Saturday , November 23 2024

विदेश

नेपाली विदेश मंत्री ने बताया गर्व पल, कहा- राम-सीता दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक

नेपाल के विदेश मंत्री एनपी सऊद ने अयोध्या में राम मंदिर में राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को ‘गौरवपूर्ण’ क्षण बताया। उन्होंने कहा कि भगवान राम और देवी सीता साहस, त्याग, न्याय और धार्मिकता का प्रतीक हैं। विदेश मंत्री ने आगे कहा कि वे भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक और सभ्यतागत जुड़ाव का प्रतीक हैं। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, ‘जय श्री राम! माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा अयोध्या राम मंदिर का उद्घाटन और आज पवित्र प्राण प्रतिष्ठा समारोह का समापन सनातन धर्म के सभी अनुयायियों के लिए गर्व का क्षण है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम और नेपाल की बेटी माता सीता, ‘वेसाहस, बलिदान, न्याय और धार्मिकता के प्रतीक थे।

अयोध्या की तरह भक्तों ने जनकपुर में भी मनाया उत्सव
बता दें कि देवी सीता के गृह नगर जनकपुर में भक्तों ने 2.5 लाख तेल के दीपक जलाए। वह प्राचीन शहर जहां देवी सीता के पिता राजा जनक शासन करते थे। उन्होंने कई सप्ताह पहले से ही उत्सव की तैयारी शुरू कर दी थी। दामाद की घर वापसी का जश्न मनाते हुए शहर दीपों और रंग-बिरंगी सजावट से जगमगा रहा है। स्थानीय समूहों ने दीया, पाला, तेल और कपास के लैंप जैसी सभी आवश्यक और संभावित वस्तुओं को इकट्ठा करने के लिए एक अभियान शुरू किया था।

रंगोली से भी की सजावट
इसके अलावा फूलों और सिन्दूर पाउडर का उपयोग करके जय सियाराम लिखी रंगोली भी बनाई गई थी। ड्रोन द्वारा कैप्चर किए गए दृश्यों में, पृष्ठभूमि में जानकी मंदिर और भक्तों से घिरे 2.5 लाख तेल-आधारित दीपक की रोशनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली लग रही थी।

सभी दीपकों को जलाने और विहंगम दृष्टि से दिखाई देने वाली चमक तक पहुंचने में लगभग एक घंटे का समय लगा। इससे पहले दिन में, अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की स्क्रीनिंग के साथ-साथ प्राचीन शहर में रैलियां और जश्न कार्यक्रम आयोजित किए गए थे।समारोह में जनकपुर के मुख्य महंथ छोटे महंथ के साथ शामिल हुए थे।

गाजा में संघर्ष रोकने के लिए तैयार इस्राइल, हमास के सामने रखी ये शर्त

इस्राइल-हमास के बीच जारी युद्ध को रोकने के लिए इस्राइल की तरफ से एक पहल की गई है। इस्राइल ने हमास को एक प्रस्ताव भेजा, जिसमें दो महीने के लिए युद्ध को रोकने की बात कही गई है। इस युद्ध में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले मिस्र और कतर के जरिए यह प्रस्ताव भेजा गया है। इस्राइल के रक्षा विभाग से जुड़े दो अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी है।

इस्राइल ने हमास को प्रस्ताव भेजा
इस प्रस्ताव में गाजा में बंधक बनाए गए सभी बंधकों को रिहा करने की मांग की गई है। दरअसल, गाजा में बंधक बनाए गए कई इस्राइलियों के परिवार वाले सरकार पर दबाव बना रहे हैं। सोमवार को बंधकों के परिजन संसद में वित्त समिति की बैठक के दौरान प्रवेश कर गए। उन्होंने संसद में कहा, ‘वहां बंधकों को मारा जा रहा है, आप इस स्थिति में यहां बैठक नहीं कर सकते हैं।’

इस्राइली नागरिकों का सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
रविवार की रात को अपने परिजनों की रिहाई की मांग को लेकर इस्राइली सरकार के खिलाफ लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। वहीं सोमवार को इस्राइल ने गाजा पट्टी के खान यूनिस में भीषण बमबारी की। इस बमबारी में 50 फलस्तीनी नागरिक मारे गए और कई घायल भी हुए। इस बमबारी के बाद फलस्तीन के रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने मीडिया को बताया कि इस्राइल द्वारा किए गए इस जमीनी हमले के कारण उनका खान यूनिस से पूरी तरह से संपर्क टूट चुका है।

उन्होंने बताया कि इस्राइली बलों ने उनके एंबुलेंस केंद्रों की घेराबंदी भी की, जिस वजह से घायलों को अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका। जो भी इधर-उधर जाने की कोशिश कर रहा, उस पर निशाना बनाया जा रहा है। बता दें कि सात अक्तूबर से जारी युद्ध में अबतक 25 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। इस्राइली सेना के अनुसार उन्होंने करीब नौ हजार आतंकियों को ढेर कर दिया है।

श्रीलंकाई तमिल नेताओं ने की 13ए संशोधन को लागू करने की मांग, बोले- भारत को दखल देना चाहिए

श्रीलंका के तमिल नेताओं ने मांग की है कि श्रीलंकाई संविधान के संशोधन 13ए को लागू करवाने के लिए भारत को दखल देना चाहिए। श्रीलंकाई संविधान का संशोधन 13ए अल्पसंख्यक समुदाय को सत्ता की कुछ शक्तियों के हस्तांतरण की बात कहता है। श्रीलंका में तमिल समुदाय के वरिष्ठ नेता आर संपनथान ने सोमवार को श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त संतोष झा से मुलाकात की थी। श्रीलंका में तमिलों के संगठन तमिल नेशनल अलायंस ने यह जानकारी दी।

तमिल पार्टियों की मांग- भारत दखल दे
तमिल नेशनल अलायंस ने बताया कि संपनथान और भारतीय उच्चायुक्त के बीच दो घंटे लंबी बातचीत हुई, जिसमें मुख्य तौर पर संशोधन 13ए पर बात हुई। तमिल पार्टियों ने मांग की कि भारत को इस मामले में दखल देना चाहिए। इस बैठक में तमिल राजनीतिक बंदियों और सरकार द्वारा तमिलों की कब्जाई गई भूमि को लेकर बात हुई। भारत द्वारा श्रीलंका पर 13ए संशोधन को लागू करने का दबाव बनाया जा रहा है।

1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के तहत लागू हुआ था 13ए संशोधन
साल 1987 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के बीच इंडो- श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इस समझौते के तहत श्रीलंका के संविधान में 13ए संशोधन को शामिल किया गया। इसके तहत श्रीलंका के सभी नौ राज्यों की सरकारों को कुछ शक्तियां देने का प्रावधान किया गया। इनके तहत कृषि और स्वास्थ्य आदि पर श्रीलंका के राज्यों की सरकारें भी फैसला ले सकतीं थी।

बौद्ध संगठनों के दबाव में झुकी श्रीलंका सरकार
बीते दिनों मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमासिंघे ने इस संशोधन को लागू करने के लिए तमिल नेताओं के साथ मुलाकात भी की थी। पुलिस को छोड़कर संशोधन के तहत अन्य शक्तियों को राज्यों सरकारों को देने की तैयारी थी। हालांकि ताकतवर बौद्ध संगठनों के आगे सरकार झुक गई। बौद्ध संगठन तमिलों को शक्तियां देने के खिलाफ हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे देश की एकता को खतरा हो सकता है। वहीं लिट्टे के खात्मे के बाद नरमपंथी तमिल नेता श्रीलंका के अधीन रहते हुए ही कुछ शक्तियों के हस्तांतरण की मांग कर रहे हैं। लिट्टे संगठन, जो अलग तमिल राष्ट्र के लिए लड़ रहा था, उसने 13ए संशोधन को नकार दिया था।

संसद में विवादास्पद ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक पर बहस के लिए मतदान; आखिर क्या है इसके विरोध का कारण?

श्रीलंका की संसद में मंगलवार को ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक पर चल रही बहस को आगे बढ़ाने के लिए मतदान किया गया। भारत के पड़ोसी देश में इस विधेयक की विपक्ष द्वारा काफी आलोचना की जा रही है। विपक्षी सांसदों और अन्य आलोचकों का कहना है कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित होगी।

विपक्ष के विरोध को देखते हुए श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अबेवर्धने ने यह तय करने के लिए वोटिंग कराने का फैसला किया था कि विधेयक पर चल रही दो दिवसीय बहस आगे बढ़नी चाहिए या नहीं। मतदान में 225 विधायकों में से 83 ने बहस कराने के पक्ष में वोट दिया। वहीं, 50 सांसदो ने इसके खिलाफ वोट किया। मंत्री तिरान एलेस ने मंगलवार को इस विधेयक पर बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बिल में संशोधन का सुझाव दिया था। बुधवार को संसद में बिल को मंजूरी मिलने के बाद उन संशोधनों कों इसमें शामिल किया जाएगा।इससे पहले, विपक्षी दलों ने विधेयक पर विचार-विमर्श के लिए और समय मांगा था। उनका दावा था कि ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा हो सकता है। वहीं,

नागरिक भी कर रहे विरोध
विपक्षी सांसदों के अलावा विभिन्न नागरिक समूह भी इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। मंगलवार को जब संसद में इस विधेयक को लेकर मतदान हो रहा था उस समय एक नागरिक समूह ने विधेयक का विरोध करने के लिए संसद के पास प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य सोशल मीडिया के माध्यम से जनता की राय की अभिव्यक्ति को सेंसर करना है।

किए गए हैं ये प्रावधान
बता दें कि इस विधेयक का उद्देश्य ऑनलाइन सुरक्षा आयोग की स्थापना करना है। इसके साथ ही यह विधेयक में श्रीलंका में बयानों के ऑनलाइन संचार पर रोक लगाने और प्रतिबंधित उद्देश्यों के लिए ऑनलाइन खातों और अप्रामाणिक ऑनलाइन खातों के उपयोग को रोकने का प्रावधान भी किया गया है।

एशियाई इंटरनेट गठबंधन ने भी की है आलोचना
एशियाई इंटरनेट गठबंधन (एआईसी) ने भी इसका विरोध किया था। एआईसी ने इस बाबत एलेस को एक पत्र भी लिखा था। जिसमें विधेयक पर आपत्ति जताई थी। एआईसी ने पत्र में कहा था कि प्रस्तावित कानून मसौदे में अगर परिवर्तन नहीं किए गए तो इससे कई चुनौतियां पैदा होंगी। इसमें यह भी चेतावनी दी गई थी कि विधेयक के वर्तमान स्वरूप से श्रीलंका की डिजिटल अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि कमजोर हो सकती है। गौरतलब है कि विधेयक की संसदीय मंजूरी पर मतदान बुधवार को होना है।

‘भारत के मुसलमानों को यह नहीं भूलना चाहिए कि…’ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर बोला पाकिस्तानी मीडिया

लंबे बरसे के बाद आखिरकार अयोध्या में रामलला विराजमान हो गए हैं। रामजन्मभूमि पर मस्जिद के निर्माण से लेकर वापस राम लला के भव्य मंदिर बनने तक लगभग पांच सदियां लग गईं। चुनौतियों और लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार भक्तों को उनका राम मंदिर मिल गया है। प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में संपन्न हुआ। पूरा देश राम मय हो गया है। आइए जानते हैं 500 साल बाद राम मंदिर मिलने पर पाकिस्तानी मीडिया की क्या प्रतिक्रिया है।

वेटिकन सिटी जैसा शहर बनने को तैयार
भारत के साथ-साथ अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की चर्चा विदेशों में भी खूब हो रही हैं। पाकिस्तान के अखबारों ने इसे लेकर लिखा है कि बाबरी मस्जिद को गिराकर बनाए गए राम मंदिर में आज पीएम रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करने जा रहे हैं। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डॉन ने एक ऑपिनियन लेख प्रकाशित किया है, जिसमें लेखक परवेज हुदभोय ने लिखा है कि जहां पहले पांच शताब्दी पुरानी बाबरी मस्जिद हुआ करती थी, अब वहां राम मंदिर बन रहा है। राम मंदिर के चारों तरफ वेटिकन सिटी जैसा शहर बनने को तैयार है।

भारत के मुसलमान यह न भूलें
उन्होंने आगे लिखा, ‘नए भारत में अब धार्मिक साम्प्रदायिकता घृणा की तरह नहीं मानी जाती है।’ परवेज ने कहा, ‘हिंदुत्व का संदेश दो वर्गों को टारगेट करता है। पहला है- भारत के मुसलमान, जिस तरह पाकिस्तान अपनी हिंदू आबादी को कम अधिकारों वाले दोयम दर्जे के नागरिकों के रूप में देखता है, उसी तरह भारत में मुसलमानों को भी यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वे उन आक्रमणकारियों की अनचाही संतान हैं, जिन्होंने एक प्राचीन भूमि को बर्बाद कर दिया और उसकी महिमा को लूट लिया।’

जैसे को तैसा मिला
पाकिस्तानी अखबार ने आगे लिखा है कि मार्च 2023 में ‘जय श्री राम’ के नारे लगाती भीड़ ने एक सदी पुराने मदरसे और प्राचीन लाइब्रेरी को जला दिया था। 12वीं सदी में मुस्लिम आक्रमणकारी, बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया था, जिसमें वहां की विशाल लाइब्रेरी जलकर खाक हो गई थी। हिंदुत्ववादियों का मदरसे और लाइब्रेरी को जलाना ‘जैसे को तैसा’ वाली बात थी।

हिंदू विरोधी के रूप…
लेख में हिंदुत्व के दूसरे टार्गेट का जिक्र करते हुए लिखा गया, ‘दूसरा संदेश भाजपा के विपक्ष, कांग्रेस के लिए है कि वो धर्मनिरपेक्षता को छोड़ धार्मिक पिच पर आए और भाजपा के साथ खेलती दिखी। अगर वो ऐसा नहीं करती है तो उसे हिंदू विरोधी के रूप में देखा जाएगा।’

भाजपा ने किया था वादा
पाकिस्तान टुडे ने लिखा है कि सोमवार को उस जगह पर एक विशाल मंदिर का उद्घाटन किया गया, जिसे लाखों भारतीय राम का जन्मस्थान मानते हैं। मंदिर का निर्माण पिछले 35 सालों से हो रहा है। मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने मंदिर निर्माण का वादा किया था और यह उनके लिए हमेशा से एक राजनीतिक मुद्दा रहा है, जिसने पार्टी को सत्ता में आने और यहां बने रहने में मदद की है।

अखबार ने लिखा, ‘हिंदू समूह अयोध्या में उद्घाटन समारोह को सदियों से मुस्लिम और औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन रहने के बाद हिंदू जागृति के रूप में चित्रित कर रहा है। समारोह को मई में होने वाले आम चुनावों के लिए पीएम मोदी के चुनावी अभियान की आभासी शुरुआत के रूप में भी देखा जा रहा है।’

अखबार ने लिखा कि दशकों तक मंदिर स्थल विवाद का केंद्र रहा क्योंकि हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्ष ही इस पर अपना दावा करते रहे। साल 1992 में हिंदुओं की भीड़ ने 16वीं सदी में बनी बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया था। भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं का कहना है कि यह स्थान भगवान राम का जन्मस्थान है और 1528 में मुस्लिम मुगलों ने एक मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जमीन हिंदुओं को सौंप दी और मुसलमानों को अलग प्लॉट देने का आदेश दिया था।

2025 तक पूरा बनेगा मंदिर
राम मंदिर की विशालता का जिक्र करते हुए पाकिस्तानी अखबार ने लिखा, ‘मंदिर 2.67 एकड़ में बनाया जा रहा है जिसका परिसर 70 एकड़ में फैला है। माना जा रहा है कि दिसंबर 2025 में मंदिर पूरी तरह बनकर तैयार हो जाएगा। अनुमान है कि मंदिर बनाने में 15 अरब रुपये खर्च होंगे।’

धर्मनिरपेक्षता भगवा राजनीति के पहाड़ तले दब गई
अलजजीरा ने एक ऑपिनियन लेख छापा है जिसमें लिखा है कि ‘भारत की धर्मनिरपेक्षता भगवा राजनीति के पहाड़ तले दब गई है।’ भारत की राजनीतिक टिप्पणीकार इंसिया वाहन्वति के लिखे लेख में कहा गया है कि धर्मनिरपेक्ष भारत के किसी प्रधानमंत्री का मंदिर का उद्घाटन करना अनुचित है। लेख में कहा गया, ‘बाबरी मंदिर का विध्वंस आज भी मुसलमानों के लिए दुखदायी है। विध्वंस के बाद हुए दंगों में जो लोग मारे गए, हममें से कई लोगों को आज भी वो याद हैं। राजनीतिक वादे किए गए कि मस्जिद फिर से बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं।’

‘भारत-अमेरिका संबंध पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद’, भारतीयों से बोले राजदूत संधू- अपनी जड़ों से जुड़े रहें

भारत और अमेरिका के संबंध ना सिर्फ इन दोनों देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए बेहद फायदेमंद हैं। भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने भारतीय अमेरिकी समुदाय को संबोधित करते हुए यह बात कही। तरणजीत सिंह संधू का अमेरिका में बतौर भारतीय राजदूत कार्यकाल इस महीने के अंत में रिटायरमेंट के साथ खत्म हो जाएगा। ऐसे में शनिवार को संधू ने अमेरिका में रह रहे प्रमुख भारतीय उद्योगपतियों और अन्य क्षेत्रों में शीर्ष पदों पर काम कर रहे भारतीयों को संबोधित किया।

‘अपने बच्चों को भी भारत से जोड़कर रखें’
तरणजीत सिंह संधू ने कहा कि ‘अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने में अहम भूमिका है।’ उन्होंने भारतीय समुदाय से अपील की कि ‘वह अपनी जड़ों से जुड़े रहें और अपने बच्चों को भी भारत से जोड़े रखें, उन्हें समय-समय पर भारत लेकर जाएं।’ तरणजीत सिंह संधू 35 साल की सेवा के बाद इस महीने के अंत में भारतीय विदेश सेवा से रिटायर हो रहे हैं। संधू ने अपने विदाई समारोह में दिए अपने संबोधन में कहा ‘यह संबंध बेहद अहम और खास हैं, ना सिर्फ दोनों देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया की बेहतरी के लिए। आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके बच्चे भारत में निवेश करें। वह भी अमेरिका में रह रहे अन्य समुदायों की तरह भारत जाएं। इसमें आपको भी सहयोग करना होगा कि आप अपने सहयोगियों, मित्रों से उनका परिचय कराएं।’

संधू ने बताया- जड़ों से जुड़े रहने का क्या होगा फायदा
भारतीय राजदूत ने कहा कि ‘अगर सुरक्षा संबंधी कोई समस्या है तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि दूतावास और महावाणिज्यदूतावास आपकी मदद करेंगे। हम उनकी सुरक्षा का ध्यान रखेंगे। अगर आप उन्हें भारत भेजेंगे तो इससे उन्हें भी फायदा मिलेगा। अगर वह भारत को बेहतर तरीके से जानते होंगे तो जो बड़ी बड़ी कंपनियां भारत शिफ्ट हो रही हैं, उनमें भी उनके लिए मौके बनेंगे। दोनों देशों के रिश्ते आने वाले समय में मजबूत ही होंगे।’ भारतीय राजदूत संधू ने कहा कि ‘चाहे सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं की बात हो या फिर ऊर्जा, तकनीक, स्टार्टअप, इनोवेशन, नई उभरती हुई तकनीक सभी क्षेत्रों में भारत और अमेरिका की साझेदारी बड़ी होगी।’

तरणजीत सिंह संधू ने अमेरिका के सिएटल में भारत का महावाणिज्य दूतावास खोलने में अहम भूमिका निभाई। फिलहाल अमेरिका में भारत के छह महावाणिज्य दूतावास और जल्द ही दो और महावाणिज्य दूतावास खुलने वाले हैं। संधू ने कहा कि भारत-अमेरिका संबंधों में भारतीय समुदाय की भूमिका बेहद अहम है और आने वाले दिनों में यह और भी अहम होगी। अभी भी अमेरिका में भारतीय समुदाय अहम स्थिति में है लेकिन आने वाले दिनों में संभावनाएं और ज्यादा बढ़ेंगी।

‘पाकिस्तान में और बढ़ेगी अशांति और अराजकता’, पूर्व पीएम इमरान खान की चेतावनी

पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान ने चेतावनी दी है कि अगर आम चुनाव में पारदर्शिता नहीं बरती गई और उनकी पार्टी को भी प्रतिस्पर्धा के लिए समान मौके नहीं मिले तो चुनाव के बाद देश में अस्थिरता और अराजकता और बढ़ेगी। पाकिस्तान की अडियाला जेल में बंद इमरान खान ने शनिवार को मीडिया से बात की। इसी दौरान उन्होंने ये चेतावनी दी। इमरान खान ने दावा किया कि उनकी पार्टी पीटीआई को इन चुनाव में प्रचार के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी को चुनाव सभाएं करने से रोका जा रहा है।

सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, इमरान खान ने कहा कि पीटीआई कार्यकर्ताओं को अथॉरिटीज द्वारा परेशान किया जा रहा है और उन्हें हिरासत में लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार पार्टी को खत्म नहीं कर सकती क्योंकि बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़े हुए हैं। इमरान खान ने उन नेताओं को भी चेतावनी दी, जो पीटीआई छोड़कर अन्य पार्टियों में जा रहे हैं। खान ने कहा कि ऐसे नेताओं की राजनीति खत्म हो जाएगी, जो पीटीआई को छोड़ रहे हैं।

चुनाव आयोग की मंशा पर भी उठाए सवाल
इमरान खान ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि आयोग ने पीटीआई के आंतरिक चुनाव के मसले पर जानबूझकर देरी की और पार्टी को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने के लिए अचानक कड़ा फैसला लिया। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने बीती 13 जनवरी को अपने एक फैसले में पीटीआई के चुनाव चिन्ह बैट के निशान को पार्टी से छीनने का आदेश दिया था। इसके चलते पीटीआई से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को अब निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ना पड़ेगा। पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने पीटीआई पर आंतरिक चुनाव ना कराने को लेकर पीटीआई के चुनाव चिन्ह के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को सही ठहराया और पार्टी का चुनाव चिन्ह छीनने का फैसला दिया।

इमरान बोले- …वह दिखा देंगे कि क्या कर सकते हैं
नवाज शरीफ को लेकर इमरान खान ने कहा कि अगर देश पर एक भगोड़े को थोपने की कोशिश की गई तो इसके गंभीर नुकसान होंगे। इमरान खान ने दावा किया कि नवाज शरीफ ने हाल ही में अपनी लैया रैली रद्द कर दी थी क्योंकि उनकी पार्टी के लोगों को रैली के लिए जुटा ही नहीं पाए। इमरान ने कहा कि ‘अगर उन्हें चुनाव से तीन दिन पहले भी जेल से छोड़ा जाए और जनसभा करने की अनुमति दी जाए तो वह सभी को दिखा देंगे कि वह क्या कर सकते हैं।’ इमरान खान ने कहा कि ‘उन पर और उनकी पार्टी पर हो रही इतनी ज्यादतियों के बाद भी वह कानून अपने हाथ में नहीं लेंगे और आखिरी गेंद तक खेलेंगे।’

‘अमेरिका में बदलाव लाने के कई तरीके’; रनिंग मेट के सवाल पर ट्रंप समर्थक रामास्वामी का बड़ा बयान

अमेरिका में रिपब्लिकन नेता विवेक रामास्वामी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन का एलान कर चुके हैं। उन्हें ट्रंप का भावी सहयोगी और उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी भी माना जा रहा है। खुद ट्रंप इस बात का संकेत दे चुके हैं कि रामास्वामी उनके साथ लंबे समय तक काम करेंगे। इसी बीच खुद को रनिंग मेट मानने या अपनी भावी भूमिका पर रामास्वामी ने कहा कि अमेरिका में बदलाव लाने के कई और भी तरीके हैं। उन्होंने ट्रंप के चुनाव जीतने पर भविष्य में उपराष्ट्रपति बनने की संभावनाओं पर सीधा जवाब देने से इनकार कर दिया।

अमेरिका में बदलाव के लिए उद्यमी के रूप में योगदान
38 साल के रिपब्लिकन नेता और उद्यमी विवेक रामास्वामी ने कहा, इस देश में सरकार के अंदर और बाहर रहकर बदलाव लाने के कई तरीके हैं। फॉक्स न्यूज के साथ इंटरव्यू में के दौरान उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल से वे उद्यमी के रूप में अमेरिकी बाजार और समाज में बदलाव लाने के प्रयास कर रहे हैं। द हिल की रिपोर्ट के मुताबिक रामास्वामी ने एक भावुक भाषण में कहा कि अमेरिका युद्ध जैसे हालात से जूझ रहा है।

ट्रंप के समर्थन में क्या बोले रामास्वामी
उन्होंने कहा कि हमें विभाजित किया गया है। दो अलग-अलग गुट बन चुके हैं। एक जो अमेरिका से प्यार करते हैं और दूसरा अल्पसंख्यकों का वह समूह जो देश से नफरत करता है। रिपब्लिकन पार्टी ऐसे लोगों के खिलाफ खड़ी है। रामास्वामी ने ट्रंप का समर्थन करने की अपील करते हुए कहा, ‘अभी हमें ऐसे प्रमुख कमांडर की जरूरत है जो अमेरिका को जीत की तरफ ले जाए।’

आयोवा कॉकस के चुनाव परिणाम
गौरतलब है कि ट्रंप और रामास्वामी अपने अभियान के दौरान पहले भी एक-दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। आयोवा कॉकस के 40 प्रतिनिधियों में 20 ट्रंप के साथ हैं। 17 जनवरी को आई खबर के मुताबिक यहां कुल 56,250 वोट डाले गए, इसमें ट्रंप ने 32,840 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। फ्लोरिडा के गवर्नर को रॉन डेसेंटिस आठ प्रतिनिधियों के वोट साथ दूसरे स्थान पर रहे। संयुक्त राष्ट्र की पूर्व राजदूत निक्की हेली सात प्रतिनिधियों के समर्थन के साथ तीसरे नंबर पर रहीं।

ट्रंप 21वीं सदी के ‘महानतम राष्ट्रपति’
बता दें कि 17 जनवरी को आयोवा कॉकस के परिणाम सामने आने के बाद रामास्वामी ने अपना नाम वापस ले लिया था। उन्होंने बाकी रिपब्लिकन नेताओं से भी ट्रंप का समर्थन करने की अपील की थी। ट्रंप के सहयोगी बनने की अटकलों का दौर ट्रंप की तारीफ से शुरू हुआ था। रामास्वामी के अभियान की सराहना करते हुए ट्रंप ने संकेत दिया था कि वह उनके साथ लंबे समय तक काम करने को तैयार हैं। ट्रंप ने भरोसा जताया है कि वह बहुत अच्छे रिपब्लिकन नेता साबित होंगे। यह भी दिलचस्प है कि ट्रंप के खिलाफ चार गंभीर आरोपों का मुखर विरोध करने वाले चुनिंदा नेताओं में भारतवंशी विवेक रामास्वामी का नाम सबसे आगे रहा है। रामास्वामी ने ट्रंप को 21वीं सदी का ‘महानतम राष्ट्रपति’ करार दिया था।

107 दिन से जारी इस्राइल-हमास युद्ध में मृतकों का आंकड़ा 25 हजार के पार, 24 घंटे में 178 की मौत

इस्राइल और हमास का हिंसक संघर्ष पिछले साल शुरू हुआ था। सात अक्तूबर, 2023 को इस्राइल पर हमास के हमले के बाद इस्राइल डिफेंस फोर्सेज (IDF) के जवान गाजा पट्टी पर हमास के आतंकी ठिकानों पर लगातार बमबारी कर रहे हैं। हिंसक संघर्ष में पिछले 107 दिनों में 25 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक पिछले 24 घंटे में 178 लोगों की मौत हो चुकी है। शव बरामद होने के अलावा 300 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर भी सामने आई है गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को कहा कि इस्राइल और हमास शासकों के बीच तीन महीने से अदिक समय से युद्ध हो रहा है। हजारों फलस्तीनी लोगों की मौत हुई है। आंकड़ा 25 हजार से अधिक हो चुका है।

‘प्रवासी भारतीयों की भूमिका अहम, 900 फैक्टरियां लगाईं’; सैन्य शासक की भूल पर राष्ट्रपति ने कही यह बात

अफ्रीकी देश युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने प्रवासी भारतीय लोगों के योगदान की सराहना की है। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था के लिए दक्षिण एशियाई समुदाय, विशेष रूप से भारतवंशी लोगों की जमकर सराहना की। मुसेवेनी ने राजधानी कंपाला में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के 19वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। उन्होंने पूर्व सैन्य शासक ईदी अमीन की गलतियों के बारे में भी बात की। अमीन ने युगांडा में बसे एशियाई लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इनमें अधिकांश भारतीय नागरिक थे।

बता दें कि युगांडा को 70 साल पहले NAM देशों के समूह में शामिल किया गया था। 1964 में मिस्र की राजधानी काहिरा में आयोजित दूसरे शिखर सम्मेलन में युगांडा को गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की सदस्यता मिली थी। 1971 से 1979 तक लगभग नौ साल अमीन युगांडा के तीसरे राष्ट्रपति रहे। शिखर सम्मेलन के दौरान उनके कार्यकाल से जुड़े विवाद का जिक्र करते हुए मुसेवेनी ने कहा कि NAM देश भी युगांडा की तरह गलतियां करते हैं। हमारे पास भी ईदी अमीन नाम का शख्स था।

उन्होंने कहा कि अमीन ने हमारे एशियाई लोगों (खास तौर पर भारत और पाकिस्तान के नागरिक) को बहुत कम समय में निष्कासित कर दिया। मुसेवेनी ने देश की अर्थव्यवस्था में इनके योगदान को स्वीकार करते हुए कहा कि इन लोगों ने होटल और इस्पात के उद्योग के अलावा चीनी उत्पादन में भी उल्लेखनीय निवेश किया है। उन्होंने कहा कि निष्कासन की अवधि के दौरान देश तेजी से आगे बढ़ने से चूक गया, जिसका उन्हें अफसोस है।

गौरतलब है कि युगांडा छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के बाद बड़ी संख्या में एशियाई लोगों के बड़े समूह को संघर्ष करना पड़ा। समृद्ध होने के बावजूद इस समुदाय के लोगों को दुनियाभर में अलग-अलग जगहों पर नई दुनिया बसानी पड़ी। इन लोगों ने युगांडा में चल रहा बिजनेस बंद करना पड़ा, जिसे कई वर्षों तक खून-पसीने की कमाई से खड़ा किया गया था। दशकों बाद हालात बदले हैं और अब सरकार तस्वीर बदलने के प्रयास कर रही है।

राष्ट्रपति मुसेवेनी ने अमीन के कार्यकाल में उनकी नीतियों के कारण हुई परेशानी को दूर करने के लिए युगांडा की वर्तमान सरकार के फैसलों को भी गिनाया। उन्होंने कहा, ‘जब हम सरकार में आए तो हमने युगांडा में रहने वाले एशियाई नागरिकों और गैर-नागरिकों की संपत्तियां लौटाने का फैसला लिया। अमीन ने संपत्तियों को जब्त किया था।’ उन्होंने कहा कि 1980 और 1990 के दशक में देश लौटने के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप के एशियाई लोग एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था के स्तंभ बन गए हैं। वापस लौटे भारतीय लोगों ने 900 फैक्टरियों को दोबारा शुरू कर दिया है। इससे युगांडा की अर्थव्यवस्था में भारत की अहम भूमिका रेखांकित होती है।