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तीन हफ़्तों से ज्यादा खांसी का बने रहना भी हैं इस जानलेवा बीमारी के लक्ष्ण

बिना पोषण का आहार केवल पेट ही नहीं भरता बल्कि कई बीमारियों का कारण बनने वाले जीवाणु तथा कीटाणु भी हमारे शरीर में भरता है और शरीर को कमजोर बनाता है। ज्यादातर मरीज बीमारी के इलाज के लिए दवाइयां खाते हैं लेकिन आहार में सही बदलाव नहीं करते जिस कारण शरीर और भी तेज़ी से कमजोर पड़ने लगता है तथा इसकी वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम या खत्म होने लगती है, जिससे फेफड़े कमजोर होना शुरू हो जाते है।

 

जीवाणु को माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम से जाना जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस जीवाणु से प्रभावित है और जीवाणु से ग्रसित व्यक्ति के खांसते, बोलते या छींकते समय उसके मुंह से निकले छींटे कोई अन्य व्यक्ति अवशोषित करता है तो वह व्यक्ति संक्रमित हो सकता हैं। हालांकि टीबी रोग का प्रसार किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से नहीं होता है।

(टीबी) के लक्षण-
1. तीन हफ़्तों से जयादा तथा लगातार खांसी का बना रहना।
2. खांसी के साथ साथ बुखार का आना तथा ठण्ड लगना ।
3. सीने में दर्द होना तथा खांसी आते समय अधिक दर्द होना।
4. कमजोरी तथा थकाबट।
5. भूख न लगना तथा वजन का कम होना।
6. रात में तथा सोते समय अधिक पसीना आना।

उपचार तथा देखभाल-
चूंकि क्षय रोग (टीबी) श्व्सन सम्बन्धी रोग है जिस कारण यह शरीर के अन्य हिस्से जैसे की हड्डिया, मष्तिष्क, पेट, पाचन तंत्र, किडनी तथा लिवर को संक्रमित कर सकता है। इस रोग का इलाज डॉक्टर तथा डाइइटीशियन की सलाह तथा सुझाव के साथ महीनो तक तथा लगातार चलने वाला इलाज है। टीबी के इलाज के दौरान कई प्रकार की एंटीबायोटिक दवाये मरीज को दी जाती है जो की माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु को नष्ट तथा नियंत्रित करती है।
अधिक पोषण युक्त तथा दिन में कई बार भोजन लेना चाहिए। और मरीज के द्वारा लिए जाना भोजन संतुलित होना चाहिए। सन्तुलिन आहार की थाली में यह सुनिश्चित करे की सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे की भिन्न भिन्न प्रकार के अनाज, दालें, दूध, दही, घी, पनीर, हरी तथा अन्य प्रकार की सब्जियां एवं फल, गुड़ तथा सही मात्रा में भोजन में नमक हो। इस प्रकार हम टीबी से होने वाली मृत्यु दर को रोक सकते है तथा मरीज के अच्छे स्वास्थ्य की परिकल्पना करना पूरी तरह संभव है।