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यूपी में जब कांग्रेस विरोधी दलों ने जीत ली थी सभी सीटें, भाजपा ने 2014 में जीती 71 सीटें

चुनाव में ज्यादातर दल सभी सीटें जीतने का दावा करते हैं। इस सब के बीच 1977 के चुनाव में कांग्रेस विरोधी पार्टी के समूह जनता पार्टी को 85 सीटें मिली थीं। इसमें जनसंघ, समाजवादी दल, कांग्रेस फोर डेमोक्रेसी और भारतीय लोकदल सहित कई दल शामिल थे। कांग्रेस इस आंकड़े के पास दो बार पहुंची तो वर्तमान सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी अधिकतम 88.75 फीसदी सीट हासिल कर सकी। इस बार भी सत्तापक्ष और विपक्ष के अपने-अपने दावे हैं। हकीकत लोकसभा चुनाव के बाद ही सामने आएगी।

पहले आम चुनाव में प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बादशाहत कायम की थी। उस समय कांग्रेस के हिस्से 86 में से 81 सीटें आई थीं। दूसरे नंबर पर दो सीट हासिल करने वाले निर्दलीय प्रत्याशी थे। 1957 में भी कांग्रेस को कोई दल टक्कर नहीं दे सका और 86 में से 70 सीटें उसके खाते में गईं। इस बार भी दूसरे नंबर पर नौ निर्दलीय प्रत्याशी ही रहे। वर्ष 1962 में कांग्रेस के प्रभुत्व में कुछ कमी आई और उसके खाते में 86 में से 62 सीटें गईं। हालांकि न तो निर्दलीय और न ही किसी अन्य दल ने दहाई का आंकड़ा पार किया।

1967 के चुनाव में कांग्रेस का सीट प्रतिशत कम होकर 55.29 फीसदी रह गया और दूसरे नंबर पर रहे भारतीय जनसंघ ने 12 सीटें हासिल कीं। 1971 में एक बार फिर से कांग्रेस ने 85 में से 73 सीटें जीतीं। इसके बाद देश में लगे आपातकाल की वजह से पूरे विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। जिसमें कांग्रेस की सभी सीटों पर हार हुई थी। इसके बाद वर्ष 1984 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से पूरे देश में कांग्रेस की लहर चली। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज करते हुए 85 में से 83 सीटें हासिल कीं। इस चुनाव में लोकदल के खाते में महज दो सीटें ही रहीं। इसके बाद किसी भी चुनाव में कोई भी दल 90 फीसदी से ज्यादा सीट हासिल नहीं कर सका। भारतीय जनता पार्टी ने जरूर 2014 में 80 में से 71 के साथ 88.75 फीसदी सीटें हासिल की थीं।

28 प्रतिशत सीट से सपा बनी सबसे बड़ी पार्टी
वर्ष 2009 के चुनाव में सपा ने 28.75 फीसदी के साथ 80 में से 23 सीटें हासिल की थीं। इस लिहाज से अब तक के किसी भी चुनाव में सबसे बड़े दल द्वारा हासिल की गई यह न्यूनतम संख्या और न्यूनतम सीट प्रतिशत है।

सपा की गुटबाजी को भेदना मोहिबुल्लाह के लिए चुनौती, आजम के गढ़ में पार्टी नेताओं में खींचतान

रामपुर जिले में कई खेमों में बंटी समाजवादी पार्टी के नए प्रत्याशी मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी के लिए गुटबाजी भेदना बड़ी चुनौती होगा। नामांकन के दिन ही प्रत्याशी तय कर सपा हाईकमान ने रामपुर वासियों को नया चेहरा तो दे दिया लेकिन रामपुर की सियासत और यहां सपा में गुटबाजी भी खुलकर सामने नजर आई है।

सीट पर मजबूत चुनाव लड़ने के लिए गुटबाजी से पार पाना नए प्रत्याशी के लिए चुनौती बनेगा ही, साथ ही दिग्गज नेताओं को गले लगाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ेगी। रामपुर लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होना है। चुनाव में अब मात्र 20 दिन ही बाकी हैं, ऐसे में सपा के प्रत्याशी मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी के पास प्रचार के लिए भी यही समय बचा है। जिसमें पार्टी की गुटबाजी से पार पाना और सीनियर और दिग्गज नेताओं की नाराजगी दूर करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बनेगा। मौलाना नदवी दिल्ली पार्लियामेंट्री स्ट्रीट की जामा मस्जिद के इमाम हैं और करीब 19 साल उन्होंने वहां अपनी सेवाएं दी हैं।

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, संभल के सांसद रहे शफीकुर्रहमान बर्क सहित देशभर के अन्य दिग्गज मुस्लिम नेता उनके पीछे नमाज अदा कर चुके हैं। मुस्लिम राजनीतिक लोगों में अच्छी पकड़ और लगातार सपा हाईकमान के संपर्क में रहने का लाभ मौलाना नदवी मिला।सपा ने मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को रामपुर लोकसभा सीट से सपा ने प्रत्याशी बना दिया है। लेकिन रामपुर जिले से करीब 19 साल से दूरी बनाने रखने के बाद मौलाना नदवी को पैंठ बनाने में ताकत झोंकनी होगी। ऐसे में जब चुनाव में मात्र 19 दिन ही शेष रह गए हों।

रांची से अयोध्या जा रही श्रद्धालुओं की बस को ट्रक ने मारी जबरदस्त टक्कर, एक व्यक्ति की मौत, नौ लोग घायल

बिहार के रोहतास में खड़ी हुई एक टूरिस्ट बस को तेज रफ्तार कोयला लदे ट्रक ने पीछे से जोरदार टक्कर मार दी। इस हादसे में एक की मौत हो गई, जबकि नौ लोग घायल हो गए। घटना रोहतास पुलिस मुख्यालय डिहरी स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग-2 की है। यह हादसा शनिवार सुबह डेहरी नगर थानाक्षेत्र के NH-2 पर जवाहर सेतु के पास हुआ। दरअसल, श्रद्धालुओं की बस झारखंड के रांची से उत्तर प्रदेश के अयोध्या दर्शन करने जा रही थी।

जानकारी के मुताबिक, रांची से श्रद्धालुओं को लेकर अयोध्या जा रही बस डिहरी के पास अचानक खराब हो गई थी, जिसकी मरम्मत करवाने के बाद श्रद्धालु जैसे ही बस में चढ़ रहे थे। तभी तेज रफ्तार से आ रहे कोयला लदे ट्रक ने उसमें जोरदार टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में एक बुजुर्ग की मौत हो गई और नौ लोग घायल हो गए। घायलों में चार महिलाएं और पुरुष शामिल हैं। सूचना पर घटनास्थल पर पहुंची डेहरी नगर थाना पुलिस ने घायलों को अनुमंडल अस्पताल डेहरी पहुंचाया। जहां से चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद तीन घायलों को बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल सासाराम रेफर कर दिया। वहीं, बाकी सभी घायलों का इलाज अनुमंडल अस्पताल डिहरी में ही चल रहा है।

इधर, घायलों का इलाज कर रहे डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में कुल दस लोग आए थे। उनमें से एक 70 वर्षीय बुजुर्ग की मौत हो गई। वहीं, घायलों में से तीन की हालत गंभीर बताई जा रही थी, जिन्हें बेहतर इलाज के लिए सासाराम सदर अस्पताल रेफर कर दिया गया है। बाकी सभी का इलाज जारी है।

बाढ़ से बचाव का इंतजाम नहीं करा सके सियासतदां, कई मुद्दे अभी तक अधूरे, एक रिपोर्ट

ब्रह्माजी के नाम से मशहूर बहराइच जिले में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। नेताजी एक बार फिर जिले के विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन आज भी ऐसे कई मुद्दे हैं जो अभी तक अधूरे हैं। जिला आज तक पिछड़ा ही है। यहां अभी तक रेल व परिवहन की सुविधा नहीं मिल सकी। वहीं, शहरवासी शुद्ध पेयजल, जलभराव और सीवरलाइन जैसी मूलभूत समस्या से जूझ रहे हैं। शहर में बाईपास न बनने से जाम की समस्या भी गंभीर होती जा रही है। प्रस्तुत है वीरेंद्र श्रीवास्तव की रिपोर्ट…।

परिवहन व्यवस्था
आमान परिवर्तन के नाम पर बहराइच-गोंडा रेलमार्ग को बंद कर दिया गया था। इस दौरान बड़ी लाइन बिछाने का कार्य शुरू हुआ। महज 64 किलोमीटर की दूरी के इस रेलमार्ग पर काम पूरा करने में करीब पांच साल लग गए। इसके बाद वर्ष 2022 अगस्त माह में यहां से पहली बार वाराणसी के लिए एक इंटरसिटी ट्रेन का संचालन शुरू हुआ। तकनीकी खामियों का हवाला देते हुए रेलवे ने इसे पांच बार बंद कर दिया था। हलांकि इसी दौरान 2023 में एक ट्रेन गोरखपुर के लिए संचालित की गई, जो अभी तक चल रही है। अब 10 फरवरी 2024 से बहराइच-रूपईडीहा रेलमार्ग को बंद कर बड़ी लाइन बिछाने का कार्य शुरू किया गया है। वहीं, तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर रोडवेज की सुविधा भी नहीं है।

ब्रह्माजी के नाम से मशहूर बहराइच जिले में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। नेताजी एक बार फिर जिले के विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन आज भी ऐसे कई मुद्दे हैं जो अभी तक अधूरे हैं। जिला आज तक पिछड़ा ही है। यहां अभी तक रेल व परिवहन की सुविधा नहीं मिल सकी। वहीं, शहरवासी शुद्ध पेयजल, जलभराव और सीवरलाइन जैसी मूलभूत समस्या से जूझ रहे हैं। शहर में बाईपास न बनने से जाम की समस्या भी गंभीर होती जा रही है। प्रस्तुत है वीरेंद्र श्रीवास्तव की रिपोर्ट…।

परिवहन व्यवस्था
आमान परिवर्तन के नाम पर बहराइच-गोंडा रेलमार्ग को बंद कर दिया गया था। इस दौरान बड़ी लाइन बिछाने का कार्य शुरू हुआ। महज 64 किलोमीटर की दूरी के इस रेलमार्ग पर काम पूरा करने में करीब पांच साल लग गए। इसके बाद वर्ष 2022 अगस्त माह में यहां से पहली बार वाराणसी के लिए एक इंटरसिटी ट्रेन का संचालन शुरू हुआ। तकनीकी खामियों का हवाला देते हुए रेलवे ने इसे पांच बार बंद कर दिया था। हलांकि इसी दौरान 2023 में एक ट्रेन गोरखपुर के लिए संचालित की गई, जो अभी तक चल रही है। अब 10 फरवरी 2024 से बहराइच-रूपईडीहा रेलमार्ग को बंद कर बड़ी लाइन बिछाने का कार्य शुरू किया गया है। वहीं, तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर रोडवेज की सुविधा भी नहीं है।

मुख्यमंत्री योगी ने जताई खुशी, बोले- ‘जननायक’ कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देना गौरवपूर्ण क्षण

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जननायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न दिये जाने पर खुशी जताई है और कहा कि उनका पूरा जीवन सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा है। उन्होंने सोशल मीडिया साइट पर कहा कि राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा आज नई दिल्ली में महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ‘जननायक’ कर्पूरी ठाकुर जी को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाना एक गौरवपूर्ण क्षण है। ‘सामाजिक न्याय’ को समर्पित रहा उनका पूरा जीवन भारतीय राजनीति के लिए सदैव एक आदर्श प्रतिमान रहेगा।

आम चुनाव के लिए 60 संगठनों ने जारी किया पांच सूत्री मांग पत्र, सोनम वांगचुक बोले- खतरे में हिमालय

देश में 60 से अधिक पर्यावरण और सामाजिक संगठनों ने हिमालय में बड़ी परियोजनाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की मांग की है। इनमें रेलवे की परियोजनाएं, जल विद्युत परियोजनाएं, चार लेन राजमार्ग परियोजनाएं शामिल हैं। इन 60 संगठनों की मांग है कि ऐसे किसी भी प्रोजक्ट को शुरू करने से पहले जनमत संग्रह और सार्वजनिक परामर्श लिया जाए। इस संगठन को पीपुल फॉर हिमालय नाम दिया गया है। संगठन द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए पांच सूत्री मांग पत्र जारी किया गया है।

क्या है ‘पीपुल ऑफ हिमालया’ की मांग?
पीपुल ऑफ हिमालया संगठन की मांग है कि हिमालय के किसी भी क्षेत्र में बड़ी परियोजनाओं के लिए जनमत संग्रह के माध्यम से लोकतांत्रिक निर्णय लिया जाए। संगठन का कहना है कि ऐसे मेगा प्रोजक्ट्स की वजह से हिमालय का अस्तित्व खतरें में पड़ रहा है।

सोनम वांगचुक ने बताई यह बातें
जयवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधीत करते हुए कहा कि बड़ी परियोजनाओं की वजह से हिमालय का शोषण हो रहा है। इस वजह से स्थानीय लोगों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि पुनर्वास के प्रयासों के लिए सरकार द्वारा करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि सोनम वांगचुक ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की मांग को लेकर 21 दिनों का जलवायु उपवास रखा था। उन्हें जनता का भारी समर्थन मिला था।

पूर्वोत्तर में गंभीर हो गई स्थिति- मोहन सैकिया
इस संगठन में पूर्वोत्तर संवाद मंच के मोहन सैकिया भी शामिल हैं। उनका कहना है कि स्थानीय लोगों की सहमति के बिना ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी घाटियों में बड़े पैमानें पर जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं। ऐसे में परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। इन प्रोजक्ट का दूरगामी प्रभाव प्राकृतिक आपदा के रूप में सामने आता है।

संगठनों ने रखी यह मांग
हिमालय नीति अभियान के गुमान सिंह और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के कर्ता धर्ता अतुल सती ने कहा कि ब्यास बाढ़ और जोशीमठ में भूमि धंसाव होना ऐसी ही नीतियों का परिणाम है।

संबलपुर लोकसभा सीट पर हाई प्रोफाइल ड्रामा, धर्मेंद्र प्रधान को बीजद के नेता प्रणब दास से कड़ी टक्कर

लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। इस बीच, पश्चिमी ओडिशा में संबलपुर लोकसभा सीट पर दिलचस्प टक्कर देखने को मिलेगी। दरअसल, सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) ने इस सीट पर केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ओडिशा के चेहरे माने जाने वाले धर्मेंद्र प्रधान के खिलाफ पार्टी महासचिव (संगठन) प्रणब प्रकाश दास को उतारा है।

बीजद में दूसरे नंबर का नेता
दास को मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बाद बीजद में दूसरे नंबर का नेता माना जाता है। 53 साल के दास राज्य के तटीय क्षेत्र में जाजपुर सीट से तीन बार के विधायक हैं, जबकि राज्यसभा सदस्य प्रधान 15 साल के अंतराल के बाद चुनावी मैदान में लौटे हैं। ‘बॉबी’ के नाम से मशहूर प्रणब प्रकाश दास ने ओडिशा के पश्चिमी क्षेत्र की इष्ट देवी मां संबलेश्वरी के दर्शन कर शुक्रवार को अपना चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया।

परिवार का इस शहर से मजबूत रिश्ता: दास
मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद उन्होंने पत्रकारों से बात की। कहा कि ओडिशा तथा संबलपुर के कुशलक्षेम के लिए मां संबलेश्वरी का आशीर्वाद ले लिया है। यह पूछने पर कि क्या उन्हें संबलपुर में बाहरी होने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस पर दास ने कहा, ‘मेरे दिवंगत पिता अशोक दास और उनकी बहन का संबलपुर से 60 साल पुराना नाता है। मेरे परिवार का इस शहर से मजबूत रिश्ता है और मेरे पिता वर्षों तक यहां रहे। आज, मुझे अपने घर में होने जैसा महसूस हो रहा है।’

आयकर विभाग के नोटिस पर फूटा कांग्रेस का गुस्सा, भाजपा पर लगाया कानून का उल्लंघन करने का आरोप

लोकसभा चुनाव से पहले आयकर विभाग ने पिछले वर्षों के कर रिटर्न विसंगतियों के लिए कांग्रेस को 1,823.08 करोड़ रुपये का नया नोटिस थमाया है। आयकर विभाग के इस नोटिस पर कांग्रेस नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है। इस पर कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर सत्ता का दुरुपयोग और कानून का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया है।

आयकर विभाग के नोटिस पर फूटा कांग्रेसी नेताओं का गुस्सा
आयकर विभाग के नोटिस पर कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा, “देश में लोकतंत्र है। कानून है। भाजपा सरकार अधिकारियों को निर्देश देकर इस तरह की कार्रवाई कर रही है। वे विपक्ष पर निशाना साध रहे हैं। इसका मतलब यह है कि वे कांग्रेस और इंडी गठबंधन से डर रहे हैं। इंडी गठबंधन एनडीए को हराने वाली है। भाजपा इस कमजोरी को समझ चुकी है। उन्हें मालूम है कि भाजपा चुनाव हारने वाली है। इसलिए वह डर पैदा करने की कोशिश कर रही है। कल रात मुझे उस मामले को लेकर नोटिस भेजा गया, जो पहले ही सुलझ चुका है।”

लोकतंत्र को पंगु बनाने की कोशिश: प्रियांक खरगे
कर्नाटक के मंत्री और कांग्रेस नेता प्रियांक खरगे ने आयकर विभाग के नोटिस पर केंद्र सरकार को घेरा है। उन्होंने इसे सरकार द्वारा जान बूझकर लिया गया फैसला बताया है। प्रियांक ने कहा, “भाजपा अपने आईटी और ईडी के मुखौटा संगठन को सक्रिय कर रही है। वे लोकतंत्र की प्रक्रिया को पंगु बनाने की कोशिश कर रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा 400 से अधिक सीटें नहीं जीतने वाली है।”

क्यों चर्चा में है सास-बहू की यह जोड़ी? घर-घर जाकर परिवार की कसम देकर बचा रहीं अपना किला

मध्यप्रदेश में पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया खत्म हो गई है। इसी के साथ मैदान में अब चुनावी रंग दिखाई देने लगे हैं। प्रचार के लिए सभी दलों की तरफ से जोर लगाया जा रहा है। एमपी की चर्चित छिंदवाड़ा सीट पर भी ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिल रहा है। अपने गढ़ पर कब्जा बरकरार रखने के लिए पूर्व सीएम कमलनाथ का पूरा परिवार मैदान में उतर गया है।

पूर्व सीएम कमलनाथ के बेटे और वर्तमान सांसद, कांग्रेस प्रत्याशी नकुल नाथ को जिताने के लिए कमल नाथ की बहू प्रिया नाथ (नकुल नाथ की पत्नी) के साथ ही उनकी पत्नी अलका नाथ (नकुल नाथ की मां) ने भी मोर्चा संभाल लिया है। सास-बहू गांव से लेकर शहरभर में नकुलनाथ के लिए वोट मांगती नजर आ रही हैं। दोनों महिलाएं हर घर में दस्तक देती हुईं नजर आ रही हैं। ये दोनों न सिर्फ नकुलनाथ के लिए प्रचार कर रही हैं, बल्कि लोगों को 44 साल से नाथ परिवार के साथ जो उनका रिश्ता है, उसे भी याद दिला रही हैं। ये दोनों उन लोगों के घर भी पहुंच रही हैं, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं।

अलका नाथ और प्रिया नाथ प्रमुख कार्यकर्ताओं के घर जाकर उनकी नाराजगी दूर करने का कम भी कर रही हैं। आदिवासी बहुल इस सीट पर सास-बहू की यह जोड़ी बेहद लोकप्रिय हो रही है। सूत्रों का कहना है कि पूर्व सीएम कमलनाथ के करीबी दीपक सक्सेना को भी भाजपा में जाने से रोकने में ही अलका ने अहम भूमिका निभाई है। दरअसल, कमल नाथ के भरोसेमंद पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना को लेकर अटकलें थीं कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन यह कयास ही साबित हुए।

सक्सेना के एक बेटे अजय भाजपा में आ चुके हैं, इसलिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद सिंह पटेल समेत वरिष्ठ नेता सक्सेना को मनाने उनके घर भी पहुंचे। बात नहीं बनी तो इसे शिष्टाचार भेंट बताया। दीपक सक्सेना ने भी कहा कि वह भाजपा में नहीं गए हैं और कमल नाथ के साथ हैं। हालांकि, सक्सेना ने कांग्रेस के सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया है। बताया जाता है कि उन्हें अलका नाथ ने मनाया है।

71 साल से कांग्रेस का कब्जा

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कमलनाथ के परिवार का प्रभाव पिछले 44 वर्ष से है। बीते वर्षों में एक उप चुनाव को छोड़ दिया जाए, तो यह सीट पिछले 71 वर्ष से कांग्रेस के खाते में रही है। इसलिए इसे कमल नाथ का गढ़ कहा जाता है। यहां जीत दर्ज करने की मंशा के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आए, गिरिराज सिंह को संसदीय सीट का प्रभारी बनाया गया और बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाई गई। भाजपा भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है। पार्टी को कोशिश है कि वह कैसे भी करके इस सीट पर अपनी जीत का परचम फहराए।

बालों का इलाज करा रही महिला की डैमेज हो गई किडनी, अध्ययन की रिपोर्ट में सामने आई ये गंभीर बात

कॉस्मेटिक उत्पादों में प्रयोग में लाए जाने वाले कई प्रकार के रसायनों का त्वचा पर गंभीर असर हो सकता है। शोधकर्ताओं ने बताया कुछ प्रकार के उत्पादों में इतने हानिकारक रसायन हो सकते हैं, जिनसे गंभीर प्रकार के दुष्प्रभावों का जोखिम हो सकता है। पीएफएएस (पर एंड पॉलीफ्लोरोअल्काइल सबस्टेंस) ऐसे ही रसायन हैं, जिनका नेल पॉलिश, शेविंग क्रीम, फाउंडेशन, लिपस्टिक और मस्कारा जैसे कॉस्मेटिक उत्पादों में प्रयोग किया जाता रहा है। अध्ययनों में पाया गया है कि पीएफएएस न सिर्फ त्वचा में जमा हो सकते हैं, साथ ही इसके कारण कई तरह के दुष्प्रभावों यहां तक कि कैंसर का भी खतरा हो सकता है।

पीएफएएस के कारण होने वाले जोखिमों को देखते हुए न्यूजीलैंड सरकार ने कॉस्मेटिक उत्पादों में पीएफएएस के उपयोग को प्रतिबंधित करने का फैसला किया है। 31 दिसंबर, 2026 से पीएफएएस को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। आइए जानते हैं कि कॉस्मेटिक उत्पादों में पीएफएएस का उपयोग क्यों किया जाता रहा है और इससे त्वचा को किस प्रकार के नुकसान का खतरा हो सकता है?

पीएफएएस हो सकते हैं बहुत हानिकारक

रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पीएफएएस को त्वचा को चिकना रखने, कॉस्मेटिक उत्पादों को अधिक टिकाऊ बनाने और उन्हें वाटर रेजिस्टेंट बनाने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। इस रसायन से कॉस्मेटिक उत्पादों की प्रभाविकता तो बढ़ जाती है पर हमारे शरीर के लिए ये कई प्रकार से हानिकारक हो सकते हैं। उपभोक्ताओं और पर्यावरण की सुरक्षा के उद्देश्य से पीएफएएस के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाला न्यूजीलैंड पहला देश बन गया है।

पीएफएएस के बारे में जानिए

पीएफएएस कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ाने वाले हो सकते हैं। इसके कारण कैंसर, जन्म दोष और प्रतिरक्षा प्रणाली में गड़बड़ी से संबंधित समस्याओं का जोखिम काफी बढ़ जाता है। समय के साथ ये शरीर में जमा होकर दीर्घकालिक जोखिमों को बढ़ाने वाले भी हो सकते हैं।