Saturday , November 23 2024

देश

दूसरी बार आगरा में नौ सीटें जीतने के बाद ताजनगरी को मिलेंगे तीन मंत्री, इन नामों पर हो रही चर्चा

भाजपा ने आगरा जिले में लगातार दूसरी बार सभी नौ सीटें जीतने का जो करिश्मा किया है, उसके बाद आगरा को योगी सरकार में फिर से तीन मंत्री पद मिल सकते हैं।

 यह चर्चा तब हुई थी, जब उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफा दिलाकर उन्हें सक्रिय राजनीति में लाया गया था। आगरा ग्रामीण से उनके चुनाव जीतने के बाद फिर से उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दिए जाने की चर्चा जोरों पर है।

भाजपा ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर बेबीरानी मौर्य का कद भी बढ़ाया है। महिला होने के साथ वह राजनीति में बड़ा चेहरा हैं। उनके जरिए भाजपा नेताओं में यह संदेश भी दिया जा सकता है कि राज्यपाल पद पर बैठाना उनकी राजनीति का अंत नहीं है।भाजपा ने फतेहपुर सीकरी से विधायक रहे चौधरी उदयभान सिंह को मंत्री बनाया था। इस बार उनकी जगह पूर्व मंत्री और सांसद रहे चौधरी बाबूलाल को टिकट दिया।

एत्मादपुर के विधायक धर्मपाल सिंह मंत्री बनने की रेस में हैं। पार्टी ब्रज क्षेत्र के सामाजिक समीकरण साधने के लिए ठाकुर चेहरे को मंत्रिमंडल में शामिल कर सकती है. 

यूपी चुनाव में जातियों के वोट बैंक को अपनी हार के लिए दोषी मान रही मायावती, चिट्ठी लिखकर कही ये बात

मायावती  ने भी उत्तर प्रदेश  में बीएसपी की हार पर एक चिट्ठी लिख कर अपना स्पष्टीकरण दिया है. और ये चिट्ठी काफी दिलचस्प है. इसमें लिखा है कि बीजेपी के मुस्लिम विरोधी चुनाव प्रचार की वजह से 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी  के पक्ष में एकजुट हो गए और मुस्लिम समुदाय को एकजुट देख कर हिंदू वोटरों ने भी संगठित होकर बीजेपी को वोट दिया.

जिससे बीजेपी जीत गई और बाकी पार्टियां हार गईं.उत्तर प्रदेश में केवल एक सीट मिलने के बावजूद मायावती वही गलती दोहरा रही हैं, जिसकी वजह से उनकी पार्टी का ये हाल हुआ है. ये बात हम आपको लगातार कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने जातिगत राजनीति के बंधन को तोड़ दिया है.

वर्ष 1980 के उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 309 सीटें जीती थीं. यानी उस समय वो एक की तरह आसमान में थी. लेकिन इसके बाद वो धीरे-धीरे नीचे आती गई.

वर्ष 1993 में समाजवादी पार्टी ने भी अपनी पहली उड़ान एक Parachute की तरह 109 सीटों के साथ भरी थी. लेकिन वर्ष 2012 में जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया, उसके बाद समाजवादी पार्टी भी नीचे आती चली गई.

जबकि बीजेपी Grassrooters की तरह नीचे से ऊपर गई. 1980 के चुनाव में बीजेपी उत्तर प्रदेश में 11 सीटें जीती थी. लेकिन आज वो 11 सीटों से 255 सीटों पर पहुंच गई है.

यूपी चुनाव में 2 सीट जीतने में कायमाब रही कांग्रेस को लगा तगड़ा झटका, रामपुर खास और फरेंदा में बची ‘लाज’

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 में कांग्रेस महज 2 सीट जीतने में कायमाब रही. 2017 में 7 सीटों पर कब्जा करने वाली कांग्रेस का प्रदेश में ग्राफ चुनाव दर चुनाव गिरता जा रहा है.  2017 के चुनाव में ये 6.25 प्रतिशत था. एक दौर में कांग्रेस यूपी की सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी.

इस चुनाव में कांग्रेस के खाते में जो दो सीटें आई हैं वो रामपुर खास और फरेंदा हैं. रामपुर खास में अराधना मिश्रा ने बीजेपी के नागेश प्रताप सिंह को 14 हजार से ज्यादा वोटों से हराया है. अराधना मिश्रा को 84334 वोट मिले तो नागेश प्रताप को 69593 वोट हासिल हुए.

वहीं, फरेंदा में वीरेंद्र चौधरी ने बीजेपी के बजरंग बहादुर सिंह को 1087 वोटों से शिकस्त दी. वह यहां पर एक भी सीट नहीं जीत पाई. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी नहीं जीत पाए.  राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने किया था, जिन्होंने पिछले तीन दशकों से पार्टी को फिर से जीवित करने के प्रयास में राज्य भर में बैठकें और रोड शो किए.

प्रियंका का अभियान ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ के नारे के इर्द-गिर्द केंद्रित था. पार्टी महिलाओं के लिए एक अलग घोषणापत्र जारी करने के नए प्रयोग के साथ आई थी. कांग्रेस ने इस चुनाव में 40% टिकट भी महिलाओं को दिए थे.

 

यूपी चुनाव के ठीक पहले दलबदल करने वाले इन 21 विधायकों में से सिर्फ चार को ही नसीब हुई जीत

 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ऐन पहले दलबदल करने वाले ज्यादातर विधायकों का दांव खाली गया और ऐसे 80 प्रतिशत जनप्रतिनिधि सियासी संग्राम में सफलता हासिल नहीं कर सके.

दलबदल कर विभिन्न राजनीतिक दलों का हाथ थामने वाले इन 21 विधायकों में से सिर्फ चार को ही जीत नसीब हुई है। पाला बदलने वाले इन विधायकों में से 9 भाजपा जबकि 10 सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे।

जिन प्रमुख नेताओं को हार का सामना करना पड़ा उनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य व धर्म सिंह सैनी के अलावा बरेली की पूर्व महापौर सुप्रिया ऐरन शामिल हैं। ये नेता चुनाव से ऐन पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे।

अदिति सिंह ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था और उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया था। हालांकि राकेश सिंह भाजपा के टिकट पर रायबरेली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली हरचंदपुर विधानसभा सीट से जीत हासिल करने में विफल रहे।

उन्होंने कहा कि इसमें किसी पार्टी की विचारधारा से जुड़ाव या पसंद नहीं होती। आज के दौर में दलबदल के पीछे अवसरवाद शब्द ज्यादा प्रभावी दिखाई देता है। इसे वृहद और सूक्ष्म स्तरों पर देखा जाना चाहिए। वृहद स्तर पर यदि एक प्रत्याशी किसी विशेष दल के लिए अनुकूल स्थिति महसूस करता है तब ऐसी स्थिति में वह दल बदल सकता है।

 

Punjab Assembly Election में ‘आप’ की जीत पर पीएम मोदी ने दी बधाई कहा-“पंजाब के कल्याण…”

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से बधाई मिलने पर शुक्रवार को प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा किया. प्रधानमंत्री ने  ट्वीट करके आम आदमी पार्टी को पंजाब में जीत की बधाई दी थी.

मोदी ने ट्वीट किया था कि पंजाब चुनाव में जीत के लिए आम आदमी पार्टी को मेरी ओर से बधाई. पंजाब के कल्याण के लिए केन्द्र की ओर से हर संभव मदद का मैं आश्वासन देता हूं.”

इस चुनाव में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के कद्दावर नेता प्रकाश सिंह बादल, उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल और पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह जैसे बड़े नेताओं को शिकस्त का सामना करना पड़ा.

पंजाब में Congress की हुई बुरी तरह हार को देख बोले सिद्धू-“चिंता नहीं चिंतन करना पड़ेगा, फैसला जनता…”

कांग्रेस राज्य इकाई के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू  ने कहा “जिसने मेरे के लिए गड्ढे खोदे वे उनसे 10 गुणा ज्यादा गहरे गड्ढों में दफन हो गए…. कहीं से फिर शुरूआत करनी पड़ेगी, चिंता नहीं चिंतन करना पड़ेगा, फैसला जनता की अदालत में हो गया है.”

उन्होंने कहा कि आप जो बोते हैं वही काटते हैं… यह चुनाव एक बदलाव के लिए था…लोगों ने एक महान निर्णय लिया…जनता कभी गलत नहीं होती…मैं इस बारे में नहीं सोच रहा हूं कि लोगों ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार किया है या नहीं.

कांग्रेस राज्य इकाई के अध्यक्ष ने कहा- “मेरा लक्ष्य पंजाब का उत्थान है. पंजाब के साथ खड़े हैं और खड़े रहेंगे. जो पंजाब को प्यार करता है वो हार जीत नहीं देखता. लोगों की आवाज में परमात्मा की आवाज है.”आम आदमी पार्टी ने विधानसभा की 117 सीटों में 92 पर जीत दर्ज की, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है.

UP Result: वोटरों के नोटा का विकल्प चुनने से यूपी की इन सीटो पर हार और जीत का अंतर दिखा काफी कम

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को एक बार फिर जनता ने सरकार बनाने का मौका दिया है.बीजेपी को यहां अकेले 255 सीटें मिली हैं जबकि गठबंधन दलों के साथ सीटों पर जीत का आंकड़ा 272 तक पहुंच गया.

यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में ऐतिहासिक जीत के साथ पार्टी के कार्यकर्ता और नेता गदगद हैं. बीजेपी और सहयोगी दलों के नेता और कार्यकर्ता अभी से ही होली के जश्न में डूब गए हैं.

1. यूपी में बड़ौत विधानसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार कृष्णपाल मलिक को जीत हासिल हुई. उन्होंने आरएलडी के जयवीर को महज 315 वोटों से हराया. यहां नोटा पर लोगों ने 579 वोट डाले जिससे मुकाबला काफी रोमांचक हो गया.

2. विलासपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी के बलदेव औलख को जीत मिली. उन्होंने यहां समाजवादी पार्टी के अमरजीत सिंह को महज 307 वोट से हराया

3. चांदपुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी स्वामी ओमवेश को जीत हासिल हुई. ओमवेश ने बीजेपी के कमलेश सैनी को 234 वोटों से हराया

4. छिबरामऊ में बीजेपी की अर्चना पांडे महज 1,111 वोट के अंतर से जीतीं. यहां उन्होंने अरविंद सिंह यादव को काफी कम अंतर से हराया. लोगों ने यहां नोटा पर 1775 वोट डाले

5. नटहौर विधानसभा सीट पर बीजेपी के ओम कुमार ने आरएलडी के मुंशीराम को महज 258 वोटों से हराया

6 कुर्सी विधानसभा सीट से बीजेपी के सकेंद्र प्रताप ने समाजवादी पार्टी के राकेश वर्मा को 217 वोट से हराया. इसके अलावा कई और सीटों पर भी जीत-हार का अंतर काफी कम रहा

उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में खूब चर्चा बटोरने वाला ‘बुलडोजर’ आखिर कैसे हैं CM योगी से संबंधित

मिशन 2022 के सत्ता संग्राम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बुलडोजर’ की सियासी मैदान में खूब चर्चा रही। इस चुनाव ने साबित कर दिया कि ‘बाबा’ के बुलडोजर के सामने विपक्षी दल टिक नहीं सका।

किसी को भी ये अनुमान नहीं था कि उत्तर प्रदेश चुनाव में बुलडोजर इतना अहम किरदार बन जाएगा। जैसे-जैसे चुनावी रंग चढ़ता गया बुलडोजर भी अपना जलवा बिखरने लगा।

दिलचस्प बात यह है कि योगी को बुलडोजर बाबा का उपनाम समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ही दिया था। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर के प्रमुख के रूप में आदित्यनाथ को पहले से ही ‘बाबा’ कहा जाता है।

भाजपा ने अखिलेश यादव के इस तंज को हाथों-हाथ लिया और इसे योगी आदित्यनाथ के सख्त कानून व्यवस्था बनाए रखने के सुशासन से जोड़ दिया। पार्टी ने इस जुमले को खूब भुनाया और पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘बुलडोजर बाबा’ कहलाने लगे।

देखते ही देखते भाजपा की हर रैली में यह नारा गूंजने लगा ‘यूपी की मजबूरी है, बुलडोजर जरूरी है’। गुरुवार को जब चुनाव नतीजे आए और भाजपा के जीत की तस्वीर साफ होने लगी तो ट्वीटर पर ‘बुलडोजर इज बैक’ ट्रेंड करने लगा।

उस समय अमेरिका में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अशांति का दौर चल रहा था। इस चुनाव में बुलडोजर शब्द का इस्तेमाल अश्वेत मतदाताओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा करने या तो उन्हें चुनाव से दूर रखने के लिए डराने-धमकाने के लिए किया गया।

उत्तर प्रदेश में BJP और CM योगी की पूर्ण बहुमत के साथ हुई जीत के पीछे हैं इस शख्स की अहम भूमिका

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर पीएम नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ का जादू चल गया है। भाजपा और योगी आदित्यनाथ की इस बड़ी जीत के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अहम भूमिका बताई जा रही है।

आरएसएस ने न केवल पूरे प्रदेश में प्रचार के लिए कई विशेष कार्यक्रम चलाए, बल्कि मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में हिंदू वोट को संगठित करने का काम भी किया। संघ ने जनवरी से ही सभी संगठनों को चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी।  योगी सरकार के कामों को जनता तक पहुंचाने कई प्लान भी तैयार किए गए थे।

राष्ट्रीय स्वयं संघ ने चुनाव के दौरान काशी से लेकर अवध तक और बुंदेलखंड से लेकर मथुरा तक लोक जागरण मंच प्रोग्राम और जागरूक मतदाता मंच जैसे कार्यक्रम जोर-शोर से चलाए। लोक जागरण मंच कार्यक्रम के जरिए स्वयंसेवकों ने 25 अहम मुद्दों को कवर किया था। इसके लिए संघ ने एक विशेष पर्चा भी छपवाया था।

उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ प्रचारक ने अमर उजाला को बताया कि हम लोगों से इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रख कर वोट करने की अपील करते थे। इस दौरान हम किसी पार्टी या उम्मीदवार का नाम नहीं लेते थे। बस उनसे इतना ही कहते थे कि ‘इस बार वोट राष्ट्र के नाम पर’ और मतदाता खुद ही समझ जाते थे।

उत्तराखंड में BJP की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए शुरू हुआ दंगल, इन सभी नामों पर हो रही चर्चा

भाजपा सत्ता की कमान किसके हाथों में सौंपेगी, इस सवाल पर पार्टी अब फंसती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर भाजपा ने चुनाव लड़ा। भाजपा के हलकों में चर्चाएं गर्म है कि पार्टी चुनाव हारने के बावजूद धामी को ही सत्ता की बागडोर सौंप सकती है।

सीएम बनाए जाने के पक्ष में यह तर्क भी दिया जा रहा है कि चुनाव के दौरान उनके पास इतना समय नहीं था कि वह अपनी विधानसभा सीट पर समय देते। उन्होंने पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार किया। उनकी विधानसभा सीट पर प्रचार की कमान उनकी पत्नी के हाथों में रही।

मुख्यमंत्री के सवाल पर पार्टी के प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी का कहना है कि इस बारे में केंद्रीय नेतृत्व को निर्णय करना है और सरकार गठन को लेकर एक-दो दिन में स्थिति साफ हो जाएगी। यानी विधानमंडल दल की बैठक भाजपा जल्द बुला सकती है।

मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर विधायकों में से सतपाल महाराज और धन सिंह के नामों की चर्चा है। दोनों नाम पूर्व में भी चर्चा में रहे हैं।
विधायकों से जुदा यदि पार्टी बाहर से मुख्यमंत्री के चेहरा तलाशती है तो उसके लिए तीन प्रमुख नामों की चर्चा शुरू हो गई है।