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विदेश

10 मार्च से पहले भारत लौटेंगे सैन्यकर्मी, राष्ट्रपति मुइज्जू बोले- देश की संप्रभुता से समझौता नही

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने सोमवार को बताया कि 10 मार्च से पहले भारतीय सैन्यकर्मियों के पहले समूह को भारत वापस भेज दिया जाएगा। वहीं दो विमानन प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे शेष भारतीयों को 10 मई तक वापस भेजा जाएगा। संसद में अपने संबोधन के दौरान मुइज्जू ने कहा कि उनका मानना है कि मालदीव के अधिकांश लोग इस उम्मीद के साथ उनकी सरकार का समर्थन करते हैं कि वे देश से विदेशी सैनिकों को हटा देंगे। इसके साथ ही उनका लक्ष्य खोए हुए समुद्री क्षेत्र को वापस पाना है।

संप्रभुता से समझौता नहीं: मुइज्जू
मुइज्जू ने कहा कि उनकी सरकार ऐसे किसी भी राज्य समझौते की अनुमति नहीं देता है, जो देश की संप्रभुता से समझौता करें। 17 नवंबर को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ही मुइज्जू ने भारत से 15 मार्च तक अपने 88 सैन्यकर्मियों को वापस बुलाने की अपील की थी। अन्य देशों के साथ राष्ट्रपति मुइज्जू की कूटनीतिक चर्चाएं भी जारी है।

मुइज्जू ने कहा, हमने भारत से सैन्यकर्मियों को मालदीव से वापस बुलाने की अपील की है। उन्होंने कहा, ‘हाल ही में हुए चर्चाओं के अनुसार, तीन विमानन प्लेटफॉर्मों में से एक से भारतीय सैन्यकर्मियों को 10 मार्च से पहले वापस बुलाने के लिए कहा गया है। बाकी के दो प्लेटफॉर्म से भी 10 मार्च तक वापस बुला लिया जाएगा।’

भारतीय सैन्यकर्मी मानवीय मिशनों का रह चुके हैं हिस्सा
मालदीव के साथ द्विपक्षीय वार्ता में भारत ने दो फरवरी को कहा था कि द्वीप राष्ट्र में भारतीय विमानन प्लेटफॉर्म के संचालन को जारी रखने के लिए मालदीव के साथ समाधानों पर सहमति व्यक्त की गई है। वर्तमान में, भारतीय सैन्यकर्मी दो हेलीकॉप्टर और एक विमान संचालित करने के लिए मालदीव में हैं। ये सैन्यकर्मी सैकड़ों चिकित्सा निकासी और मानवीय मिशनों का हिस्सा रह चुके हैं।

बता दें कि पिछले कुछ वर्षों से भारत की तरफ से मालदीव के लोगों को मानवीय और चिकित्सा निकासी सेवाएं प्रदान की गई है। राष्ट्रपति मुइज्जू ने कहा कि उनका प्रशासन ऐसा कुछ नहीं करने वाला है जिससे देश की संप्रभुता से समझौता करना पड़े। उन्होंने आगे कहा कि अगर इससे देश की संप्रभुता को खतरा होता है तो वह किसी भी बाहरी दवाब के सामने नहीं झुकेंगे।

अशांत बलूचिस्तान में अधिकतर मतदान केंद्र संवेदनशील या अति संवेदनशील, महज 19 फीसदी सामान्य

पाकिस्तान में आठ फरवरी को आम चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में झड़प और हिंसा की खबरें सामने आने लगी हैं। अशांत बलूचिस्तान प्रांत में चुनाव के मद्देनजर स्थापित किए गए 80 फीसदी मतदान केंद्रों को संवेदनशील या अत्यधिक संवेदनशील घोषित किया गया है। बलूचिस्तान के कुल 5,028 मतदान केंद्रों में से केवल 961 यानी करीब 19 फीसदी सामान्य हैं।

सुरक्षा चुनौतियों को लेकर चिंता
बलूचिस्तान के गृह मंत्री जुबैर जमाली ने प्रांत में चुनाव के दौरान संभावित सुरक्षा चुनौतियों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान में सुरक्षा बलों, प्रतिष्ठानों, सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों पर हमले की कोशिश के मद्देनजर मतदान के दिन सुरक्षा बहुत कड़ी होगी। वहीं, उन्होंने बताया कि बलूचिस्तान में कुल 5,028 मतदान केंद्र हैं, जिनमें से केवल 961 को सामान्य के रूप में नामित किया गया है। इसके अलावा 2,337 मतदान केंद्रों को ‘संवेदनशील’ और 1,730 को अत्यधिक संवेदनशील घोषित किया गया है।

इंटरनेट सेवाएं रहेंगी बंद
बलूचिस्तान के कार्यवाहक सूचना मंत्री जान अचकजई ने रविवार को घोषणा की थी कि जिन इलाकों में मतदान केंद्र संवेदनशील चिह्नित किए गए हैं, वहां इंटरनेट सेवाएं अस्थायी रूप से निलंबित रहेंगी। उन्होंने कहा था कि हिंसा भड़काने और अफवाह फैलाने के लिए आतंकवादी और शरारती तत्व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए ऐसे खतरों से बचने के लिए टर्बत, माछ और चमन सहित विभिन्न क्षेत्रों में इंटरनेट तक पहुंच प्रतिबंधित होगी।

यह हो चुकी हैं घटनाएं
प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) से जुड़े आतंकवादियों ने पिछले सप्ताह माछ जेल के कैदियों को छुड़ाने के लिए माछ और कोलपुर शहरों में घुसने की कोशिश की थी, लेकिन सुरक्षा बलों ने उनकी कोशिश को विफल कर दिया था। हालांकि, अभियान के दौरान चार सुरक्षाकर्मी, दो नागरिक और कम से कम 24 आतंकवादी मारे गए। बलूचिस्तान में चुनावी हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं। जनवरी में बलूचिस्तान के सिबी शहर में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की पार्टी की रैली में हुए बम विस्फोट में चार लोग मारे गए थे और छह अन्य घायल हो गए थे।

मतदान केंद्रों पर बढ़ाई जाएगी सुरक्षा बलों की तैनाती
प्रांतीय सरकार ने चुनाव संबंधी हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर पहले ही राजनीतिक रैलियों और नुक्कड़ सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। जमाली ने कहा कि मतदान केंद्रों पर सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाई जाएगी, खासकर संवेदनशील और अति संवेदनशील क्षेत्रों में। पिछले साल से बलूचिस्तान में आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि हुई है, खासकर संघीय सरकार और प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) संगठन के बीच नवंबर 2022 में संघर्ष विराम समाप्त होने के बाद।

आम चुनाव से पहले मतपत्रों का वितरण शुरू, करीब 18 हजार उम्मीदवार मैदान में

पाकिस्तान में आठ फरवरी को मतदान होने हैं। चुनाव आयोग ने नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं के 859 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 26 करोड़ मतपत्रों का वितरण शुरू कर दिया है। संसद के निचले सदन और चार प्रांतीय विधानसभाओं की 336 सीटों के लिए मतदान होगा। नेशनल असेंबली और पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा व ब्लूचिस्तान की प्रांतीय विधानसभाओं के लिए करीब 18 हजार उम्मीदवार मैदान में हैं। ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’अखबार ने सोमवार को चुनाव आयोग (ईसीपी) के एक प्रवक्ता के हवाले से खबर दी कि तीन सरकारी प्रेस में मतपत्रों की छपाई का काम पूरा हो गया है। उम्मीदवारी से जुड़ी याचिकाओं पर अदालत के फैसले के बाद कुछ मतपत्रों को फिर से छापना पड़ा है।

प्रवक्ता ने बताया कि इस बार छपाई की प्रक्रिया के लिए 2,170 टन कागज का इस्तेमाल किया गया, जो 2018 के बाद सबसे ज्यादा है। मतपत्रों की संख्या बढ़कर 26 करोड़ हुई है, जो पिछले आम चुनाव के मतपत्रों से चार करोड़ ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि कम समय और चुनौतियों के बावजूद आयोग ने समय पर मतपत्रों की छपाई का काम पूरा किया है।

प्रवक्ता ने कहा, मतपत्रों के वितरण की प्रक्रिया देशभर में शुरू हो गई और इसे सोमवार सोमवार शाम तक पूरा कर लिया जाएगा। चुनाव से जुड़ी किसी शिकायत को निपटाने के लिए आयोग ने केंद्रीय नियंत्रण और निगरानी केंद्र भी बनाया है। जिसे विभिन्न प्रकार की 221 शिकायतें मिली हैं। उनमें से 198 शिकायतों को निवारण किया गया है। प्रवक्ता ने कहा कि कुछ निर्वाचन अधिकारियों से चुनाव प्रबंधन प्रणाली के बारे में शिकायतें मिली हैं और उनकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है।

इस बीच, कार्यवाहक सूचना मंत्री मुर्तजा सोलांगी ने कहा कि 12 करोड़ से ज्यादा लोग आम चुनाव में मतदान के अपने अधिकार का इस्तेमाल करने के पात्र हैं। उन्होंने कहा, कार्यवाहक सरकार ने चुनाव की प्रक्रिया के लिए चुनाव आयोग की हर तरह से मदद की है। सोलांगी ने कहा कि संविधान के मुताबिक, देश को इसके निर्विचत प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाएगा। उन्होंने कहा, चुनाव अब कुछ दिन ही दूर हैं। लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे।

हूती विद्रोहियों के खिलाफ अमेरिका-यूके का संयुक्त हमला, 10 अलग-अलग स्थानों के 30 लक्ष्यों को किया बर्बाद

इस्राइल और हमास के बीच युद्ध जारी है। इसका असर मध्यपूर्व के अलग-अलग देशों में दिखाई दे रहा है। ईरान, जॉर्डन, सीरिया और हूती सहित अन्य देश और संगठन अमेरिका के खिलाफ हमलावर हैं। इस बीच अमेरिका ने हूती विद्रोहियों को मुंहतोड़ जवाब दिया है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूनाइडेट किंगडम ने शनिवार को हूती ठिकानों के खिलाफ हवाई और जमीन पर हमले किए। दोनों देशों ने हूती के 10 अलग-अलग ठिकानों पर 30 से अधिक लक्ष्यों पर हमला किया। हमले के बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, कनाडा, डेनमार्क, नीदरलैंड और न्यूजीलैंड के साथ एक संयुक्त बयान जारी किया। बयान में उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य लाल सागर में शांति स्थापित करना है। हम लाल साहर में तनाव कम करना चाहते हैं। हम विश्व के महत्वपूर्ण जलमार्गों मे से एक की रक्षा करने में संकोच नहीं करेंगे।

यूएस सेंट्रल कमांड ने बताया कि अमेरिका सेना ने शनिवार 19.20 बजे आत्मरक्षा में लाल सागर में विद्रोहियों द्वारा तैयार किए गए छह एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइलों के खिलाफ हमला किया। कमांड की मानें तो, लाल सागर में अमेरिकी नौसेना के जहाजों और व्यापारिक जहाजों के लिए खतरा पैदा किया जा रहा था।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इराक और सीरिया में ईरान समर्थित मिलिशिया समूहों पर अमेरिकी हमलों पर चर्चा करने के लिए आपातकालीन बैठक आयोजित करने को तैयार हुआ है। सोमवार को आपातकालीन बैठक होगी। बैठक का आयोजन सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य और ईरान के करीबी रूस के अनुरोध पर आयोजित की जा रही है।

अमेरिका के खिलाफ इसलिए हो रहे हैं हमले
बता दें, गाजा में हो रहे इस्राइल हमलों से मध्यपूर्व बौखलाया हुआ है। मध्यपूर्व गाजा में हो रहे हमलों का कारण अमेरिका को मानता है। इसी वजह से हूती विद्रोही अदन की खाड़ी में व्यापारिक जहाजों के खिलाफ हमले कर रहे हैं। साथ ही कभी ईरान तो कभी जॉर्डन को कभी सीरिया में अमेरिकी सेना और अमेरिकी प्रतिष्ठानों पर हमले हो रहे हैं। हाल ही में तुर्किये में दो बंदूकधारी एक अमेरिकी कंपनी में घुस गए, उन्होंने कंपनी में मौजूद सात लोगों को को बंधक बना लिया।

यूक्रेन के मोर्चे पर लड़ रहे सैनिकों की पत्नियों ने किया प्रदर्शन, विदेशी पत्रकारों समेत कई हिरासत में

रूस की राजधानी मॉस्को में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों को हिरासत में लिया गया है। हिरासत में लिए गए लोगों में कई विदेशी पत्रकार भी शामिल हैं। ये प्रदर्शन राष्ट्रपति पुतिन के चुनाव मुख्यालय के बाहर किया गया। यह प्रदर्शन यूक्रेन के मोर्चे पर लड़ रहे रूसी सैनिकों की पत्नियों और अन्य परिजनों ने आयोजित किया। इन महिलाओं की मांग थी कि उनके पतियों, बच्चों को घर वापस लाया जाए।

मोर्चे पर लड़ रहे सैनिकों की पत्नियों ने किया प्रदर्शन
रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए 500 दिन बीत चुके हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में महिलाएं क्रेमलिन में इकट्ठा हुईं और फिर वहीं पर मौजूद राष्ट्रपति पुतिन के चुनाव मुख्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन किया। इसके बाद पुलिस ने भीड़ से कई लोगों को हिरासत में लिया। हिरासत में लिए गए लोगों में कई विदेशी पत्रकार भी शामिल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार करीब 27 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिन्हें पुलिस वैन में डालकर कितेय-गोराड स्टेशन ले जाया गया। कई प्रदर्शनकारियों को छोड़ दिया गया है और कई अभी भी पुलिस की हिरासत में हैं। रूस के स्वतंत्र मीडिया के अनुसार, हिरासत में लिए गए लोगों को रिपोर्ट्स लिखे जाने तक कानूनी मदद भी नहीं दी गई थी।

कई विदेशी पत्रकार भी हिरासत में लिए गए
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हिरासत में लिए गए विदेशी पत्रकारों में फ्रांस प्रेस, स्पीगल और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। साथ ही जापानी टेलीविजन कंपनी फ्यूजी के प्रतिनिधि आंद्रेई जाइको भी शामिल हैं। ये विरोध प्रदर्शन मॉस्को के रेड स्कवायर के नजदीक हुए। रूस में जल्द ही आम चुनाव होने हैं और इन चुनाव में व्लादिमीर पुतिन का एक बार फिर से रूस का राष्ट्रपति बनना तय दिख रहा है। रूस में 15-17 मार्च तक चुनाव होंगे और विजेता का एलान मई में किया जाएगा।

साल 1999 में अपने कार्यकाल के आखिरी दिन रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति येल्तसिन ने व्लादिमीर पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया था। इसके बाद साल 2000 में हुए रूसी चुनाव में पुतिन 53 प्रतिशत वोटों से जीते और साल 2004 में उन्हें 71 प्रतिशत वोट मिले। 2008 में पुतिन के करीबी दिमित्री मेदवेदेव राष्ट्रपति बने और साल 2012 में फिर से पुतिन 63 प्रतिशत वोट पाकर राष्ट्रपति बने। साल 2018 में भी पुतिन को 76 फीसदी मत मिले।

इमरान खान को एक और बड़ा झटका, पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के पांच साल तक चुनाव लड़ने पर रोक

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई के आम चुनाव से कुछ दिन पहले ही बड़ा झटका लगा है। दरअसल इमरान खान के करीबी सहयोगी और उनकी सरकार में विदेश मंत्री रहे शाह महमूद कुरैशी के चुनाव लड़ने पर रोक लग गई है। कुरैशी को बीते दिनों गोपनीय दस्तावेज लीक करने के मामले में 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। ऐसे में अब पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक वे पांच साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।

चुनाव आयोग ने किया एलान
पाकिस्तान की स्पेशल कोर्ट ने बीते दिनों गोपनीय दस्तावेज लीक करने के मामले में इमरान खान और शाह महमूद कुरैशी को दोषी मानते हुए 10-10 साल जेल की सजा सुनाई थी। अब कोर्ट के उस फैसले को आधार बनाते हुए पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने कुरैशी के पांच साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। चुनाव आयोग ने बयान में कहा कि मखदूम शाह महमूद कुरैशी को पाकिस्तान के संविधान के तहत चुनाव कानून के अनुच्छेद 63(1) के तहत चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है। कुरैशी आगामी 8 फरवरी को होने वाले आम चुनाव में भी हिस्सा नहीं ले पाएंगे।

गोपनीय दस्तावेज लीक करने का पाया गया दोषी
शाह महमूद कुरैशी और इमरान खान पर बीते साल एक रैली के दौरान गोपनीय दस्तावेज लीक करने का दोषी पाया गया था। दरअसल कूटनीतिक चैनल के एक खत को इमरान खान ने रैली में लहराया था और दावा किया था कि उनकी सरकार को गिराने के लिए अमेरिका से साजिश रची जा रही है। उस वक्त शाह महमूद कुरैशी पाकिस्तान के विदेश मंत्री थे। इस मामले में इमरान खान को भी 10 साल जेल की सजा हुई है। इमरान खान को अब तक कुल चार मामलों में सजा हो चुकी है। आठ फरवरी को पाकिस्तान में आम चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। उससे पहले पीटीआई का आरोप है कि उनकी पार्टी और इसके समर्थकों को प्रताड़ित किया जा रहा है और उन्हें निष्पक्ष तरीके से चुनाव नहीं लड़ने दिया जा रहा है।

जॉर्डन हमले के जवाब में अमेरिका ने सीरिया और इराक में 85 ठिकानों पर की बमबारी, छह आतंकी मारे गए

अमेरिकी सेना जॉर्डन में सैन्य अड्डे पर हुए ड्रोन हमले के जवाब में शुक्रवार को सीरिया और इराक में ईरान समर्थित मिलिशिया के ठिकानों पर बमबारी की। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया में अमेरिका के हवाई हमलों में छह मिलिशिया लड़ाके मारे गए हैं। इनमें तीन गैर-सीरियाई थे। अमेरिकी सेना ने एक बयान में कहा कि अमेरिका ने शुक्रवार को इराक और सीरिया में ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और उनके समर्थित मिलिशिया से जुड़े 85 से अधिक ठिकानों पर जवाबी हवाई हमले किए।

बयान में कहा गया है कि अमेरिकी सेना ने हवाई हमलों ने कमांड और नियंत्रण केंद्रों, रॉकेट, मिसाइल और ड्रोन भंडारण सुविधाओं के साथ-साथ रसद और गोला-बारूद आपूर्ति श्रृंखला सुविधाओं को निशाना बनाया। अमेरिकी सेना ने 125 से अधिक युद्ध सामग्री के साथ 85 से अधिक ठिकानों पर हमला किया। वहीं, सीरिया की सरकारी मीडिया ने कहा कि सीरिया के रेगिस्तानी इलाकों और इराक से लगती सीमा के पास स्थित ठिकानों पर अमेरिकी हमले में कई लोग हताहत और घायल हुए हैं।

हमले के बाद बाइडन का बयान
ईरान समर्थिक आतंकी समूहों के ठिकानों पर हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने एक बयान में कहा कि अमेरिका मध्य-पूर्व में संघर्ष नहीं चाहता है, लेकिन अगर किसी अमेरिकी को नुकसान पहुंचता है, तो हम उसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। उन्होंने कहा कि पिछले रविवार को जॉर्डन में ईरान द्वारा समर्थित आतंकी समूहों के ड्रोन हमले में तीन अमेरिकी सैनिक मारे गए थे। शुक्रवार को मैं डोवर एयरफोर्स बेस पर इन बहादुर सैनिकों के शवों की वापसी पर श्रद्धांजलि समारोह में शामिल हुआ और उनके परिवारों से बात की।

पिछले सप्ताह जॉर्डन में सैन्य अड्डे हुए ड्रोन हमले में तीन अमेरिकी सैनिक मारे गए थे और लगभग 40 अन्य घायल हुए थे। इसके बाद राष्ट्रपति जो बाइडन ने ईरान समर्थित समूहों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने की बात कही थी। बीते दिनों ने बाइडन ने जवाबी हमले की मंजूरी दी थी। इसके बाद अमेरिकी ने शुक्रवार को पहला हमला किया।

पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने की आशंका
हालांकि, अमेरिकी सेना ने ईरान की सीमा के अंदर किसी भी ठिकाने को निशाना नहीं बनाया है। लेकिन अमरेकिा के जवाबी हमलों के बाद पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। गाजा में पिछले तीन महीने से चल रहे इस्राइल-हमास युद्ध के कारण क्षेत्र में पहले से ही तनाव की स्थिति बनी हुई है।

विकीलीक्स को हैकिंग सीक्रेट सौंपने वाले को 40 वर्ष की जेल, देश की सुरक्षा को गंभीर क्षति

अमेरिकी खुफिया एजेंसी ‘सीआईए’ के इतिहास में वर्गीकृत जानकारी की अब तक की सबसे बड़ी चोरी और बाल यौन शोषण की तस्वीरें तथा वीडियो रखने के लिए पूर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर को दोषी ठहराया गया है। मैनहट्टन संघीय अदालत में 35 वर्षीय जोशुआ शुल्टे को इस जुर्म में 40 साल जेल की सजा सुनाई गई है। उसने 2017 में सीआईए की खुफिया सूचनाएं विकीलीक्स को लीक की थीं। जोशुआ शुल्टे 2018 से जेल में बंद है। शुक्रवार को मैनहट्टन संघीय कोर्ट के जज एम. फुरमैन ने सजा देते हुए कहा, हमें संभवतः कभी भी नुकसान की पूरी सीमा का पता नहीं चलेगा, लेकिन मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह अमेरिकी इतिहास में बहुत ज्यादा था।

वॉल्ट-7 लीक से पता चला कि कैसे सीआईए ने विदेशी जासूसी अभियानों में एपल और एंड्रॉयड स्मार्टफोन को हैक किया और इंटरनेट से जुड़े टीवी को सुनने वाले उपकरणों में बदलने का प्रयास किया। अपनी गिरफ्तारी से पहले शुल्टे ने वर्जीनिया के लैंगली स्थित एजेंसी के मुख्यालय में एक कोडर के रूप में हैकिंग टूल बनाने में मदद की थी।

देश की सुरक्षा को गंभीर क्षति
जज फुरमैन ने कहा, शुल्टे ने कंप्यूटर पर एक छिपी हुई फाइल बनाकर सलाखों के पीछे से अपने अपराध जारी रखे। इनमें बाल यौन शोषण की 2,400 छवियां शामिल हैं। फुरमैन ने सीआईए के उप निदेशक डेविड कोहेन द्वारा सरकार को भेजे गए 1 पेज के पत्र का जिक्र भी किया, जिसमें शुल्टे के अपराधों को देश की राष्ट्रीय सुरक्षा व सीआईए को गंभीर क्षति वाला बताया गया।

अमेरिका ने कीमत चुकाई
जज ने कहा, शुल्टे के कार्यों से सीआईए को करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ। उसकी कोशिशों से अमेरिका के पास विरोधियों के खिलाफ विदेशी खुफिया जानकारी जुटाने की क्षमता कमजोर हो गई। इसने सीआईए के कर्मियों, कार्यक्रमों व संपत्तियों को खतरे में डाल दिया। सीआईए की संचालन क्षमता भी कमजोर हुई। संक्षेप में, इन कार्यों से अमेरिका को भारी कीमत चुकानी पड़ी।

शुल्टे बोला-यह न्याय नहीं है
शुल्टे ने ज्यादातर ब्रुकलिन के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में कठोर परिस्थितियों के बारे में शिकायत की, अपने सेल को ‘मेरा यातना पिंजरा’ कहा। उसने कहा, अभियोजकों ने एक बार उसे सौदे की पेशकश की, लेकिन उसके तहत वह अपील नहीं कर सकता था। शुल्टे ने कहा, यह न्याय नहीं है।

चुनाव प्रक्रिया से खुद अलग-थलग महसूस कर रहे हिंदू, कई लोगों का मतदाता के रूप में नहीं हुआ पंजीकरण

पाकिस्तान में पांच दिन बाद आम चुनाव होने हैं। लेकिन, उससे पहले अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के ज्यादातर लोगों को लगता है कि उन्हें दक्षिणी सिंध प्रांत में चुनाव की प्रक्रिया से बाहर किया गया है। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में हिंदू आबादी कुल 2.1 फीसदी है। इसमें से नौ फीसदी सिंध प्रांत में रहते हैं। जहां उनकी सबसे बड़ी आबादी है।

देश के संविधान के तहत कौमी असेंबली (संसद का निचला सदन) में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के लिए दस सीटें और प्रांतीय विधानसभा में 24 सीटें आरक्षित हैं। हिंदू समुदाय के नेताओं और सदस्यों का आरोप है कि उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है और समुदाय के कई लोग मतदाता के रूप में पंजीकृत नहीं हैं।

पाकिस्तान हिंदू परिषद के मुख्य संरक्षक रमेश कुमार वांकवानी ने कहा, हिंदू समुदाय, खासकर वे लोग जो आर्थिक रूप से कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से हैं या सिंध के दूरदराज के गांवों में रहते हैं, वे चुनाव प्रक्रिया से खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा, चुनावों से पहले हुई राष्ट्रीय जनगणना में हिंदुओं की गणना पूरी तरह से नहीं की गई। हम नेशनल डेटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (एनएडीआरए) और पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) की ओर से जारी सूची से सहमत नहीं है। मतदाताओं को एनएडीआरए और ईसीपी में मतदाता के रूप में पंजीकरण कराना होता है।

कानून के मुताबिक, नागरिक को राज्य का होना चाहिए और उसे अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने से पहले ईसीपी में एक मतदाता के रूप में पंजीकृत होना होगा। लेकिन, सिंध में रहने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के सदस्यों का दावा है कि उनकी आबादी की तुलना में कुछ लोग ही अपने पहचान दस्तावेज के कारण मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं।

मीरपुर खास के स्थानीय हिंदू समुदाय के नेता शिवा काची ने कहा, हिंदुओं की संख्या सही नहीं है और बहुत से लोग दूरदराज के इलाकों में रहते हैं और पढ़े-लिखे नहीं हैं। इसलिए उनके पहचान दस्तावेजों में विसंगतियां हैं। जिसका मतलब है कि वे मतदाता के रूप में पंजीकृत नहीं हैं। साल 2018 में जब आम चुनाव हुए थे, तो करीब 10.59 करोड़ मतदातों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। कुल 36.26 लाख मतदाता अल्पसंख्यक समुदायों से थे। काची ने कहा, हकीकत में हिंदू पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। जिनकी कुल संख्या लगभग 47.7 लाख है। लेकिन आधिकारिक तौर पर केवल 17.77 लाख मतदाता ही पंजीकृत हैं। ईसाई समुदाय 16.39 लाख मतदाताओं के साथ दूसरे स्थान पर है। अहमदियों के पास 1,65,369 मतदाता थे, जबकि सिखों के पास 8,833 मतदाता थे।
हिंदू समुदाय के एक अन्य नेता मुकेश मेघवार ने कहा, पाकिस्तान में अल्पसंख्य मतदाताओं की संख्या 2013 में 27.7 लाख से बढ़कर 208 में 36.26 लाख हो गई। लेकिन, निचली जाति के हिंदुओं को अभी भी मतदान का अधिकार नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा, इसका मतलब है कि चुनाव प्रक्रिया में उनका प्रभाव और प्रतिनिधित्व वैसा नहीं है, जैसा होना चाहिए। उन्होंने कहा, हिंदू समुदाय में वर्ग और जाति के मतभेदों के कारण निचले स्तर के लोग खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। काची ने मेघवार की बात पर सहमति जताई और बताया कि सिंध के विभिन्न इलाकों में कई बार अधिकारी सरकारी दस्तावेजों में धर्म के आधिकारिक बॉक्स में भी हिंदुओं और दलितों के बीच अंतर करते हैं।

सैन फ्रांसिस्को में खालिस्तानी समर्थक आपस में ही भिड़े, जमकर मारपीट; सोशल मीडिया में वीडियो वायरल

खालिस्तानी समर्थकों से जुड़ा एक वीडियो जमकर सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। वायरल हो रहे वीडियो के मुताबिक, सैन फ्रांसिस्को में कई खालिस्तानी समर्थक हाथ में खालिस्तानी झंडा लिए खड़े हुए थे। बड़ी संख्या में खालिस्तानी समर्थक वहां नारेबाजी कर रहे थे। इसी दौरान, अचानक वहां मौजूद खालिस्तानी समर्थक एक-दूसरे पर हमला करने लगे। वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि वहां मौजूद पुलिसकर्मी इस झड़प को थामने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस दौरान बवाल में शामिल लोग खालिस्तान के झंडे लहराते दिखाई दे रहे हैं।

सोशल मीडिया में वीडियो वायरल
सोशल मीडिया यूजर सिद्धांत सिब्बल ने इस वीडियो को अपनी पोस्ट के जरिए साझा किया। उन्होंने लिखा सैन फ्रांसिस्को में खालिस्तानी समर्थकों में आपकी झड़प देखने को मिली। हालांकि ये वीडियो 28 जनवरी का है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 28 जनवरी को कई खालिस्तानी समर्थक नए देश की मांग को लेकर मतदान कर रहे थे। इस दौरान तमाम समर्थक बसों, कारों, झंडे, ट्रेनों पर खालिस्तानी झंडा लहराते हुए नजर आए। इस दौरान भारत को लेकर अभद्र बयानबाजी भी की, जिसमें भारत से पंजाब को अलग करने की बात कही गई थी। गौरतलब है कि पंजाब भारत का अभिन्न अंग है।