Friday , October 25 2024

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भैंस की पूंछ लगने से नाराज युवक ने किसान को मार डाला, थाने में जमकर हंगामा, पुलिस ने फटकारी लाठियां

सैफनी में भैंस की पूंछ लगने से गुस्साए युवक ने चाकू से हमला कर भैंस के मालिक राहुल (25) की हत्या कर दी। राहुल की मौत से गुस्साए परिजनों और ग्रामीणों ने थाने पहुंचकर हंगामा किया। पुलिस ने हंगामा कर रहे लोगों को लाठी फटकार भगाया।रिपोर्ट दर्ज कर आरोपी अजीत को गिरफ्तार कर लिया।

सूचना पर पहुंचे एसपी राजेश द्विवेदी ने परिजनों को कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया। हत्या की यह वारदात सैफनी कस्बे के मोहल्ला चौराहा की है। यहां के रहने वाले किसान राहुल के घर के बाहर पशु बंधे थे। बृहस्पतिवार शाम करीब पांच बजे राहुल का पड़ोसी अजीत पांडेय पास से गुजर रहा था।

तभी राहुल की भैंस ने पूंछ मार दी। जिसके बाद आरोपी अजीत पांडेय आग बबूला हो गया और उसकी राहुल से कहासुनी हो गई। विवाद इतना बढ़ा कि आरोपी अजीत घर से चाकू ले आया और राहुल के सीने पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए। हमले के बाद आरोपी फरार हो गया।

चीख-पुकार मचने पर पहुंचे परिजन राहुल को सैफनी के निजी चिकित्सक के पास लेकर पहुंचे वहां से रेफर कर दिया गया। परिजन मुरादाबाद के एक अस्पताल पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। हत्या से आक्रोशित परिजन और ग्रामीण शव लेकर सैफनी थाने पहुंच गए और हंगामा शुरू कर दिया।

घटना की सूचना पाकर सीओ अतुल कुमार पांडेय मौके पर पहुंचे। पुलिस ने लोगों को समझाया, लेकिन ग्रामीण नहीं माने। तब पुलिस ने हंगामा कर रहे लोगों को लाठी फटकार कर खदेड़ दिया। हंगामा देखते हुए कई थानों की पुलिस फोर्स गांव में तैनात कर दी गई है। एसपी राजेश द्विवेदी ने कहा कि मुकदमा दर्ज कर मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। मामले की जांच की जा रही है।

21 अप्रैल को होनी है मृतक के भाई की शादी
मृतक राहुल के भाई नीरज की 21 अप्रैल को शादी है। परिवार में शादी की तैयारियां चल रही थीं। हत्या से शादी की खुशियां मातम में बदल गईं। मृतक ने अपने पीछे पत्नी कामिनी और डेढ़ साल के बेटे व छह माह की बेटी को छोड़ा है। मृतक के पिता भगवानदास और मां बेटे का शव देखकर बेसुध हो गए।

यूपी के 17 लाख मदरसा छात्रों को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च को दिए आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के ये कहना कि मदरसा बोर्ड संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का उल्लंघन करता है, ये ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही मदरसा बोर्ड के 17 लाख छात्रों और 10 हजार अध्यापकों को अन्य स्कूलों में समायोजित करने की प्रक्रिया पर भी रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है।

हाईकोर्ट ने बताया था असंवैधानिक
अंशुमान सिंह राठौर नामक एक वकील ने यूपी मदरसा कानून की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने मदरसा कानून को असंवैधानिक मानते हुए इसे खत्म करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि ‘सरकार के पास यह शक्ति नहीं है कि वह धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड का गठन करे या फिर किसी विशेष धर्म के लिए स्कूल शिक्षा बोर्ड बनाए।’ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह राज्य के मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को अन्य स्कूलों में समायोजित करे।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा था कि मदरसा कानून ‘यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) कानून 1956’ की धारा 22 का भी उल्लंघन करता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 16,513 पंजीकृत और 8,449 गैर पंजीकृत मदरसे राज्य में संचालित हैं। जिनमें करीब 25 लाख छात्र पढ़ते हैं।

अलीबाग का नाम बदलने की मांग, स्पीकर ने सरकार से इस नायक के नाम पर रखने की अपील की

महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने राज्य सरकार से अपील की है कि वे अलीबाग के नाम को बदलकर मयनाक भंडारी की याद में मयनाकनगरी करे। मयनाक भंडारी ने छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना की कमान संभाली थी और मराठा नौसेना को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई थी। मुंबई का तटीय शहर अलीबाग एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और राज्य के रायगढ़ जिले के तहत आने वाली एक नगर परिषद है।

ऑल इंडिया भंडारी फेडरेशन ने की थी मांग
हाल ही में ऑल इंडिया भंडारी फेडरेशन के प्रतिनिधिमंडल ने राहुल नार्वेकर से मुलाकात की थी। इसी मुलाकात में फेडरेशन ने अलीबाग का नाम बदलकर मयनाकनगरी करने की मांग की थी। नार्वेकर ने गुरुवार को सीएम एकनाथ शिंदे को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा कि मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में विदेशी आक्रमण को रोकने के लिए समुद्री सुरक्षा और नौसैन्य ताकत बेहद अहम थी।

कौन थे मयनाक भंडारी
राहुल नार्वेकर ने लिखा कि शिवाजी महाराज ने एक मजबूत नौसेना की नींव रखी, जिसका कोंकण क्षेत्र में मयनाक भंडारी ने नेतृत्व किया था। मयनाक भंडारी की नेतृत्व कुशलता और बहादुरी के चलते ही अंग्रेजों को अलीबाग में खंदेरी के किले से पीछे हटना पड़ा था। स्पीकर नार्वेकर ने ये भी मांग की कि अलीबाग में मयनाक भंडारी की प्रतिमा भी लगाई जानी चाहिए। स्पीकर ने कहा कि ऑल इंडिया भंडारी फेडरेशन के प्रतिनिधिमंडल ने यह मांग की, जिसका नेतृत्व नवीनचंद्र बंडीवडेकर ने किया। स्पीकर ने पत्र में लिखा कि ‘यह मांग जायज है और मैं सरकार से अपील करता हूं कि वह इस पर विचार करे।’

‘यह लोकतंत्र और संविधान को बचाने का चुनाव’, घोषणापत्र जारी कर बोले कांग्रेस नेता राहुल गांधी

आज कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया। इस दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह चुनाव लोकतंत्र और संविधान को बचाने का चुनाव है। वहीं, पीएम का चेहरा पूछे जाने पर भी जवाब दिया।

एक तरफ एनडीए और प्रधानमंत्री मोदी…
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, ‘यह चुनाव लोकतंत्र और संविधान को बचाने का चुनाव है। एक तरफ एनडीए और प्रधानमंत्री मोदी हैं जो संविधान और लोकतंत्र पर आक्रमण कर रहे हैं और दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन है जो संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करता है।’

देश की राजनीति हो क्या रहा
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें यह समझना होगा कि देश की राजनीतिक ढांचे में हो क्या रहा है। आरएसएस, भाजपा और खासकर पीएम मोदी ने जो रणनीति बनाई है उसकी नींव क्या है, हमें यह समझना होगा। जिस तरह बंदरगाहों, बुनियादी ढांचे और रक्षा में अदाणी का एकाधिकार है, उसी तरह पीएम मोदी ने ईडी, सीबीआई और आयकर का उपयोग करके राजनीतिक वित्त में एकाधिकार बना लिया है।’

राहुल ने कहा, ‘मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि जो भ्रष्ट हैं वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं, इसकी वजह यह है कि पीएम मोदी राजनीतिक वित्त एकाधिकार पर नियंत्रण रखना चाहते हैं। ये घोषणापत्र कांग्रेस पार्टी ने नहीं बनाया है, देश की जनता ने बनाया है। हमने बस इसे लिखा है। हमने हजारों लोगों से बात करने के बाद अपना घोषणापत्र बनाया है।’

‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान का क्या हुआ था
उन्होंने कहा, ‘कई राजनीतिक टिप्पणीकारों के विपरीत, मैं भविष्य की भविष्यवाणी नहीं कर सकता। पर मुझे विश्वास है कि यह मीडिया द्वारा प्रचारित किए जा रहे चुनाव की तुलना में काफी करीबी चुनाव है। यह एक करीबी चुनाव है, जिसे हम लड़ने जा रहे हैं और जीतेंगे भी। याद कीजिए कि जब वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तब भी इसी तरह का प्रचार किया जा रहा था। एक इंडिया शाइनिंग’ अभियान चलाया गया था। याद करिए कि ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान का क्या हुआ था और याद कीजिए कि उस अभियान को किसने जीता था।’

एक सीट पर दो भाइयों में मुकाबला, राजनेता पिता ने चुनाव प्रचार से ही किया इनकार

ओडिशा में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा के लिए भी वोट डाले जाएंगे। राज्य के गंजम जिले की एक सीट पर काफी रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है। दरअसल इस सीट पर दो सगे भाई ही आमने-सामने हैं। गंजम जिले की चिकिती सीट पर ओडिशा विधानसभा के पूर्व स्पीकर चिंतामनि देन सामंतरे के बेटे चुनाव मैदान में हैं। चिकिती में भाजपा ने यहां मनोरंजन देन सामंतरे को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने बड़े भाई रविंद्रनाथ देन सामंतरे को मैदान में उतारा है।

पिता रहे हैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
चिंतामनी देन सामंतरे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और वह चिकिती सीट से तीन बार विधायक रह चुके हैं। दो बार वे निर्दलीय और एक बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। मनोरंजन इससे पहले भी दो बार यहां से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, एक बार 2014 में वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे तो दूसरी बार 2019 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन दोनों बार मनोरंजन को हार का सामना करना पड़ा। अब एक बार फिर मनोरंजन भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन इस बार उनके बड़े भाई रविंद्रनाथ भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे यहां लड़ाई रोचक हो गई है।

यह भाइयों की नहीं विचारधारा की लड़ाई
रविंद्रनाथ का कहना है कि पिता के समय से ही मैं राजनीति में सक्रिय हूं और इसी वजह से पार्टी ने मुझे टिकट दिया। यह दो विचारधाराओं की लड़ाई है न कि दो भाइयों की लड़ाई। वहीं दोनों बेटों के चुनाव लड़ने पर चिंतामनी देन सामांतरे ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए किसी के लिए भी चुनाव प्रचार करने से इनकार कर दिया है। हालांकि उन्होंने कहा कि वह एक कांग्रेसी हैं और भाजपा की नीतियों का विरोध करेंगे। बेटे के भाजपा से चुनाव लड़ने पर चिंतामनी सामंतरे ने कहा कि यह उसका अपना फैसला है। लोकतंत्र में हम अपना फैसला किसी पर थोप नहीं सकते हैं।

यूपी के 17 लाख मदरसा छात्रों को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च को दिए आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के ये कहना कि मदरसा बोर्ड संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का उल्लंघन करता है, ये ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही मदरसा बोर्ड के 17 लाख छात्रों और 10 हजार अध्यापकों को अन्य स्कूलों में समायोजित करने की प्रक्रिया पर भी रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है।

हाईकोर्ट ने बताया था असंवैधानिक
अंशुमान सिंह राठौर नामक एक वकील ने यूपी मदरसा कानून की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने मदरसा कानून को असंवैधानिक मानते हुए इसे खत्म करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि ‘सरकार के पास यह शक्ति नहीं है कि वह धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड का गठन करे या फिर किसी विशेष धर्म के लिए स्कूल शिक्षा बोर्ड बनाए।’ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह राज्य के मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को अन्य स्कूलों में समायोजित करे।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा था कि मदरसा कानून ‘यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) कानून 1956’ की धारा 22 का भी उल्लंघन करता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 16,513 पंजीकृत और 8,449 गैर पंजीकृत मदरसे राज्य में संचालित हैं। जिनमें करीब 25 लाख छात्र पढ़ते हैं।

नौकरशाहों के रिटायरमेंट के तुरंत बाद चुनाव लड़ने पर रोक की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नौकरशाहों के कूलिंग ऑफ पीरियड से संबंधित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सही प्राधिकरण के सामने ये मामला उठाने को कहा। दरअसल याचिका में मांग की गई थी कि नौकरशाहों को रिटायरमेंट या इस्तीफे के तुरंत बाद चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। साल 2012 में चुनाव आयोग द्वारा भी ऐसी सिफारिश की गई थी। याचिका में आयोग की सिफारिश लागू करने की मांग की गई।

याचिका में की गई थे ये मांग
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता जीवी हर्ष कुमार को अपनी याचिका वापस लेने और सही प्राधिकरण के सामने इस मामले को उठाने का निर्देश दिया। याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को निर्देश दे कि साल 2012 में की गई चुनाव आयोग की सिफारिश को लागू किया जाए। साथ ही जुलाई 2004 में सिविल सेवा सुधार को लेकर बनाई गई समिति की रिपोर्ट में की गई सिफारिश को भी लागू किया जाए ताकि नौकरशाहों के रिटायरमेंट या इस्तीफे के तुरंत बाद विधानसभा, लोकसभा चुनाव लड़ने पर रोक लग सके।

याचिका में मांग की गई सरकारी अधिकारियों के लिए एक विराम काल (कूलिंग ऑफ पीरियड) होना चाहिए, जिसे पूरा करने के बाद ही नौकरशाह राजनीति के मैदान में उतर सकें। याचिका में ये भी मांग की गई थी कि उन नौकरशाहों को जो विधानसभा या संसद सदस्य के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं, उन्हें एक ही पेंशन मिले। पूर्व सांसद जीवी हर्ष कुमार की इस याचिका को वकील श्रवण कुमार कर्नम के माध्यम से दायर किया गया था।

मुलायम सिंह यादव का वो पैंतरा… जिसकी वजह से भाजपा-बसपा की कभी न हो सकी मैनपुरी सीट; मोदी लहर भी न आई काम

सपा नेता मुलायम सिंह यादव का जन्म भले ही इटावा की धरती पर हुआ हो, लेकिन वो अपनी कर्मभूमि मैनपुरी की जनता के मन को अच्छी तरह से जानते थे। जब भी उन्हें मैनपुरी सीट पर खतरा दिखाई दिया तो वे स्वयं ही चुनावी मैदान में कूद पड़े। अपने खुद के भतीजे और पौत्र की रिकॉर्ड जीत के बाद भी उन्होंने मैनपुरी से उनकी टिकट काटकर चुनाव लड़ा।

2004 में जीत के बाद दिया था यहां से इस्तीफा
वर्ष 2004 में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी लोकसभा सीट जीतकर इस्तीफा दे दिया। यहां से उपचुनाव में उन्होंने अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया। धर्मेंंद्र यादव ने इस चुनाव में 3,48,999 मत प्राप्त करते हुए बसपा के अशोक शाक्य को 1,79,713 मतों से पराजित किया। वर्ष 2009 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो प्रदेश में बसपा की सरकार थी। मुलायम को पता चला कि मैनपुरी में बसपा कुछ गड़बड़ करा सकती है। ऐसे में मुलायम सिंह 2009 के आम चुनाव में खुद ही प्रत्याशी के रूप में मैदान में आए और उन्होंने बसपा के विनय शाक्य को पराजित कर 1,73,069 मतों से जीत दर्ज की।

पौत्र तेजप्रताप सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा
वर्ष 2014 के आम चुनाव में जीत के बाद मुलायम सिंह ने फिर से मैनपुरी सीट से इस्तीफा दे दिया। इस बार उन्होंने अपने पौत्र तेजप्रताप सिंह यादव को मैनपुरी सीट से प्रत्याशी बनाया। तेज प्रताप यादव ने इस चुनाव में रिकॉर्ड 6,53,786 मत प्राप्त किए। इस चुनाव में तेज प्रताप ने भजपा के प्रेम सिंह को 3,21,149 मतों से पराजित किया। वर्ष 2019 में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। मुलायम समझ गए मैनपुरी में कुछ गड़बड़ हो सकता है। ऐसे में उन्होंने 2019 के चुनाव में तेजप्रताप की टिकट कटवा दी और स्वयं प्रत्याशी बन गए। यह चुनाव काफी रोमांचक रहा। इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 94,389 मतों से जीत मिली।

विदेशों में भी हैं देवी के शक्तिपीठ, जानिए दर्शन के लिए किन देशों की करनी होगी यात्रा

इस वर्ष 9 अप्रैल 2024 से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के मौके पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। इस दौरान लोग दुर्गा माता मंदिरों के दर्शन के लिए भी जाते हैं। भारत में कई प्राचीन देवी मंदिर और शक्तिपीठ हैं, जिनकी कई धार्मिक मान्यताएं और प्राचीन कथाएं हैं। हालांकि देवी की महिमा केवल भारत में ही नहीं विदेशों तक है। देवी के 52 शक्तिपीठों में से कुछ भारत से बाहर स्थापित हैं। माता सती के अंग धरती पर कई जगहों पर गिरे, कुछ भारतीय सीमा से दूर विदेशों में विद्यमान हो गए, बाद में यहां मंदिरों की स्थापना हुई। इस लेख में जानिए विदेशों में स्थित देवी मां के शक्तिपीठों के बारे में।

पाकिस्तान में देवी के शक्तिपीठ

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में कई प्राचीन हिंदू मंदिर हैं। यहां देवी शक्तिपीठ भी हैं। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगुला शक्तिपीठ है, जहां माता हिंगलाज विराजमान हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का सिर गिरा था। इस प्राचीन शक्तिपीठ को नानी का मंदिर या नानी का हज कहा जाता है।

श्रीलंका में शक्तिपीठ

श्रीलंका में इंद्राक्षी शक्तिपीठ स्थित है। यहां जाफना नल्लूर क्षेत्र में माता को इंद्राक्षी नाम से पुकारा जाता है। कहा जाता है कि यहां माता सती की पायल गिर गई थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम और देवराज इंद्र ने इस शक्तिपीठ में पूजा की थी।

नेपाल में तीन शक्तिपीठ

  • नेपाल में गंडक नदी के पास आद्या शक्तिपीठ स्थित है, जहां माता सती का बायां गाल गिरा था। यहां माता सती गंडकी रूप में पूजी जाती हैं।
  • नेपाल में ही दूसरा शक्तिपीठ पशुपतिनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर बागमति नदी के किनारे स्थित है, जिसका नाम गुहेश्वरी शक्तिपीठ है। कहते हैं कि यहां माता सती के दोनों जानु यानी घुटने गिरे थे।
  • तीसरा शक्तिपीठ बिजयापुर गांव में हैं, जहां दन्तकाली शक्तिपीठ में माता सती के दांत गिरे थे।

तिब्बत में स्थित शक्तिपीठ

भारत के पास ही तिब्बत स्थित है, जहां मानसरोवर नदी के तट पर माता सती की दाईं हथेली गिरी थी। बाद में इस स्थान पर मनसा देवी शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

50 साल सांसद रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड, फिर भी क्यों पीएम बनने से चूक गए जगजीवन राम

बिहार के एक छोटे से गांव चांदवा से दिल्ली की राजनीति तक का सफर करने वाले बाबू जगजीवन राम दलितों, गरीबों और वंचितों के मसीहा माने जाते थे। उन्होंने दलित समाज को स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनाया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने से लेकर जगन्नाथ मंदिर में पत्नी संग दर्शन करने तक उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। हालांकि राजनीति में उनकी भूमिका इतनी दमदार रही कि 50 सालों तक सांसद रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। बाबू जगजीवन राम 1936 से 1986 तक सांसद रहे। कहते हैं कि इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनाने को कहा था, हालांकि बाद में दोनों के बीच दूरियां आ गईं। बाद में जनता पार्टी से चुनाव जीतकर भी प्रधानमंत्री पद की मजबूत दावेदारी में रहे लेकिन पद न मिल सका। 5 अप्रैल को बाबू जगजीवन राम की जयंती के मौके पर जानिए कि दमदार राजनीतिक उपलब्धियों के बाद भी आखिर जगजीवन राम क्यों न बन सके देश के प्रधानमंत्री।

कौन थे बाबू जगजीवन राम

जगजीवन राम भारत के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रह चुके हैं। भारत के संसदीय लोकतंत्र के विकास में उनका अमूल्य योगदान रहा। साथ ही देश की दलित राजनीति के वह सबसे महत्वपूर्ण चेहरे के तौर पर याद किए जाते हैं।

जगजीवन राम का जीवन परिचय

जगजीवन राम का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के चांदवा गांव में 5 अप्रैल 1908 में हुआ था। उनके पिता का नाम सोभी राम और मां वसंती देवी थी। आरा टाउन स्कूल से शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। हालांकि उन्हें दलित होने के कारण शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन दिनों जाति-धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की।

जगजीवन राम का योगदान

स्वतंत्रता संग्राम में दलित समाज को शामिल करने का श्रेय जगजीवन राम को जाता है। 1934 में उन्होंने कोलकाता में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की थी। इस संगठन के माध्यम से दलित समाज को आजादी की लड़ाई में शामिल किया गया।