्न बेहद गौरवपूर्ण तरीके से मनाया जाता है और जिसे देख कोई भी भारतीय गर्व से भर जाएगा।

लाल किला, दिल्ली

हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री दिल्ली के लाल किले से ध्वजारोहण करते हैं और देशवासियों को संबोधित करते हैं। इस दौरान लाल किले से आजादी के जश्न का नजारा देश प्रेम से परिपूर्ण हो जाता है। आप स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक बार लाल किले पर होने वाले आयोजन को देखने जरूर जाएं। ध्यान रखें कि अगर आप 15 अगस्त को लाल किला जा रहे हैं तो सुबह जल्दी पहुंच जाएं।

वाघा बॉर्डर, अमृतसर

पंजाब के वाघा बॉर्डर पर हर भारतीय को एक बार जरूर जाना चाहिए। यहां पहुंच कर आप देशभक्ति की भावना से भर जाएंगे। वहीं 15 अगस्त के मौके पर वाघा बॉर्डर का माहौल बिल्कुल अलग होता है। यहां कई कार्यक्रमों का आयोजन होता है। शहीदों के बलिदान को याद किया जाता है। यहां पहुंचकर आपकी सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा।

जलियांवाला बाग, अमृतसर

गुलाम भारत में अंग्रेजों की प्रताड़ना और भारतीय को दशा को समझना हो तो वाघा बॉर्डर के अलावा जलियांवाला बाग भी जा सकते हैं। यहां की दीवारों पर स्वतंत्रता संग्राम की याद गोलियों की छाप बनकर आज भी मौजूद है। 1919 में बैसाखी के दिन अंग्रेज सिपाहियों ने निहत्थे भारतीयों को घेर कर गोलियां बरसा दी थी, इस नरसंहार को भारतीय इतिहास में काला दिन माना जाता है। इस जगह पर आप उन निर्दोष भारतीयों की शहादत को नमन कर सकते हैं।

इंडिया गेट, दिल्ली

आजादी का जश्न मनाने के लिए दिल्ली के इंडिया गेट जाने की योजना भी बना सकते हैं। वैसे तो यहां का नजारा पूरे साल ही शानदार रहता है लेकिन स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूरे इंडिया गेट को लेजर लाइट्स की मदद से तिरंगा रंग दिया जाता है। पास में ही म्यूजिकल शो भी होते रहते हैं, जिसमें शामिल होने का मौका मिल सकता है। खाने-पीने के बहुत सारे स्टॉल मिल जाएंगे। अमर जवान ज्योति स्मारक में शहीदों को श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

भाजपा के आरोपों के खिलाफ भंडाफोड़ अभियान चलाएगी सपा, जिलों में जाएंगी फैक्ट फाइंडिंग टीमें

लखनऊ:  भाजपा विभिन्न घटनाओं को लेकर सपा पर जो आरोप लगा रही है, उसके खिलाफ समाजवादी नेता शीघ्र ही भंडाफोड़ अभियान चलाएंगे। सपा सूत्रों का कहना है कि अलग-अलग जिलों में हो रही घटनाओं के असली कारणों को सामने लाने के लिए फैक्ट फाइंडिंग टीमें भी भेजी जाएंगी।

सपा नेतृत्व ने सभी जिला व शहर कमेटियों को निर्देश दिए हैं कि भाजपा के लोग सपा को बदनाम करने के लिए अनर्गल आरोप लगा रहे हैं। इन आरोपों की तत्काल पड़ताल कर सही तथ्यों को सोशल मीडिया व अन्य मीडिया के माध्यम से जनता के सामने लाएं।

प्रदेश स्तर से भी वरिष्ठ नेताओं की टीम भेजकर ऐसे मामलों में तथ्य जुटाए जाएंगे। इसके अलावा सपा नेताओं ने अन्य आपराधिक घटनाओं में पीड़ित पक्ष से मिलकर सच सामने लाने की योजना बनाई है।

एलिवेटेड रोड का ट्रायल आज, बागपत से दिल्ली बस 20 मिनट में; रोज एक लाख लोगों को होगा फायदा

बागपत: बागपत से दिल्ली तक एलिवेटेड सड़क का बृहस्पतिवार 15 अगस्त को ट्रायल किया जाएगा। खेकड़ा के ईपीई से दिल्ली के अक्षरधाम तक इस एलिवेटेड सड़क का निर्माण पूरा हो गया है। ट्रायल के बाद जल्द ही उद्घाटन कराया जाएगा। इसके शुरू होने से बागपत से दिल्ली केवल बीस मिनट में पहुंच सकेंगे और करीब एक लाख लोगों को रोजाना फायदा होगा।

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे के अक्षरधाम से खेकड़ा तक के हिस्से के एलिवेटेड रोड का निर्माण 1323 करोड़ रुपये से कराया गया है। इसको पूरा करने की समयावधि सबसे पहले दिसंबर 2023 थी। मगर निर्माण नहीं हो सका और उसके बाद मार्च 2024 तक निर्माण पूरा करने की बात कही गई। मगर निर्माण पूरा नहीं हो सका।

अब खेकड़ा ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे से दिल्ली तक इसका निर्माण पूरा हो गया है। फिनिशिंग का कार्य भी खत्म हो गया है। अब इसे शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए ही बृहस्पतिवार को इसे ट्रायल के लिए खोला जाएगा। इस पर कंपनी अपने वाहनों के साथ ही जनता के वाहनों को चलवाएगी। परियोजना निदेशक एनएचएआई धीरज सिंह का कहना है कि ट्रायल के बाद इसे बंद कर दिया जाएगा और जल्द ही उद्घाटन कराया जाएगा। यह माना जा रहा है कि ट्रायल ठीक होने पर अगले महीने उद्घाटन कराया जा सकता है। ट्रायल के लिए बुधवार को अधिकारियों ने इसका निरीक्षण भी किया।

अभी नेशनल हाईवे पर जाम के कारण होती है परेशानी
एलिवेटेड सड़क शुरू होने से वाहन चालकों की काफी समस्या दूर हो जाएगी। क्योंकि अभी दिल्ली-सहारनपुर नेशनल हाईवे पर कई बार जाम लगने के कारण वाहन चालकों को परेशानी उठानी पड़ती है। नेशनल हाईवे की सड़क का निर्माण कई जगह नहीं हुआ है और उसमें गड्ढे होने के कारण पानी भी भरा हुआ है। इससे नेशनल हाईवे को मंडौला के आसपास वन-वे भी कराया गया है। अगर एलिवेटेड सड़क को शुरू कर दिया जाता है, तो यह समस्या भी दूर हो जाएगी।

विद्याधरी ने काशी में कोठे पर गाया था देशभक्ति का पहला मुजरा

चंदौली:  ”चुन-चुन के फूल ले लो, अरमान रह न जाए, ये हिंद का बगीचा गुलजार रह न जाए, कर दो जाबन बंदी, जेलों में चाहे भर दो, माता में कोई होता कुर्बान रह न जाए”……यह किसी क्रांतिकारी, कवि या शायर की पंक्तियां नहीं बल्कि भारत का पहला देशभक्ति मुजरा है, जिसे चंदौली के जसुरी गांव की सुर साम्राज्ञी विद्याधरी बाई ने काशी के एक कोठे पर गाया था।उन दिनों कोठे पर एकमात्र उनका ही मुजरा ऐसा होता था, जिसके शुरू होने और खत्म होने पर वंदेमातरम की गूंज सुनाई पड़ती थी। मुजरे से होने वाली पूरी कमाई वे चुपके से क्रांतिकारियों को दे देती थीं।

चंदौली मुख्यालय से सटे और वीरान जसुरी गांव कभी संगीत के लिए जाना जाता था। सुर साम्राज्ञी विद्याधरी बाई भी इसी गांव से थीं। जसुरी के बुझावन राय और भुट्टी राय के घर 1881 में जन्मी विद्याधरी बाई की आवाज में खनक थी। हिंदी के साथ ही वे उर्दू, गुजराती, मैथिल और बांग्ला में भी गाती थीं। उनके गीत गोविंद का गायन सुनकर ऐसा लगता था कि गले में वाग्देवी विराजी हैं।

रेडियो पर भी बिखेरा था सुरों का जलवा
काशी नरेश के दरबार की प्रमुख गायिका होने के साथ ही देश की सभी प्रमुख रियासतों और ऑल इंडिया रेडियो पर भी उन्होंने अपने सुरों का जलवा बिखेरा था। इनके कोठे पर खड़ी महफिल लगा करती थी। यानी भीड़ की वजह से लोग खड़े होकर उनके गीत सुनते थे। विद्याधरी ने प्रसिद्ध सारंगी वादक सुमेरू राम मिश्र, उस्ताद नासिर खां से संगीत की शिक्षा थी थी। विद्याधरी की चैती, टप्पा और ख्याल की वंदिशें ऐसी होती थीं कि लोग घंटाें सुध-बुध खोकर सुनते रहते थे।

प्रेमचंद के पुत्र और प्रसिद्ध साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अपनी पुस्तक ”ये कोठेवालियां” में लिखा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने बनारस के तवायफों के बीच एक सभा की थी। इसमें हुस्ना बाई ने यादगार और शानदार भाषण दिया था। इस कार्यक्रम का पूरा खर्च विद्याधरी बाई ने उठाया था। इसी सभा के बाद तवायफ संघ का गठन हुआ।

गांधी जी ने उस समय तवायफों से गुजारिश की थी कि वे देश की रियासतों में या जहां भी संगीत पेश करें, वह देशभक्ति से जुड़ा होना चाहिए। इससे देशभक्ति का भाव जगेगा। विद्याधरी बाई ने गांधी जी की बात मन में बैठा लिया था। उन्होंने पहला देशभक्ति का मुजरा खुद ही लिखा और काशी के एक कोठे पर गाया भी था। इसके बाद मुजरा देश के विभिन्न रियासतों और दरबारों में सुनाया गया। विडंबना है कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी दूसरी किताबों में इसका जिक्र तक नहीं मिलता है।

जसुरी में बीता आखिरी समय, क्रांतिकारियों को बगीचे में देती थीं पनाह
विद्याधरी बाई का जसुरी गांव में एकमात्र तीन मंजिला भवन था। इसमें बेल्जियम के झूमर लटकते थे। जीवन के आखिरी समय में वे अपने गांव आईं और भतीजे के साथ रहने लगीं। वह धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। प्रकृति प्रेमी भी थीं। उन्होंने घर के पीछे आम, लीची सहित कई फलों का एक बड़ा बगीचा बनवाया था।

बगीचे की सिंचाई के लिए बना कुआं अब भी है। बगीचे में कमरे बने थे। इन कमरों में संगीत के प्रेमी तो रहते ही थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों को बगीचे में शरण भी देती थीं और अंग्रेजों की जांच में उन्हें संगीत से जुड़ा व्यक्ति बताकर बचा लेती थीं।