पंकज शाक्य
घिरोर/मैनपुरी – वैसे तो लोग आज के दौर में डॉक्टर को भगवान का दर्जा देते है। लेकिन यदि यही भगवान लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने लगे, तो क्या कहेंगे।
ऐसा ही मामला जनपद मैनपुरी के विकासखंड घिरोर से सामने आया है। जहां के गाँव लपगवां के ग्रामीणों को वैक्सीन के नाम पर सिर्फ प्रमाण पत्र मिला है। जिसमें वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी है, लेकिन असल में इस वैक्सीन को सिर्फ प्रमाण पत्र में ही लगाया गया है, लोगों को नहीं। ग्रामीणों का स्वास्थ्य विभाग पर आरोप यहां तक है कि कार्ड जारी किए हुए डेढ़ माह बीत चुका है। लेकिन अभी भी कोई भी स्वास्थ्य कर्मी वैक्सीन के नाम पर देखने तक नहीं आया।
जहां बीते 24 जून को शासन की मंशा के अनुसार स्वास्थ्य विभाग के द्वारा कोरोना वैक्सीन लगाने हेतु एक कैंप का आयोजन किया गया था। जिसमें कुछ लोगों के कार्ड तो जारी हुए पर उनको वैक्सीन नहीं लगाई गई। जिन लोगों के कार्ड जारी हुए उनसे मीडिया की टीम ने गांव में पहुंचकर जब उनसे बात की तो पता चला की कुछ लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई। लेकिन उनको पहला डोज चढ़ाकर कार्ड दे दिया गया। तो कुछ लोगों ने वैक्सीन लगवाने के लिए कहा तो उन्हें भी वैक्सीन ना लगाते हुए कार्ड पर पहला डोज चढ़ाकर कार्ड थमा दिए गए। आज जब करीब डेढ़ महीने से अधिक समय व्यतीत हो गया। लेकिन इन ग्रामीणों को वैक्सीन के नाम पर अगर कुछ मिला तो केवल इंतजार और केवल इंतजार। लेकिन इस गांव के ग्रामीण आज भी इस आस में बैठे हैं कि हमको वैक्सीन लगाई जाएगी। जिससे हम कोरोना जैसी महामारी से बच सकते हैं। आखिर स्वास्थ्य विभाग की ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि कार्ड जारी कर दिए गए और वैक्सीनेशन नहीं किया गया। बात इस बात की नहीं कि वैक्सीनेशन नहीं किया बात इस बात की है कि आखिर शासन की इस जन कल्याणकारी योजना को पलीता लगाने वाले लोग प्रशासन की नजर में धूल झोंकने में सफल कैसे हो गए। अब देखना यह है कि इस पूरे मामले में दोषी लोगों पर स्वास्थ्य विभाग कोई कार्रवाई करता है या पूर्व की भांति केवल मामला लीपापोती तक ही सीमित कर रह जाता है।
मैनपुरी के घिरोर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मे हुई लापरवाही
यदि इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की लापरवाहियों के बारे में बात की जाए तो जिला ही क्या पूरे उत्तर प्रदेश में नंबर वन पर है। यह अपनी लापरवाहियों की वजह से आए दिन अखबार की सुर्खियां बन चुका है। बीते जुलाई माह में इस अस्पताल के कर्मियों ने एक प्रसूता की डिलीबरी कराने के लिए प्रसूता के पति से पांच हजार रुपए की मांग की गई थी। जिसमें इस पीड़ित ने तीन हज़ार रुपए स्वास्थ्य कर्मियों को दे दिए थे। वाकी दो हज़ार रुपए ना दिए तो प्रसूता को अस्पताल से बाहर निकाल दिया और डिस्चार्ज कार्ड पर फर्जी हस्ताक्षर कर लिए। इतना ही नहीं जब प्रसूता घर आ गई। तो उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और उसे निजी अस्पताल में दिखाया गया। जहां पर उपस्थिति चिकित्सकों ने बताया कि मरीज की मूत्र नलिका और मल नलिका एक हो चुकी है। दूसरा मामला अभी कुछ दिन पहले का है। जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र घिरोर में एक नवजात शिशु को इलाज ना मिलने के कारण मां बाप के जिगर के टुकड़े की मौत हो गई थी। तब इन दोनों ही मामलों की शिकायत पीड़ितों के द्वारा मुख्यमंत्री पोर्टल और मुख्य चिकित्साधिकारी से की गई थी। लेकिन कार्यवाही का नतीजा सिर्फ शून्य रहा। अब ये नया मामला सामने आया है। देखना है अब इस मामले में लापरवाहों पर गाज गिरेगी या सिर्फ ठंडे बस्ते में चली जायेगी।
क्या कहते है मुख्य चिकित्साधिकारी
जब इस संबंध में मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. पी. पी. सिंह से फोन पर वार्ता की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि मामला संज्ञान में नहीं है। यह मामला मीडिया के माध्यम से संज्ञान में आया है। इस तरह के मामले में जांच कराई जाएगी। जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।